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बोध कथा
घर में भरत वैरागी
किसी नगर में दो सहेलियाँ रहती थीं। उनके नाम थे । के लिए और आपको पिताजी की आज्ञा से सिंहासन पर बैठना क्रमशः मंजू और संजू। एक दिन दोनों वैराग्य की चर्चा करने | है। तुम राज्य मुझे देना चाहते हो तो ठीक है। मैं तुम्हारा बड़ा लगी। मंजू ने कहा-बहिन संज़ ! अब तो सभी के प्रति ममत्वबुद्धि | भाई वह राज्य तुम्हें सोंपना चाहता हूँ।" को छोड़कर आत्मा समत्वबुद्धि में लीन होना चाह रही है। संजू | मंजू ने कहा फिर क्या हुआ बहिन ? भरत ने क्या ने कहा- यह तो बहुत अच्छा है। अच्छे विचार हैं आपके। | किया? क्या वे राज्य करने लगे? संजू ने कहा- बहिन ! भरत आत्मोन्नति के लिए प्रेरणादायी हैं। भारतीय संस्कृति आज जीवित | करते भी तो क्या? उन्हें एक तरफ पिता की आज्ञा और ज्येष्ठ है तो आत्मोन्नति की घटनाओं से ही जीवित है, धन सम्पदा के | भ्राता जो पिता तुल्य है उनकी आज्ञा का निर्वहन करना था, कारण नहीं। ज्ञान विज्ञान के कारण नहीं बल्कि त्याग और दूसरी ओर भीतर मन में उठती वैराग्य की भावना, मुनि बनने तपस्या के कारण ही भारत भूमि महान् है।
की प्यास भी उन्हें सता रही थी। परीक्षा की घड़ी थी वह यह सुनकर मंजू ने कहा - बहिन संजू ! क्या तुम किसी | उनकी। वैराग्य के आगे वे नत हो गये। उन्हें कहना पड़ा कि ऐसे व्यक्ति को जानती हो जिसने घर में रहकर अद्भुत त्याग | भइया जैसी आपकी आज्ञा । मैं सब मंजूर करता हूँ। किया हो। संजू ने कहा-बहिन जानती हूँ। इस देश में ऐसे महान् मंजू ने कहा बहिन । फिर तो भरत राज्य पाकर बहुत व्यक्तित्व के धनी थे भरत । यहाँ भरत से तात्पर्य मेरा उन भरत से प्रसन्न हुए होंगे। संजू ने कहा नहीं बहिन, नहीं। यह तो उनकी नहीं है जिन आदिनाथ भगवान् के पुत्र भरत चक्रवर्ती के नाम विवशता थी। जानती हो राम से उन्होंने और क्या कहा था? पर यह देश 'भारत' कहलाता है।
उन्होंने कहा था- आपका कार्य अवश्य करूँगा। आपका जैसा मंज ने कहा-बहिन ! चक्रवर्ती भरत की संसार में ख्याति | निर्देशन मिलेगा वैसा ही करूँगा पर मैं आपके चरणचिन्ह सिंहासन सूनी जाती है कि भरत घर में वैरागी' मैं गेहियों में अब तक पर रखना चाहता हूँ। उन्हें ही महान् त्यागी, वैरागी मानती आ रही हैं। यह सुनकर इससे बहिन समझो कि वे कितने बड़े त्यागी थे। उनकी संज ने कहा- बहिन मंजू। मुझे तो लगता है कि वैराग्य के राजा बनने की इच्छा नहीं थी, उन्हें राजा बनना पड़ा था। यही आदर्श गेही पात्र यदि कोई रहे हैं तो वे थे रामचन्द्र के छोटे भ्राता कारण है कि उन्होंने सिंहासन के ऊपर चरण चिन्ह रखे थे। भरत।
उनको तिलक लगाया था और उनकी चरण रज लगायी थी मंजू ने कहा -- बहिन । उनके संबंध में आप क्या । अपने माथे पर तथा प्रजा का संरक्षण किया था, बड़े भाई के वन जानती हो मुझे भी बताइए। संजू ने कहा -- सुनो बहिन ध्यान से। | से लौटने तक। किसी समय अयोध्या में राजा दशरथ राज्य करते थे। इनकी चार | वे घर में रहे, राज्य भी किया पर वैराग्य भाव ज्यों का ग़नियाँ थीं अपराजिता, सुमित्रा, केकया और सुप्रजा। रानी | त्यों बना रहा। भोगों से अरति ही रही। राज काज मात्र करते अपराजिता (कौशल्या) से पदम (राम), सुमित्रा से लक्ष्मण. | रहे। उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम राम की शान को, राजा दशरथ के
और सुप्रजा से उत्पन्न शत्रुघ्न ये चार उनके पुत्र | वंश की और माता की कोख को भी सुशोभित किया। राज्य थे। अपने पूर्व जन्म का वृत्तान्त सुनकर राजा दशरथ जब विरक्त सम्पदा का लोभ उन्हें छ भी न सका। वे तो क्षत्रिय थे क्षत्रिय हो गये तो पिता की विरक्त से भरत भी विरक्त हो गये थे। भरत | कभी पैसे से भूखे नहीं रहते। नीति-न्याय, भक्ति, विनय और घर से न जा सके इसके लिए केकया ने दशरथ से भरत के लिए वैराग्य को एक साथ भरत के जीवन में ही देखा जा सकता है। अयोध्या का राज्य माँगा और राम को चौदह वर्ष का बनवास। घर में रहकर भी भरत का त्याग मय आचरण आदर्श रहा। घर दशरथ ने दोनों बातें स्वीकार की थीं।
में भरत वैराग्यी' यदि इन्हें भी कहा जावे तो कोई अतिशयोक्ति वहिन! भरत को सिंहासन की भूख न थी। उन्हें तो | न होगी। वैराग्य की भूख थी। उन्हें भवन नहीं वन चाहिए था। माँ के | आशय यह है कि ममत्वबुद्धि को छोड़कर समत्व बुद्धि कहने पर उन्हें यद्यपि राज्य मिल गया था परन्तु उन्होंने राज्य | पूर्वक घर में रहकर भी आत्मोन्नति की ओर मुख मोड़ा जा करने के लिए बार-बार अग्रज राम से आग्रह किया था। इस पर | सकता है और शिव पथ से नाता जोड़ा जा सकता है। राम ने कहा था कि 'भइया मुझे पिताजी की आज्ञा है वन जाने
'विद्या-कथा कुञ्ज'
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