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________________ इसलिए आज भट्टारक आंतककारी व्यवहार नहीं कर पाते हैं।। और प्रचार-प्रसार में लगे हुए हैं और अपने परमात्म स्वरूप किंतु पुस्तक में जो कुछ लिखा है वह तत्कालीन घटनाओं के | परमेष्ठी पद के गौरव को भुलाकर अपने ही हाथों अपने विश्व आधार पर लिखा है। हमने कब और कहां लिखा है कि ऐसा | कल्याणकारी धर्म का अवर्णवाद कर रहे हैं। स्वाभाविक रूप से आज भी हो रहा है। आश्चर्य है कि आपने उस पुस्तक में वर्णित | प्रत्येक व्यक्ति लौकिक वैभव की प्राप्ति और लौकिक व शारीरिक सभी घटनाओं को आज की घटना समझकर हमसे भट्टारकों के | संकटों से मुक्ति में सुख का अनुभव करता है और सरागी देवी नाम पूछ रहे हैं। परंतु बंधुवर आपका ध्यान इस मूल तथ्य की | देवताओं की आराधना से उन प्रयोजनों की सिद्धि का लोभ दिए ओर नहीं गया कि सभी भट्टारक आज भी भ्रष्ट मुनि के रूप में | जाने पर वह उस ओर सहज ही उन्मुख हो जाता है। वीतरागता विद्यमान हैं, अपने आपको मुनिव्रत नमोऽस्तु करवाते हैं, अर्घ और अध्यात्म तत्व की बात मोह की गहनता के कारण सरलता चढ़वाते हैं, पूजा करवाते हैं तथा पाद प्रक्षालन करवाते हैं। संयम | से स्वीकार्य नहीं हो पाती। चिन्ह पीछी रखते हैं किंतु उसके घोर अवर्णवाद स्वरूप पूरे आरंभ जन साधारण में मुनियों के प्रति श्रद्धा एवं आदर की परिग्रह में लिप्त रहते हैं। कृपा करके आप ही बता दीजिए वे मुनि | भावना पाई जाती है। इसी श्रद्धा को भुनाकर कतिपय मुनिराज हैं या श्रावक और यदि श्रावक हैं तो उनके कौनसी प्रतिमा के व्रत | श्रावकों को धर्म के नाम पर भट्टारकों द्वारा स्थापित परंपराओं में हैं जिनको वे निरतिचार पालन कर पाते हैं। क्या वस्त्रधारी, परिग्रह | उलझा रहे हैं । मिथ्यात्व पोषण के नए-नए आयाम स्थापित किए धारी को मुनि अथवा धार्मिक गुरु जैन दर्शन स्वीकार करता है? | जा रहे हैं। आज वीतरागी प्रमुख पूजा आराधना के स्थान पर अग्रज विद्वान आपने हमें चुनौती दी है कि हमारे आक्षेपों | सरागी देवी-देवताओं की पूजा आराधना एवं अनुष्ठान का अधिक के उत्तर में आपके पास इतनी सामग्री है कि शायद आपको एक | प्रचार हो रहा है। वीतराग धर्म की आराधना के पर्व अब गौण हो पुस्तक लिखनी पड़े। प्रेमी जी के बारे में भी आपके पास इतना | रहे हैं और नवरात्री आदि को मुख्यता दी जा रही है। वीतरागता मसाला है कि आप सामने लायेंगे तो बड़ा संकट पैदा हो जायेगा। | और अध्यात्मपरक साहित्य का स्थान मंत्र-तंत्र की साधना ले रही आप बड़े हैं, आपकी चुनौती को हम आशीर्वाद मानकर स्वीकार | है। महान परमेष्ठी पद पर प्रतिष्ठित हमारे मुनिराज अब नग्न भट्टारक करते हैं। आपकी विद्वतापूर्ण पुस्तक हमें और सबको पढ़ने को | के रूप में भट्टारक पंथ के प्रचार में संलग्न हो रहे हैं। धार्मिक प्राप्त होगी यह हमारा व सबका सौभाग्य होगा। स्व. प्रेमी जी के | क्षेत्र में यह प्रत्यक्ष इस कलिकाल का प्रभाव दृष्टिगोचर हो रहा है। बारे में भी जो तथ्य हों पाठकों के सामने नि:संकोच रखिए। संकट | प.पू. आचार्य वर्द्धमान सागर जी के निर्देशानुसार में श्रवण की चिंता मत कीजिए। आपके मन में साहस है और लेखनी में | बेलगोल श्री भट्टारक चारूकीर्ति जी से चर्चा करने गया था। तीन शक्ति। आपने अब तक के लेखन में संकट की कब चिंता की है? | दिन दो अढाई घंटे प्रतिदिन चर्चा हुई। भट्टारक जी ने अत्यंत फिर अब क्यों? आपके आगामी लेखन की आतुरता से प्रतीक्षा है। | वात्सल्यभाव से चर्चा की। जिनागम के अध्ययन का प्रभाव उनके आप आगमविज्ञ समाज के मूर्धन्य विद्वान हैं। उपाध्यक्ष जीवन और विचारों पर परिलक्षित होता है। उनकी सरलता और होने के नाते महासभा धार्मिक विषयों में आपसे मार्ग दर्शन की | निरभिमानता मिलने वाले को प्रभावित करती है। उनकी अनुमति अपेक्षा रखती है। आगम विरूद्ध लिंग धारण करने वाले भट्टारकों के बिना मैं उनसे हुई चर्चा का विशेष विवरण यहां नहीं दे पा रहा का अपनी साधारण सभा में पारित प्रस्ताव द्वारा समर्थन कर हूँ । किंतु सार रूप में यह कह रहा हूँ कि उनसे सार्थक चर्चा हुई। महासभा वीतरागी दिगम्बर मुनि रूप के साक्षात् अवर्णवाद का | वे दिगम्बर जैन समाज में संगठन और एकता के पक्षधर हैं। समर्थन एवं दिगम्बर जैन धर्म के सिद्धान्तों का हनन कर रही है। | उनका विचार है कि वे चातुर्मास के पश्चात् वे दक्षिण भारत के ___ इन दिनों भट्टारकवाद ने एक नई दिशा में अपने पांव | लगभग १० भट्टारक महोदयों को साथ लेकर प.पू. आचार्य पसारे हैं । सवस्त्र भट्टारकों के अतिरिक्त अब नग्न भट्टारकों का | विद्यासागर जी महाराज के दर्शन करने और उनके साथ चर्चा दल निर्मित हो रहा है। एक नग्न मुनिराज ने अपने आपको भट्टारक | करने आयेंगे। आगम के अनुसार भट्टारक संस्था का स्वरूप र ही दिया है। अन्य अनेक मुनि महाराज अघोषित | निर्धारण किया जाना सभी धर्म श्रद्धालु चाहते हैं। किंतु स्थापित भट्टारक के रूप में कार्य करने लगे हैं। जिन ब्राह्मण भट्टारकों ने | परंपराओं के मोह से मुक्त नहीं हो पाने की समस्या का समाधान पूर्व में दिगम्बर जैन धर्म के वीतरागी देवशास्त्र गुरु की आराधना | कठिन दिखाई देता है। के वैज्ञानिक भाव पक्ष के स्थान पर ब्राह्मणवाद के भाव विहीन | सम्माननीय पं. नीरज जी की विद्वता, अनुभव और लेखनी क्रियाकांड और सरागी देवी देवताओं की पूजा आराधना की | का मैं सदैव प्रशंसक रहा हूँ और उनका आदर करता हूँ। दि. जैन परंपराओं के बीज बोये थे और परंपराओं के समर्थन में छद्मरूप | समाज उन जैसे विद्वान से सदैव दिशा निर्देश प्राप्त करने का से जैन साहित्य का सृजन किया था, आज हमारे दिगम्बर मुनि | आंकाक्षी है। मैं उनसे उम्र और ज्ञान दोनों में छोटा हूँ। कभी भी राज ही स्वयं अपनी पूरी शक्ति से उन विकृत मान्यताओं के पोषण | किसी भी स्थिति में उनका अविनय करने की मेरी भावना नहीं है। जनवरी 2003 जिनभाषित 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524281
Book TitleJinabhashita 2004 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2004
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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