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________________ आपके पत्र, धन्यवाद : सुझाव शिरोधार्य "जिनभाषित" पत्रिका आपके नामानुरूप व्यवस्थित चल | आउट में परिवर्तन किया जा सकता है। डिजाइन के लिए देखें, रही है। अतिशीघ्र ही समाज की प्रिय बन गई है, इसका कारण | आउट लुक (हिन्दी), इंडिया टुडे (हिन्दी), दैनिक भास्कर, (1) जिज्ञासा समाधान, इसमें आगमानुकूल समाधान, जिससे | मधुरिमा, रसरंग आदि। विद्वत्जन भी लाभ लेते हैं, यह इसकी विशेषता है। (2)सम्पादकीय, | 7. शाकाहार तथा अहिंसा संबंधी समाचारों वाली सामग्री जिसमें निरपेक्ष होकर स्वस्थ आलोचना की जाकर समाज को | को भी स्थान दिया जाये। (जैसे पत्रिका शाकाहार क्रांति व तीर्थंकर जागृत किया जाने का प्रयत्न रहता है। (3) इसके लेख, जैसे | में प्रकाशन होता है) अप्रैल की पत्रिका में 'जैन दीक्षा का पात्र कौन' बहुत ही सटीक | 8. जानकारी में आया है कि ग्लेज्ड पेपर (जिसका प्रयोग बन पड़ा है। 'अज्ञान निवृत्ति''सयुंक्त परिवार का अर्थशास्त्र एवं | पत्रिका के आवरण में होता है) को चिकना करने के लिए अण्डे समाज शास्त्र,' महत्वपूर्ण लेख हैं। का इस्तेमाल होता है, यदि यह सही है तो पत्रिका के आवरण के पं. तेजकुमार जैन गंगवाल लिए इस कागज का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। 10/2, रामगंज (जिन्सी) इन्दौर 9. पत्रिका में चित्रों का नितांत अभाव है। इस कमी को पत्रिका के सफलता पूर्ण दो वर्ष पूरे करने पर हार्दिक | | पूरा करें। बधाई। मैं इंदौर से सी.एस. का कोर्स कर रहा हूँ। आपकी पत्रिका | 10. पाठकों के पत्रों में से विशेष पत्र को बॉक्स में प्रकाशित का नियमित पाठक तो नहीं हूँ, परंतु जब भी छुट्टियों में अपने गाँव करें। अन्य पत्रों की विशेष बातों को बोल्ड अक्षरों में छापें। सुलतानगंज (रायसेन) आता हूँ, तो पिछले सारे अंक बड़े ही | मेरी कामना है कि "जिनभाषित"जैन जगत की सर्वश्रेष्ठ चाव से पढ़ता हूँ। पत्रिका का आवरण हर अंक का मनमोहक है, | एवं सर्वाधिक प्रसारित पत्रिका बने। पूज्य गुरुदेव विद्यासागर जी कागज और छपाई भी बहुत ही सुंदर है, अक्षरों का यही फोण्ट | जैसे महान् आचार्य का जब आपको आशीर्वाद प्राप्त है तो पत्रिका हमेशा बनाए रखें। पत्रिका को और भी आकर्षक बनाने के लिए | अपने मिशन को पाने में अवश्य कामयाब रहेगी। जिस तरह मैं यहाँ कुछ सुझाव दे रहा हूँ, आशा है आप उन पर विचार करेंगे- भोपाल, जबलपुर में जैनों के लिए एम.बी.ए., आई.ए.एस., 1. प्रवचन, लेख एवं कविता के साथ प्रवचनकार (आचार्य, आई.पी.एस., पी.एस.सी. आदि के संस्थान खोले गये हैं, उसी मुनि), लेखक एवं कवि का टिकट साइज का स्वच्छ चित्र शीर्षक | तरह अब जैनों को संगीत (गायन, वादन), चित्र कला, खेलों के साथ ही दायीं ओर छापा जाना चाहिए। आदि में प्रतिनिधित्व दिलाने के लिए संस्थान स्थापित करने की 2. प्रवचन, लेख आदि के मुख्यांश को उसके मध्य में एक | महती आवश्यकता है। समाज के श्रेष्ठी वर्ग इस ओर ध्यान देंगे, बाक्स में बड़े फोण्ट में (बोल्ड अक्षरों में) छापा जाना चाहिए। | ऐसी आशा है। 3. ग्रंथ-समीक्षा के साथ पुस्तक का आवरण चित्र भी प्रवीण कुमार जैन "विश्वास" प्रकाशित करें। सी.एस. इंटर सी-117, साँईनाथ कॉलोनी, इंदौर (म.प्र.) 4. संपादकीय के साथ भी सबसे ऊपर बायीं ओर संपादक महोदय का टिकट साइज़ का फोटो छापा जाये। "जिनभाषित" का अप्रैल अंक मिला, धन्यवाद । अंक 5. कुछ और नये स्तंभ शुरू करें, जैसे - बालक जगत, की सामग्री विविध आयामी और विचारोत्तेजक है। बधाई । युवा चेतना, विज्ञान और जैन धर्म, जैन इतिहास से, भूले विसरे मुनिश्री निर्णय सागर जी का आलेख कार्यकारण व्यवस्था' कवि हमारे (उनकी रचनाएँ.साथ ही उनका थोड़ा जीवन परिचय), | का विषय विचारणीय एवं अनिवार्यरूप से ग्रहण करने योग्य है। आओ प्राकृत सीखें (प्राकृत भाषा को सिखाने के लिए) आदि आपके अनुसार 'विगत 200-250 वर्षों के कुछ शास्त्र इसी तरह के अन्य स्तंभ शुरू किये जा सकते हैं। यह आवश्यक स्वाध्यायकारों ने पूर्वाचार्यों की वाणी को न समझते हुए कार्यकारण नहीं है कि सभी स्तंभ हर अंक में छापे जायें, जैसी सामग्री -व्यवस्था को ही बिगाड़ दिया। शुभोपयोग का अभाव शुद्धोपयोग उपलब्ध हो उसी के हिसाब से स्तंभों को स्थान दिया जाये। है और शुद्धोपयोग केवलज्ञान का कारण है।" आदि । मुनिश्री का 6. पत्रिका को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए ले | यह कथन गम्भीर एवं विचारणीय है। -जुलाई 2003 जिनभाषित 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524275
Book TitleJinabhashita 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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