SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ घोषित दान की अनुपलब्धि ब्र. शांति कुमार जैन धार्मिक आयोजन/कार्यक्रम सामाजिक शक्ति/सहयोग से । संख्या में है। दान की घोषणा करने वाले पुण्यात्मा प्राणी तो राशि ही होते हैं। समाज में से ही कुछ कार्यकर्ताओं को पदाधिकारी के बिना दिये ही चले गये साथ ही उनका पुण्य भी चला गया। वंशधर रूप में चुन लिया जाता है । वे ही आयोजन की व्यवस्था समाज के | जो पीछे रह गये उनके पास पुण्य नहीं था। राशि डूब ही गई। सामान्य जन समुदाय के सहयोग से करते हैं । ऐसे धार्मिक आयोजन | ऐसी स्वीकृत राशि की अदायगी के लिए अदालत में सम्पूर्ण समाज की कर्तव्य निष्ठा से ही सफल हो पाते हैं। विवाहादि मुकदमा होता नहीं। जोर जबरदस्ती से तकादा कर नहीं सकते। की तरह ये आयोजन व्यक्ति विशेष के नहीं होते। ऐसे आयोजनों भुगतान में अक्षम व्यक्तियों के नाम की तालिका भी प्रकाशित करके में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव, मंडल विधान पूजा महोत्सव | मंदिर में लगाने से उनकी मानहानि एवं विसम्बाद का डर महामस्तकाभिषेक महोत्सव आदि मुख्य हैं। इसकी व्यवस्था में | पदाधिकारियों को रहता है। पूर्व में प्रचलित सामाजिक बहिष्कार प्रचुर धनराशि खर्च होती है जिसको बोलियों की घोषणा-स्वीकृति एवं दण्डप्रथा किसी भी बड़े से बड़े घृणित पाप के लिए भी समाज के माध्यम से आय के द्वारा संग्रहीत किया जाता है। दे नहीं सकती। ऐसी विकट समस्या को उत्पन्न करने वाले तथा अब समाज के अन्दर समस्या तब बन जाती है जब कि कथित महानुभाव महापाप का ही बंध करते हैं कारण धर्म एवं बोलियाँ लेने वाले एवं दान की घोषणा करने वाले महानुभाव यथा समाज परस्पर एक दूसरे पर आधारित है। समय घोषित राशि को देते नहीं हैं। बार-बार ससम्मान निवेदन । समाज की नीति धर्म का आदर बहुमान पूर्व में राजा भी करने पर भी वे देने में उदासीनता प्रदर्शित करते हैं अथवा अनेक करते आए हैं। आज सरकार भी करती है। व्यक्ति को अपने प्रकार के कारण एवं बहाने बाजी बताते हैं। कर्त्तव्य/अधिकार के प्रति विवेक पूर्ण जागरूकता रखनी चाहिए। ___ कार्यकर्ता पदाधिकारी जन खर्चकी राशि का भुगतान सम्बन्धित समस्या को उजागर करने के सन्दर्भ और भी कुछ अन ठेकेदार/मजदूरों को उचति समय पर कर नहीं पाते। वे एक विकट कहीं बातें रह गईं जिसे सभी जानते हैं। अब समाधान के लिए कुछ समस्या से घिर जाते हैं। मंदिर आदि का कुछ अधूरा निर्माण कार्य पूर्ण बिन्दुओं पर विचार करना है। 1. समाज की आम सभा में इस समस्या के निराकरण हेत नहीं कर पाते। वर्षों तक यह समस्या बनी रहती है। बोलियाँ लेने वाले अथवा दान की घोषणा करने वालों का कुछ नियम स्पष्ट रूप से बनाकर सभा की पुस्तक में लिपि बद्ध करना चाहिये। यह असहयोग पूर्णतया न्याय नीति के विरूद्ध अधर्म है। दान की 2. आयोजन में बोलियों के पूर्व प्रतिदिन यह घोषणा करनी स्वीकृत राशि धर्मायतन की अमानत धरोहर हो जाती है। उसे अपने चाहिये कि बोली एवं दान की घोषित राशि एक माह के अन्दर पास रखना महादोष है। शीघ्रताशीघ्र उसे दे देना ही परम उचित भुगतान करना पड़ेगा। कर्तव्य है। देने में विलम्ब करने से हो सकता है कि कालान्तर में 3. विलम्ब से देने वाले को बोली के लेने के दिन से देने की क्षमता ही नहीं रहे अथवा दान की स्वीकृति देने वाले का प्रचलित कर्ज पर लगने वाले ब्याज की बैंक की दर से चक्रवृद्धि ही देहावसान हो जाय।। उत्तरीधिकारी निषेध कर सकते हैं । बोली रूप से लगेगा। लेने वाले महाशय के सिर पर इस कर्ज का पाप-चढ़ेगा। यह 4. पूर्व की बोली/घोषणा की राशि नहीं देने वाले को धर्मायतन के धन का कर्ज है। वे व्यक्ति विशेष यदि बोली नहीं लेते परवर्ती आयोजन में बोली नहीं लेने दी जायेगी। तो अन्य कोई समयपर भुगतान करने वाले सज्जन पुरुष बोली लेते 5. एकवर्ष से अधिक विलम्ब करने वाले के व्यक्तिगत तो फिर सभी कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न हो जाते। समाज में सामाजिक/धार्मिक/विवाह, गृह प्रवेश, जन्मोत्सव, प्रतिष्ठान, समस्याएँ नहीं बन पाते ये धार्मिक महा प्रभावनाकारी आयोजन। उदघाटन, कार्यशाला/फेक्टरी उद्घाटन, भोज, इत्यादि आयोजनों स्वयं तो घाषित राशि देते नहीं, दूसरे को बोली लेने दिया | में समाज का पूर्णतया अघोषित मौन असहयोग रहेगा। नहीं यह विघ्न डालना भी अन्तराय कर्म का बंध कराता है। यह | 6. दो वर्ष के पश्चात ऐसे अक्षम व्यक्त्यिों के नाम की अन्याय एवं अनीतिपूर्ण कार्य है जिसका फल पदाधिकारियों को | तालिका मंदिरजी में प्रदर्शित कर दी जायेगी। भुगतान मांगने वालों के समक्ष लज्जित-अपदस्थ अपमानित भी बाहर के दानदाताओं को इन नियमों की जानकारी बोली होना पड़ता है। गैर समाज के बीच अपनी समाज बदनाम होती है। बोलने के पूर्व दे दी जानी चाहिये। इस बात का डर-भय शंका भी बोली बोलते समय समाज के गणमान्य व्यक्ति परस्पर में नहीं करनी चाहिए कि ऐसी घोषणा से बोलियों की राशि कम स्पर्धा एवं मान अभिमान के वशीभूत होकर शक्ति सामर्थ से अधिक आयेगी। बोली बोलकर नहीं देने वालों के स्थान पर भक्ति श्रद्धा बोली बोल तो देते हैं पर राशि को देने में कष्ट होता है। यह सम्पन्न यथा समय भुगतान करने वाले योग्य साहूकार व्यक्ति को अविवेक उनका सर्वनाश का कारण भी बन सकता है। सोच समझ ही आयोजन में सम्मिलित होने के पद को प्राप्त करने का समीचीन कर बोलना चाहिये बाद में घोषित राशि नहीं देने से भी तो समाज | अधिकार होना चाहिए। समाज के गणमान्य एवं विद्वान व्यक्तियों में उनका मान सम्मान आघात को प्राप्त होता ही है। को भी इस समाधान हेतु अपनी लेखनी के द्वारा मार्गदर्शन देना अनेक तीर्थक्षेत्रों में अनुपलब्ध घोषित राशि बड़ी-बड़ी । चाहिये। कोई भूल हुई होतो क्षमा करें। -नवम्बर 2003 जिनभाषित 7 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524279
Book TitleJinabhashita 2003 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy