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________________ प्राकृतिक चिकित्सा अनमोल हैं हमारी आँखें डॉ. वन्दना जैन प्रकृति प्रदत्त एक अनमोल भेंट हमें प्राप्त हुई है आखों के | समय या पुस्तकें पढ़ते समय बीच-बीच में पलकें झपकाते रहें। रुप में, कल्पना कीजिए बिना आँखों के जीवन की। जीवन का | चश्मे का उपयोग कम से कम करें। सारा आनंद ही समाप्त हो जायेगा। आइये विचार करते हैं आँखों | योगिक क्रियाएँ एवं प्राणायाम : नजला जुखाम दूर की देखभाल के बारे में, सर्वप्रथम उन कारणों की ओर चलते हैं | करने के लिए जलनेति, रबर नेति, सूत्रनेति तथा धुत नेती करें। जिससे हम इन समस्याओं से ग्रस्त होते हैं। सप्ताह में एक दिन कुंजल अवश्य करें। त्राटक या पेन्सिल व्यायाम। कारण : वंशानुगत कभी-कभी आँखों के रोग माता- आसन : वज्रासन, योग मुद्रा, शशांक आसन, पिता से अनुवांशिकी में मिल जाते हैं। मिर्च मसाले के अधिक पश्चिमोत्तानासन, पवन मुक्तासन, शलभाशन, धनुरासन, शवासन, सेवन से, दूध, दही, घी, फल तथा सलाद न खाने के कारण, | भ्रामरी प्राणायाम लाभदायक है। धूम्रपान के कारण, उच्च रक्तचाप, मधुमेह के कारण आँख में भोजन तालिका : पहले तीन दिन हर चार घंटे तक बाहरी वस्तु गिरने के कारण अथवा चोट लगने के कारण, सिर | फलों का रस, पानी मिलाकर पानी चाहिए। शोथ अथवा अधिक नजला जुकाम के कारण ऊपरी जबड़े के प्रातः ६ बजे- नीबू+ पानी + अमृता (गुड़) एक गिलास दांत उखड़ने के कारण। प्रातः ७.३० बजे - हरी सब्जियों का एक गिलास रस प्राकृतिक उपचार : प्रतिदिन ठंडे पानी का एनिमा देने से उसमें हरा धनिया अवश्य हो। गाजर का रस। शरीर के अधिकांश विजातीय द्रव्य बाहर निकल जाते हैं। ठंडे दोपहर ४ बजे- मौसम के फल व उनका रस। पानी का कटि स्नान प्रतिदिन देने से रक्त संचालन उत्तेजित होता है शाम ६.०० बजे - एक गिलास हरा जूस +पपीता। और विजातीय द्रव्यों का निष्कासन भी हो जाता है। आँखों पर शाम ७ बजे- दोपहर जैसा खाना+ फल (गाजर, टमाटर, रोज ठंडे पानी की आधे घंटे के लिए पट्टी रखें और पेढू और | पालक आदि) आंखों पर मिट्टी रखें। प्रतिदिन प्रात: त्रिफला के पानी (आई कप) जब राहत महसूस हो तब, दोपहर व शाम के भोजन में से आंखें डुबाकर आखें खोलें व बंद करें। आंखों पर केले के पत्ते | सलाद के साथ उबली सब्जी + चौकर सहित आटे की रोटी+ रखकर ८.१५ से ८.३० के मध्य १५-२० मिनिट का सूर्य स्नान | अंकुरित अन्न भी लेते रहें, सफेद कद्दू (पेठा) की सब्जी विशेष लेना हितकर है। इसके बाद ठंडा रीढ स्नान अवश्य लेना चाहिए। लाभकारी है। बंद आंखों से सूर्य को देखना पांच से दस मिनिट का हितकर है। अपथ्य - चाय, पानी, कॉफी, अंडा, मांस, मछली, लालप्रातः काल नंगे पैर हरी दूब पर आधे घंटे की सैर, टी.वी. देखते । मिर्च, तला-भुना भोजन, अधिक नमक। (ग्रन्थ समीक्षा १. कल्पद्रुम विधान, २. तत्वार्थ सूत्र मोक्षमण्डल विधान ,३. णमोकार महामंत्र विधान उक्त तीनों विधानों के रचयिता धन्नालाल जैन शास्त्री, केमिकल इंजी. सरल सुबोध एवं हृदयस्पर्शी काव्य रचना में सिद्धहस्त विद्वान हैं। इन विधानों की रचना सरल, सुन्दर काव्यों में भक्ति-भावना से प्रेरित होकर आगमानुसार की गई है। छन्दों की लयवद्धता व शब्दचयन आदि का विशेष आकर्षण उक्त विधानों में पाया जाता है। उक्त रचनाओं के द्वारा विशुद्ध सनातन जैन दर्शन के अनुरूप पूजन-विधान पद्धति की रिक्तता को धन्नालाल जी ने पूर्ण किया है। अतः वे वधाई के पात्र हैं। रचनाओं का प्राप्ति स्थान - धन्नालाल जैन शास्त्री जैन साहित्य सदन, दि. जैन लाल मंदिर ११८/१७९ कौशलपुरी, कानपुर (उ.प्र.) (लाल किले के सामने) नई दिल्ली - ६ (०५१२-२२९७३८४) अमर ग्रंथालय, दि. जैन उदासीन आश्रम, महात्मा गांधी मार्ग, इन्दौर (म.प्र.) सम्पादक 26 जनवरी 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524281
Book TitleJinabhashita 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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