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________________ के चक्र में घूमते रहते हैं। जिस दिन हमारी आसक्ति मर जायेगी | चलेगा? क्या कपड़े पहनने से समाज का नव निर्माण होता है ? यदि उसी दिन हमारी वासना, हमारी लज्जा गायब हो जायेगी, और हाँ तो फिर आज तो कपड़ों की भरमार है। एक से बढ़कर एक कपड़े हमारी विजय हो जायेगी। जिस प्रकार एक सज्जन व्यक्ति के मन | पहनने वाले हैं, फिर समाज में इतना विघटन क्यों है ? आपसी फूट में किसी शराबी को देखकर शराब पीने के भाव नहीं हो सकते, उसी | क्यों है ? समाज में इतने भेद और संस्थायें क्यों हैं ? सारे के सारे प्रकार सज्जन-पुरुषों को एक दिगम्बर नग्न मुनि को देखकर वासना | कपड़े पहने हुए हैं। ध्यान रहे, समाज कपड़ों से नहीं चल सकती। के भाव पैदा नहीं हो सकते। यह बात जुदी है कि उसका मन वासना समाज आदर्शों से चलता है, आचरण से चलता है, कर्तव्यों से से लबालब भरा हो, उसको तो किसी के देखे बिना भी वासना पैदा चलता है, त्याग और अपरिग्रह से चलता है। दिगम्बर नग्न मुनि की होती रहती है। अतः नग्नता निन्दनीय नहीं अपितु वन्दनीय है, समाज में उपस्थिति एक आदर्श है, जिसके माध्यम से सारा समाज पूजनीय है, पवित्र है, पावन है। अपरिग्रह की ओर बढ़ता है और परिग्रह की मर्जी से बचता है। लिखने वाले के ये शब्द भी ध्यान देने योग्य हैं- 'जिस | अतः समाज चलाने के लिए वस्त्रों की कतई आवश्यकता नहीं। प्रकार शरीर को चलाने के लिए आहार आवश्यक है, उसी प्रकार हाँ, इतना तो अवश्य है कि जब तक वह आदमी गृहस्थाश्रम समाज को चलाने के लिए वस्त्र' आवश्यक है। समाज को चलाने | में रहता है, घर में रहता है तब तक वह वस्त्रों को धारण करता है। के लिए वस्त्रों की आवश्यकता एक वस्त्रधारी को पड़ती है, जो | घर में नग्न रहना यह तो जैन शास्त्र भी मना करते हैं। लेकिन जब समाज का सदस्य होता है और कार्य भार, जिम्मेदारियों को अपने | वह घर, कुटुम्ब को छोड़ देता है, अपना व्यापार-व्यवसाय छोड़ सिर पर रखता है। लेकिन साधु'समाज चलाने के लिए नहीं होता। | देता है, तब वह नग्न दीक्षा का पात्र होता है। अतः जैन साधुओं की वह तो समाज का आदर्श होता है, जरा सोचो! कपड़ों से क्या समाज | नग्नता निंदनीय नहीं वन्दनीय है। अहिंसा-जीवदया-पशुरक्षा के क्षेत्र में कार्यरत सभी वरिष्ठ कार्यकर्ता संगठित होवें अहिंसा परमो धर्मः और सत्यमेव जयते आज भारत के मूलमंत्र हैं। महावीर ने अहिंसा पर, बुद्ध ने करूणा पर और गाँधी ने सत्य पर विशेष जोर देकर ही हमारे देश भारतवर्ष को विश्व के अध्यात्म गुरु का दर्जा दिलाया था। पर हमारी त्रासदी है कि आज आजादी के छप्पन वर्ष बीत जाने के बाद भी देश में अहिंसा की ताकतें बिखरी पडी हैं और हिंसा की समर्थक ताकतें एकजुट होकर हर क्षेत्र में हावी होती जा रही हैं। संगठन ही शक्ति है इस उद्देश्य को दृष्टिगत कर राष्ट्रीय स्तर पर इण्डियन फेडरेशन ऑफ अहिंसा ऑर्गेनाइजेशन अर्थात् भारतीय अहिंसा संस्थान महासंघ की स्थापना की गई है। अहिंसा को विश्व व्यापी बनाने के उद्देश्य हेतु पूरे देश भर में हजारों की संख्या में फैली सभी सक्रिय संस्थाएँ एक व्यापक एवम् दूरगामी सोच के साथ एकजुट होने के प्रति उत्सुक हों, तभी इसकी सार्थकता है। अहिंसा सिद्धांत की लड़ाई मजबूत स्वार्थी तत्वों से है और इसके लिए अहिंसा संगठन को जन बल, बौद्धिक बल एवम् सुदृढ़ आर्थिक आधार से बेहद सबल बनाना नितांत आवश्यक है।। अहिंसा शाकाहार, जीवदया, करूणा, पशु कल्याण, गौरक्षा, गौसंरक्षण, पर्यावरण रक्षा, मांस निर्यात विरोध, पिंजरापोल, पशु क्रूरता निवारण समिति, जैविक खेती अथवा पशु प्रेमी संस्थाएँ आदि, हम चाहे किसी भी क्षेत्र में काम कर रहे हों, चाहे जिस संस्था, सोसाईटी, फाउन्डेशन, ट्रस्ट या समिति के नाम से कार्य कर रहे हों, यह सही वक्त है कि हम सब एकजुट होकर एक ऐसी शक्ति के तहत अपनी पहचान बनायें, जहाँ हम सबका अपना अलग स्वतंत्र अस्तित्व भी बना रहे एवम् साथ ही एकबद्धता का राष्ट्रीय लाभ भी हम सबको मिल सके। और इस उद्देश्य हेतु अहिंसा के कार्यों को सम्पूर्ण भारतवर्ष में विस्तार देना है। भारतवर्ष के २८ राज्यों तथा ७ केंद्र शासित प्रदेशों में करीब ५५० जिले हैं तथा हमने वर्ष २००४ की प्रथम तिमाही में हर जगह जिला स्तर अथवा नगर स्तर पर महासंघ हेतु सक्रिय कार्यकर्ताओं की एक पूरी टीम तैयार करने का राष्ट्र व्यापी अभियान हाथ में लिया है, ताकि बाद में एक कार्य योजना बनाकर पूरे देश में एक साथ एक मुहिम छेड़ी जा सके। इसमें समाज का सहयोग भी जरूरी है। संस्था सोसाइटी एक्ट के अंतर्गत पंजीकृत है तथा आयकर की धारा ८० जी के तहत छूट प्राप्त है। आज जो भी कार्यकर्ता इस कार्य में जुटे हैं वे अतिशीघ्र महासंघ को अपना विवरण एवम् कार्यक्षेत्र आदि भेजकर इससे जुड़ें, तभी हम इस महायज्ञ को सार्थक रूप से सफल बना सकेंगे। महासंघ द्वारा जिला-नगर स्तरीय संयोजक मनोनीत किये जा रहे हैं एवं आप सबकी सहभागिता अपेक्षित है। डॉ. चिरंजी लाल बगड़ा ४६, स्ट्राण्ड रोड, तीन तल्ला, कोलकाता दूरभाष: ०३३-३१०३०५५६, - फरवरी 2004 जिनभाषित 13 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524282
Book TitleJinabhashita 2004 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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