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पाने में असमर्थता प्रगट करते है, अत: पाण्डुलिपि प्रशिक्षण शिविरों
| शास्त्रोद्धार शास्त्र सुरक्षा अभियान के बढ़ते चरण का भी आयोजन करके हम इस दिशा में सफलता प्राप्त करके
- ज्ञान ही मनुष्य जीवन का सार है। ज्ञान के अभाव में पाण्डुलिपियों के सूचीकरण सम्पादन आदि में आशातीत सफल
जगत के सभी प्राणी अंधे हैं। ज्ञान-स्व-पर प्रकाशी है। ज्ञान की हो सकेंगे।
प्रभावना से स्व-पर की प्रभावना हुआ करती है। अनेकान्त ज्ञानमंदिर श्रुतपंचमी और विद्वानों का सम्मान
बीना ने 'शास्त्रोद्धार शास्त्र सुरक्षा अभियान' के अन्तर्गत अनेक __ हमारे विद्वानों ने कठोर परिश्रम करके विषम परिस्थितियों | स्रजनात्मक कार्यों का प्रारम्भ किया है। ज्ञान मंदिर बीना के माध्यम में अनेकानेक ग्रन्थों का सम्पादन एवं अनुवाद करके माँ भारती के से उठी एक चिनगारी ने चहुँ ओर व्यापकता ग्रहण कर ली है। भंडार की वृद्धी करते रहे हैं किन्तु वे विद्वान् अभावों की जिन्दगी स्वाध्याय की प्रवृत्ति को जाग्रत करने के लिए युवा पीढ़ी के लिए ही जीते रहे। श्रुतपंचमी पर्व पर हम विद्वानों को उचित धर्म के संस्कारों से जोड़ने के लिए अनेक स्थानों पर वाचनालयों सम्मान/पुरस्कार आदि देकर उनकी साहित्य साधना में सहायक | की स्थापना का कार्य भी प्रारम्भ किया जा चुका है। बनें एवं विद्वानों को प्रेरित करके अप्रकाशित ग्रन्थों के सम्पादन वर्तमान समय में बालक-बालिकाओं को धार्मिक संस्कार हिन्दी अनुवाद आदि के कार्य को प्रारम्भ करवायें।
देने के लिए रात्रि कालीन पाठशालाएँ पूर्णत: बंद हैं। इसकी पूर्ति श्रतपंचमी पर्व और वाचनालयों की शरुआत । प्रशिक्षण शिविरों के माध्यम से की जा सकती है। पिछले २-३ आज समाज में चारों ओर अशांति, वैमनुष्यता एवं कलह
वर्षों से अनेकान्त ज्ञानमंदिर बीना द्वारा प्राकृत भाषा प्रशिक्षण, नय का वातावरण बना हुआ है, इसका मुख्य कारण स्वाध्याय-ज्ञान
प्रशिक्षण, पूजन प्रशिक्षण, ध्यान प्रशिक्षण आदि के माध्यम से का अभाव है। स्वाध्याय की वृद्धि हेतु संस्कारों की जागृति के
समाज का हर वर्ग लाभान्वित हो रहा है। लिए वाचनालयों की स्थापना करनी चाहिए ताकि समाज में अच्छा
आगम गन्थों का प्रकाशन वातावरण स्थापित हो सके। अनेकान्त ज्ञानमंदिर शोधसंस्थान बीना
अप्रकाशित ग्रन्थों के प्रकाशन के संदर्भ में भी संस्थान ने इस दिशा में १७ स्थानों पर अनेकान्त वाचनालयों की स्थापना
प्रयासरत है। इस वर्ष संस्थान द्वारा आप्तमीमांसावृत्तिः, परीक्षामुख कर उल्लेखनीय कार्य किया है।
प्रश्नोत्तरी, प्रारम्भिक प्राकृत प्रवेशिका एवं प्रारम्भिक नय प्रवेशिका
ग्रन्थों का प्रकाशन किया गया है। निम्न ग्रन्थों का भी सम्पादन श्रतपंचमी पर्व और साधु समाज
कार्य पूर्ण हो चुका है, उदारमना दानदातारों का सहयोग प्राप्त होने प्रारम्भकाल से ही मुनिराजों का समाज में अच्छा प्रभाव
पर ग्रन्थ शीघ्र प्रकाशित हो सकते हैं। रहा है। आज इन्हीं मुनिराजों की पावन प्रेरणा एवं सान्निध्य में
१. आचार्य अनंतवीर्य कृत सर्वज्ञसिद्धि, २. पं. देवीदासकवि बड़े-बड़े कार्यक्रम सफलता पूर्वक आयोजित हो रहे हैं। किन्तु
कृत प्रवचनसार पद्यानुवाद, ३. भारतीय ऐतिहासिक श्राविकायें और प्राचीन आगम के संरक्षण/सम्बर्द्धन की ओर कोई ठोस कार्य नहीं
४. प्रमाणपरीक्षा वचनिका। हो रहा हैं। यदि साधु समाज इस पर्व पर श्रावकों को प्रेरित करके
हमें पूर्ण विश्वास है कि इस दिशा में श्रेष्ठीवर्ग, विद्वत्वर्ग पाण्डुलिपियों को सुरक्षित करवाने की प्रेरणा दे, विद्वानों को उचित
अपना ध्यान आकर्षित कर उपरोक्त ग्रन्थों के प्रकाशन में अवश्य सुविधाएँ प्रदान करवाकर पाण्डुलिपियों का सम्पादन / प्रकाशन
ही सहयोग प्रदान करेगा। करवाया जा सकता है। पूर्ण विनय के साथ साधु समाज से इस
एक जिनवाणी शिशु द्वारा शास्त्रोद्धार शास्त्र सुरक्षा अभियान दिशा में आशा की जाती है। हमारी जैन समाज में उदारमना
का प्रारम्भ सीमित साधनों से प्रारम्भ किया गया था किन्तु इस दानदाताओं की कमी नहीं है। प्रतिवर्ष श्रुतपंचमी पर्व पर एक | पुनीत कार्य में हमें समस्त साधुवृन्दों का आशीर्वाद प्राप्त हुआ, अप्रकाशित ग्रन्थ का प्रकाशन हर नगर की समाज कर सकी तो | विद्वानों की शुभकामनायें साथ ही आगम के प्रति अटूट आस्था महान् कार्य हो सकता है।
एवं समर्पण रखने वाले जिनवाणी सपूतों का आर्थिक सहयोग वस्तुत: यह श्रुतपंचमी पर्व शास्त्र भण्डारों के प्रारम्भ किये | प्राप्त न होता तो आज ज्ञानमंदिर की जो छवि लोगों के हृदय में जाने का पर्व है। आज के दिन हम श्रुत देवी की पूजा उपासना के | अंकित हो चुकी है, वह न हो पाती। साथ संकल्पित हों कि वर्तमान में जितना भी आगम उपलब्ध है, | अनेकान्त दर्पण का यह संयुक्त अंक श्रुतपंचमी पर्व के उसकी पूर्ण सुरक्षा करने में हम तन-मन और धन से सदैव आगे | पुनीत अवसर पर श्रुतोपासकों के लिए समर्पित करता हुआ विराम रहेंगे और माँ जिनवाणी का स्वयं पान करते हुए उसको जन-जन | लेता हूँ।
ब्र. संदीप'सरल' तक पहुँचाने में अग्रसर रहेंगे।
अनेकान्त ज्ञान मंदिर शोध संस्थान, बीना
जून 2003 जिनभाषित
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