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________________ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र बानपुर कैलाश मड़बैया मध्य-देश के बुन्देलखड में जैन तीर्थ-क्षेत्रों की न केवल । कलात्मक होने के कारण दर्शनीय भी है। संख्या अधिक है वरन् शिल्प की गुणवत्ता भी उच्च स्तरीय है। एक | अतिशय तरफ जहाँ खजुराहो जैसा अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति का कला-तीर्थ है । बीसवीं सदी के तीसरे दशक तक यहाँ स्थित जैन क्षेत्रपाल वहीं देवगढ़ जैसा आध्यात्मिक, शिल्पगढ़ और कलात्मक दृष्टि से | निर्जन होने के कारण चोरों के छिपने का अड्डा बन गया था। तभी भी सम्पन्न तीर्थ विद्यमान है। यहाँ एक जिन छुल्लक महाराज श्रुतिसागर जी पधारे और कुछ ऐसा उ.प्र. में स्थित देवगढ़ और म.प्र. में स्थित खजुराहो के अतिशय हुआ कि वे इसी क्षेत्र पर ठहर गये और जैन धर्मावलम्बियों बीच फैले बृहद बुन्देलखण्ड में जैन तीर्थ क्षेत्रों की विशद श्रृंखला को प्रेरित कर इसे जैन तीर्थं के रूप में पुनर्स्थापित कर जीर्णोद्धार है। इनमें सेरोन, पवा, द्रोणगिरि, मदनपुर, बानपुर, पपौरा, अहार कराते हुय आबाद करा दिया। एक नागराज और एक बंजारे की आदि उल्लेखनीय हैं । इतिहास और पुरातत्व की दृष्टि से इनमें बानपुर किंवदंतियाँ भी यहाँ थी पर उन्हें प्रमाणिकता नहीं मिल सकी । क्षेत्र विशेष रुप से रेखांकित किये जाने बाला जैन तीर्थ है। की मुख्य मूर्ति शांतिनाथ तीर्थंकर प्रतिमा के अपने आप बढ़ते रहने बानपुर क्षेत्र का वर्तमान, अतीत की तुलना में अत्यन्त | की जन श्रुतियाँ भी सुनने को पहले मिल जाती थीं जो अब चुक उपेक्षित है। उ.प्र. के ललितपुर जिले का यह कस्बा, टीकमगढ़ गई हैं। मार्ग पर पड़ता है। ललितपुर से बानपुर मात्र ३५ किलोमीटर और पुरातत्व बानपुर से टीकमगढ़ केवल दस किलोमीटर प्रशासनिक एवं बानपुर में स्थित दो प्राचीन जैन मंदिरों के अतिरिक्त महरौनी राजनैतिक दृष्टि से यह उत्तर प्रदेश और व्यापारिक एवं व्यावहारिक मार्ग पर २८०४२०० फुट के प्रांगण में प्राचीन जैन मंदिरों का एक रुप से यह मध्यप्रदेश से जुड़ा हुआ है। परिणामतः दोनों सरकारों समूह स्थित है। इस तीर्थ क्षेत्र को पहले यहाँ क्षेत्रपाल ही कहते थे। की दृष्टि से ओझल है। मंदिर संख्या-एक एवं दो । उपरोक्त के बावजूद बानपुर देश की स्वतंत्रता में राजा मर्दन नागर शैली शिखर युक्त इस संयुक्त जिनालय के प्रथम सिंह की कुर्वानी, जैन क्षेत्र स्थित दसवीं सदी के कलात्मक सहस्रकूट बाह्य भाग में ५'४" उतुंग खड़गासन तीर्थंकर एवं अन्दर की चैत्यालय और अद्वितीय गणेश जी की बाइस भुजाओं वाली प्रतिमा वेदिका पर सं. ११४२ की पद्मासन प्रतिमा तीर्थंकर ऋषभनाथ की के कारण जागरुक सामान्य जन की दृष्टि से ओझल नहीं है। तो है। लगे हुये दूसरे मंदिर के बाह्य भाग में ८ फुट उत्तुंग शान्तिनाथ आइये, क्रमशः संक्षेप में बानपुर जैन तीर्थ के दर्शन करें एवं अन्दर के भाग में ८ फुट ६ इंच ऊँची तीर्थंकर की मूर्ति इतिहास खड़गासन में दर्शनीय है। भारत के १८५७ कालीन प्रथम स्वाधीनता संग्राम में बानपुर | मंदिर संख्या-तीन . के राजा मर्दन सिंह ने उल्लेखनीय एवं महत्वपूर्ण स्वतंत्रता संग्राम इस मध्य-मंदिर की मण्डपाकार संरचना में मुख्य द्वार के कर झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को न केवल सहयोग किया वरन् ऊपरी तोरण पर क्षेत्रपाल प्रतिमा जड़ी हुई है और बाह्य दीवालों पर स्वराज्य की स्थापना हेतु समूचे बुन्देलखण्ड में विदेशी सत्ता के तीनों ओर पौराणिक प्रतिमाओं का खजुराहो-शिल्प सा उत्कीर्णन है, विरुद्ध संगठन तैयार कर नींव शिला का कार्य किया था। मर्दन सिंह जिनमें शासन देवी-देवता, शिव पार्वती आदि के कलात्मक दृश्य हैं। ओरछा गद्दी की वंश परम्परा में ही राज्य के विभाजन उपरांत अन्त: वेदिका पर सं. १५४१ की धवल श्वेत संगमरमर से बानपुर में सिंहासनारुढ़ हुये और अपने साहस एवं शौर्य से खोये निर्मित पद्मासन तीर्थंकर की प्रतिमा और श्री चरण जी विराजमान हैं। हुये क्षेत्रों को प्राप्त कर, चंदेरी तालबेहट क्षेत्र भी बानपुर में सम्मिलित कर लिया था। अंततोगत्वा संघर्ष करते करते अंग्रेजों ने उन्हें 'बड़े बाबा' का मंदिर नजरबंद कर लिया और स्वतंत्रता के लिये संघर्ष करते हुए वे २२ यह एक विशिष्ट जिनालय है जिसमें सं. १००१ की १८ जुलाई १८७९ को गौ-लोकवासी हुये। फुट उत्तुंग तीर्थंकर शांतिनाथ की विशाल और भव्य खड़गासन बानपुर अपनी वर्तमान ऐतिहासिक धरोहर के साथ ही मूर्ति के दोनों ओर तीर्थंकर कुन्थनाथ एवं अरहनाथ की सात सात अतिशय जैन तीर्थ की कलात्मक धरोहर के लिये भी दर्शनीय है। फुट खड़गासन प्रतिमायें अवस्थित हैं। यह त्रिमूर्ति अत्यंत आकर्षक यहाँ का सहस्रकूट चैत्यालय सचमुच अद्वितीय है । अत्यंत प्राचीन और चमत्कारिक है। यद्यपि इस तरह की त्रिमूर्ति की संरचनायें शिल्प और तीर्थंकर-मूर्तियाँ तो उल्लेखनीय हैं ही। पार्वती नंदन बुन्देलखण्ड के अन्य कतिपय तीर्थों में भी दर्शनीय हैं पर बानपुर गणेश की भी भारत प्रसिद्ध पाषाण प्रतिमा बानपुर के गणेश गंज में के इस तीर्थ की त्रिमूर्ति पर स्थित शिलालेख से जहाँ इसके निर्माण दर्शनीय है। कस्बे का बडा जैन मंदिर न केवल प्राचीन है वरन । सम्बत् १००१ को प्राचीनता सम्बन्धी पुष्टि होती है वहीं मूर्ति पर 8 दिसम्बर 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.524280
Book TitleJinabhashita 2003 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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