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________________ समाचार मुनिश्री प्रवचनसागर का समाधिमरण आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य परम | घटना किसी के साथ घटे तो संयम के साथ घटे । वर्तमान में जो पूज्य १०८ मुनि श्री प्रवचनसागर जी की श्रद्धांजली सभा का लोग यह कहते हैं कि आज भावलिंगी संत (साधु) नहीं होते आयोजन परम पूज्य मुनिश्री अजितसागर जी एवं ऐलक श्री परन्तु उनको ऐसी घटना एक क्षण जाकर देखना चाहिए। कुत्ते के निर्भयसागर जी के सान्निध्य में दिनांक २९.११.०३ को मोराजी काटने पर कुत्ते जैसी ही प्रक्रिया होने लगती है। परन्तु इस प्रकार वर्णी भवन में किया गया। की किसी भी बाह्य प्रकार की प्रक्रिया नहीं होने दी। उन्होंने कहा पूज्य १०८ मुनि श्री अजितसागर जी महाराज ने कहा कि कि हमने सुना था कि भगवान पार्श्वनाथ, मुनि सुकमाल, मुनि इस संसार में जो भी प्राणी आता है वह जानता है कि एक दिन | सुकौशल आदि पर उपसर्ग हुआ और उन्होंने उस उपसर्ग को मरण भी होगा परन्तु ऐसे व्यक्ति बहुत कम होते हैं कि जिस दिन चतुर्थकाल में सहन किया था परन्तु आज चारित्रिक दृढ़ता के धनी जन्म हो उसी दिन मरण हो जाये पर मैं जिस साधक के बारे में | एवं संयमी मुनि श्री १०८ प्रवचनसागर जी ने साक्षात् दिखा दिया। कह रहा हूँ उनका जन्म भी २९ नवम्बर सन् १९६० को हुआ था | ऐसे धन्य हैं माता-पिता, जिन्होंने ऐसे संस्कार दिये पूज्य मुनि श्री एवं सामधिमरण भी २९ नवम्बर २००३ को हुआ। गुरु के उपकार | ने ६ वर्ष तक अपनी निर्दोष मुनि चर्या का पालन किया और मुनि का बदला हम इस जन्म में क्या अनेक जन्मों में भी नहीं चुका | बनके जिनकी सल्लेखना हो जाए तो उसका जीवन इस संसार में सकते हैं। मुनि श्री प्रवचनसागर जी का जब स्वास्थ्य बिगड़ने | अधिक से अधिक ७-८ भव या कम से कम २-३ भव ही बाकी लगा तब अपने गुरुदेव आचार्य श्री विद्यासागर जी के पास दो शब्द | रहते हैं। मनि एक नक्षत्र के समान हआ करते हैं और आचार्य सर्य लिखकर भेजे, हे गुरुवर, एक अभागा मुनि आपके दर्शन के | के समान। आज एक नक्षत्र हमारे बीच से चला गया। मुनि अभाव में आपके चरणों में एक भावना करता है कि मेरी समाधि | प्रवचनसागर जी के रूप में उन्होंने कहा संत, सैनिक एवं शिशु असंयमी जैसी न हो मैं संयमी हूँ एवं मेरी समाधि भी संयमी जैसी। मौत से नहीं डरते। संत यह सोचता है कि धर्मध्यान पूर्वक मौत हो हो। तब गुरुवर के वहाँ से आशीर्वाद आया कि प्रवचनसागर जी तो मुझे किसी भी प्रकार की चिंता नहीं है। आज हम सब यही यह शरीर रत्नत्रय के पालन में सहायक होता है तो इसकी देखरेख | भावना करें कि हमारा मरण भी समाधि पूर्वक हो, शिव सुख की करनी चाहिए परन्तु शरीर के लिए रत्नत्रय धर्म को कभी नहीं प्राप्ति हो, उनका भी कल्याण हो। हे गुरुवर आपके चरणों में मेरी छोड़ना। यह शरीर अभी चला जाय तो कोई बात नहीं, यह शरीर | भी समाधि संयम के साथ हो यही भावना हम सबकी कल्याण की तो व्याधियों का मंदिर है। आप अपने आत्म विश्वास को बनाये रखना, साधु का सही उपचार आत्म-विश्वास हुआ करता है एवं | | ब्र. विनोद भैया ने कहा कि मुनि श्री की समाधि बहुत ही आचार्य श्री ने उनको बहुत-बहुत आशीर्वाद दिया। मुनि श्री की संयम एवं साधना के साथ हुई, उन्होंने इस शारीरिक परिषह को ब्रह्मचारी अवस्था का संस्मरण सुनाते हुए कहा कि मैं एवं मुनि श्री इस तरह सहन किया जैसे कोई भावलिंगी मुनि ही करते हैं। प्रवचनसागर जी ब्रह्मचारी अवस्था में थे तब मेरा नाम ब्र. विनोद | | उन्होंने कहा कि मैं शिखर जीकी वंदना करके उनका ही आशीर्वाद एवं उनका नाम ब्र. चन्द्रशेखर था। ब्र. विनोद ने कहा कि भैया लेकर गया था और जब आया तो उनके जीवन के अंतिम क्षण हमें मक्सीजी की वंदना करने चलना है तब ब्र. चन्द्रशेखर ने कहा | चल रहे थे, शरीर निरंतर क्षीण हो रहा था, परन्तु उनकी आत्म कि मैं ६ बजे के पहले नहीं चल सकता उन्होंने कहा क्यों पूजन जागृति पूरी बनी हुई थी, मुनि श्री ने मुझसे कहा कि कितनी वंदना पाठ एवं दैनिक क्रियाएँ करके चलेंगे तो ब्र. विनोद ने कहा कि की, तब मैंने कहा कि चार वंदना की एवं मैंने आपकी ओर से भी गाड़ी में बैठकर पूजन कर लेना वे कहने लगे कि आप लोग आज | सभी टोंकों पर नमोस्तु किया तब उन्होंने पिच्छी हाथ में लेकर ३इस प्रकार पूजन का कह रहे हैं कल कहेंगे कि गाड़ी में बैठकर | ३ आवर्त करके पूरी सम्मेद शिखर जी की भाव वंदना की। भोजन भी कर लेना और इस अपने ब्रह्मचर्य व्रत को दोष ब्र. राकेश जी ने कहा परम पूज्य मुनि उत्कृष्ट आचार्य संघ लगाओगे। इस प्रकार की चर्या पू. मुनि श्री जी ने ब्रह्मचर्य अवस्था | में सभी साधुओं की अपेक्षा अपनी मुनि चर्या को उत्कृष्ट पालन से ही की थी। इस प्रकार साधु का अंतिम लक्ष्य समाधिमरण होता करने को चेष्ठा करते थे वे हमेशा एवं अंत समय तक यह अनुभव है जो उन्होंने उसको प्राप्त किया। करते रहे कि मैं मुनि हूँ एवं मुनि चर्या का पालन करना है। मैं परम पूज्य ऐलक श्री निर्भय सागर जी महाराज ने कहा भावना करता हूँ कि उनको शिव सुख की प्राप्ति हो एवं अगले कि इस ससार को यही परिणति है पता नहीं कब क्या हो जाता है। जीवन में भी हमें मार्गदर्शन देते रहें। ऐसा किसी को अहसास नहीं था कि यह भी हो जायेगा। ऐसी प्राचार्य दयाचन्द शास्त्री जी एवं नाथूराम जी पटनावालों ने - दिसम्बर 2003 जिनभाषित 29 | रहे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524280
Book TitleJinabhashita 2003 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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