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________________ अभी अधूरा है वैशाली का इतिहास नम्रता शरण ऐतिहासिक गाथाओं में वर्णित वैशाली लगभग 2500 | बनाना शुरू कर दिया। बाद में 1972 में इस संग्रहालय पर वर्ष पुराना इतिहास अपने में समेटे हुए है। छठी शताब्दी ई.पूर्व में | सरकार की नजर पड़ी और सरकार ने इसे अपने अधिकार में ले यह शक्तिशाली लिच्छवी गणराज्य की राजधानी थी। 1600 | लिया। अब बिजलीप्रसाद के पुत्र रामबलेश्वर सिंह के निरीक्षण साल पहले सम्राट अशोक कलिंग की चढ़ाई के बाद बौद्ध धर्म में खनन का कार्य किया जा रहा है। इस सबसे पहले ब्रिटिश अपना कर धर्म प्रचार में लग गए थे। उन्होंने वैशाली समेत देश | सरकार ने भी 1901-02 में खनन कार्य करवाया था, जिसमें के कई भागों में बौद्ध स्मृति स्तंभों का निर्माण करवाया था। बौद्ध कालीन और गुप्तकालीन अवशेष प्राप्त हुए हैं। वैशाली का वैशाली में उनके द्वारा स्थापित स्मृति स्तंभ की खास | इतिहास अत्यंत विस्तृत है। चौबीसवें तीर्थंकर महावीर के बात यह है कि यह जितना जमीन के अंदर है (17 मीटर) उतना | जन्मस्थल का गौरव भी वैशाली को ही प्राप्त है। कहा जाता है ही जमीन के बाहर (17 मीटर) भी। इसकी गोलाई 3.5 मीटर | कि महात्मा बुद्ध ने अपने निर्वाण की घोषणा यहीं चापाल चैत में है। सम्राट अशोक ने सारनाथ में 32 बौद्ध स्मृति स्तंभों का | दिन के 10 बजे की थी। घोषणा के तीन महीने बाद उन्होंने निर्माण करवाया था। इन सभी स्तंभों पर पाली भाषा में धर्मोपदेश | कुशीनगर (उत्तरप्रदेश) में निर्वाण प्राप्त किया। तत्पश्चात उनके खुदवाए गए थे। इन चौमुखी स्तंभों के निर्माण का उद्देश्य चारों शरीर के पवित्र भस्म को 8 भागों में बांटा गया। लिच्छवी वंश दिशाओं में धर्म प्रचार करना था। इसी चौमुखी अशोक स्तंभ को | के राजा चेतक ने उस भस्म के 10 औंस को लेकर ठीक उसी आजादी के बाद राजकीय प्रतीक के रूप में स्वीकार किया गया, जगह स्तूप का निर्माण करवाया जहां बैठकर बुद्ध ने अपने परन्तु वैशाली के अशोक स्तंभ अन्य अशोक स्तंभों से कुछ निर्वाण की घोषणा की थी। बाद में सम्राट अशोक ने उस स्पूत अलग हैं। इस पर खुदे धर्मोपदेश शंख लिपि में अंकित हैं, जिन्हें | को खुदवाकर उसमें से 9 औंस भस्म निकालकर अलग-अलग आज तक पढ़ा नहीं जा सका है। महान् परंपराओं से परिपूर्ण इस | 85 स्तूपों का निर्माण करवाया। इतिहास को खोजने का कार्य सर्वप्रथम 1861-1913 के मध्य | वर्तमान में इन्हें सुरक्षित रखने के लए ईंटों से घेर दिया किया गया, जिससे शुंग, कुषाण और प्रारंभिक गुप्तकाल के | गया है। 1958 में एक बार फिर खनन का कार्य के.पी. जायसवाल प्रमाण प्राप्त हुए। खुदाई के दौरान गुप्तकालीन मुहर, मुद्रा, पक्की (रिसर्च सेंटर) तथा पटना के डॉ. माल्टेकर के माध्यम से और ठप्पेदार मृद भाण्डों तथा पाल कालीन खंडित अभिलेख | रामबलेश्वर सिंह के संरक्षण में हुआ जिसमें बुद्ध की लेटी हुई एवं कांच के टुकड़े भी प्राप्त हुए। खनन के दौरान शुंग और | मूर्ति, पत्थर की मंजूषा और कुछ रत्न मिले जो फिलहाल पटना कुषाण काल के संकलित छोटे-छोटे स्तूपों के अवशेषों के साथ- | संग्रहालय में सुरक्षित रखे हैं। बारंबार खुदाई के जरिए वैशाली साथ सर्प हवन कुंड भी मिला है, जिसमें सांपों से छुटकारा पाने | में इतिहास खोजने की कोशिशें निरंतर जारी हैं। खनन का कार्य के लिए उनका हवन किया जाता था। 1935 में स्व. बिजलीप्रसाद | चल रहा है और लगता है कि भविष्य में इतिहास की कई और सिंह ने निजी स्तर पर खनन का कार्य आरंभ किया और खुदाई परतें खुलने वाली हैं। के दौरान प्राप्त अवशेषों को सहेज कर अपना एक निजी संग्रहालय दैनिक भास्कर, 6 जुलाई, 2003 प्रेक्षा पूर्व प्रवृत्तेन जन्तुना स प्रयोजनः। व्यापारः सततं कृत्यः शोकाश्चायमनर्थकः॥ भावार्थ-विचार पूर्वक कार्य करने वाले मनुष्य को सदा वही कार्य करना चाहिये जो प्रयोजन सहित हो। यह शोक प्रयोजन रहित है, अत: बुद्धिमान मनुष्य के द्वारा करने योग्य नहीं है। प्रत्यागमः कृतेशोके प्रेतस्य यदि जायते। ततोऽन्यानपि संगृह्य विदधीत जनः शुचम्॥ भावार्थ - यदि शोक करने से मृतक व्यक्ति वापस लौट आता हो तो दूसरे लोगों को भी इकट्ठा कर शोक करना उचित है। सितम्बर 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524277
Book TitleJinabhashita 2003 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size8 MB
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