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________________ जैन साधुओं की नग्नता निंदनीय नहीं वंदनीय' है ऐलक नम्रसागर नग्नता पवित्रता का दुनिया में एक आदर्शपूर्ण, महानतम | की दृष्टि फिल्मी दुनिया की ओर क्यों नहीं गई? जहाँ खुल्लम-खुल्ला उदाहरण है। नग्नता महावीर का नहीं अपितु वीतरागता, निर्विकारता, अधीलता का नंगा नाच हो रहा है, अर्ध नग्न नारी के चित्र और निर्विकल्पता का अविष्कार है। कपड़ों में राग को जीता नहीं जा वासना ग्रसित 'ब्लू-फिल्म', जैसी अनैतिक समाज और राष्ट्र को सकता, कपड़ों से वासना को जीता नहीं जा सकता और कपड़ों से | गर्त में ले जाने वाली गन्दी पिक्चरें, गन्दे नाच, गन्दे पोस्टर, गन्देलज्जा को भी जीता नहीं जा सकता। वासना और लज्जा का अपना | गन्दे गीत सारी दुनिया को दुराचार, व्यभिचार और अशीलता की घनिष्ट नाता है और वस्त्रों की छाया में ही ये पलते-पुसते रहते हैं। शिक्षा दे रहे हैं। क्या इन गन्दी नग्न पिक्चरों से सदाचार, नैतिकता वस्त्र पहनकर आदमी वासना और लज्जा पर विजय नहीं पा सकता, के संस्कार दिखे हैं? फिर भी लोगों की दृष्टि इन अश्लील पिक्चरों, और जो वासना और लज्जा को जीत नहीं सकता, वह 'सन्यासी', गानों, पोस्टरों को रुकवाने, उन पर प्रतिबंध लगाने की ओर क्यों 'साधु', 'श्रमण' कैसे कहा जा सकता है? बस, वासना और लज्जा | नहीं गई। क्योंकि उनके दिल और दिमाग धर्मान्धता की सड़न से को जीतने के लिए ही दिगम्बर जैन साधु अपने तन के वस्त्रों का प्रदूषित हो गए हैं। उन्हें अश्लीलता से नहीं मात्र नग्नता से द्वेष है। भी त्याग कर देते हैं और नग्न हो जाते हैं। क्योंकि वे उस संप्रदाय में पैदा नहीं हुए। नग्नता पर प्रतिबंध की कपड़ा और आदमी के बीच में आसक्ति का रिश्ता होता है, | बात साम्प्रदायिक है, सार्व-भौमिक नहीं। ऐसे लोगों से राष्ट्र की निस्पृहता का नहीं। उसमें बन्धन का रिश्ता होता है, मुक्ति का नहीं। समृद्धि को ही खतरा है। नग्नता मुक्ति का रास्ता है, बन्धन का नहीं। नग्नता एक संयम है लिखने वाले के शब्द हैं 'नग्नता से तुरन्त वासना का संचार संयम में लज्जा नहीं आती, फिर संयम सन्तुलन का प्रतीक है। | होने लगता है ये शब्द अविकसित विवेक की उपज हैं, विवेक नग्नता एक व्रत है, व्रत (संकल्प) पवित्रता का नाम है, फिर | की नहीं। यह हमारी बुद्धि का तर्क है विवेक का नहीं। बुद्धि के पवित्रता से लज्जा क्यों ? याद रखो। पवित्रता से लज्जा करना पाप | पास तर्क होता है, जबकि विवेक के पास विश्वास होता है, से प्रेम करना है। लज्जा हमको अपनी वासना से आना चाहिए नग्नता | समझदारी होती है। समझना हमको यह है कि वासना का मूल से नहीं। क्योंकि 'बुरी चीज वासना है नग्नता नहीं और वह वासना उद्गम स्थान कहाँ है ? वासना का मूल स्त्रोत हमारी आसक्ति है, लज्जा में छुपी रहती है नग्नता में नहीं।' । हमारा गन्दा मन है, अनियंत्रित इच्छाएँ हैं, नग्नता नहीं। अविवेक, जो वासना के अधीन है वह लज्जा का दास है, और जो | अज्ञान और अन्ध अध्ययन के कारण हम नग्नता को गलत कहते लज्जा का दास होता है, वह वस्त्रों का भक्त होता है। वह वस्त्रों के | हैं। नग्नता को देखकर वासना उत्पन्न नहीं हो सकती क्योंकि बिना जी नहीं सकता, क्योंकि स्वाधीनता उसकी किस्मत में नहीं।। वासना का स्त्रोत नग्नता नहीं अपितु वासना का स्त्रोत हमारा कामुक 'वस्त्रों का त्याग करके दिगम्बरत्व की दीक्षा अंगीकार करना | मन है। यदि हमारा मन काबू में नहीं है, तो मात्र कपड़े पहनने से कमजोर दिलवालों का काम नहीं, वह तो हिम्मत और किस्मतवालों | क्या लाभ? क्या सुन्दर-सुन्दर कपड़ों वाले रंग-रूपवाले युवा पुरुष का काम है ' वासना पर विजय प्राप्त करने वाले निर्भीक होते हैं, | को देखकर किसी को वासना नहीं जाग सकती? तो फिर उसकी निडर होते है। लज्जा दिल की उपज है, दिमाग की नहीं। इसीलिए | सुन्दरता को मिटा दें? उसके रूप लावण्य की चमड़ी को निकाल जिसका दिल कमजोर होता है, जिसका दिल गन्दा होता है वह | दें? उसकी जवानी को बरबाद कर दें ताकि वासना से बच जायें। लज्जा की वेदना को, उसकी पीड़ा को सहने में असमर्थ होता है।। | हम सैकड़ों उपाय भी क्यों न कर लें, यदि हमारे मन में इसी असमर्थता की वजह है कि वह नग्नता को बुरा समझता है और | वासना भरी है तो सारी दुनियाँ में क्या भगवान में भी वासना दिखेगी उसका विरोध करता है। यदि वह अपने फेफड़ों से वासना और | और यदि हमारा मन कन्ट्रोल में हो गया तो उपासना ही उपासना मतान्धता का गन्दा पानी निकाल दे, तो दुनिया में उसे नग्नता के | है चारों ओर । दूसरी बात यदि एक नग्न मुनि को देखकर वासना अलावा और दूसरी चीज ही नजर नहीं आयेगी। जागती है तो क्या कपड़े पहनने वाले को देखकर वासना समाप्त नग्नता से लज्जा नहीं आनी चाहिए, अपितु उससे तो होती है ? गलत बात है कपड़े इतने दमदार नहीं हैं जो वासना को आध्यामिकता का पाठ सीखना चाहिए। नग्नता आध्यात्म का | छुपा सकें। हकीकत यह है हम कपड़ा बदन ढ़कने के लिए पहनते जीवित महाकाव्य है। वह नैतिकता, सदाचार, सादगी, त्याग, | है, वासना को ढकने के लिए नहीं। अपरिग्रह का महान आदर्श है। लज्जा की विषय वस्तु अश्लीलता वासना को कपड़ों से जीता नहीं जा सकता। छुपाया अवश्य है, कामुकता है, नग्नता नहीं। नग्नता तो एक शील है, एक ब्रह्मचर्य! जा सकता है। हम यही तो करते हैं कि इन कपड़ों से अपनी वासना है, एक वैराग्य है। नग्नता पर प्रतिबंध लगाने की बात करने वाले । को छुपाते रहते हैं, अपनी लज्जा को छुपाते रहते हैं और आसक्ति 12 फरवरी 2004 जिनभाषितJain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524282
Book TitleJinabhashita 2004 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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