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________________ आज महात्मा जी ने पन्द्रह साल सावरमती आश्रम में | सावरमती आश्रम में ब्राह्मण-क्षत्री-वैश्य-शूद्र, मुसलमान, फारसी, तपस्या करने के बाद अहिंसा धर्म का सुदर्शन चक्र लेकर हुकूमत | ईसाई, अंग्रेज, गरज हर एक तबका के लोग रहते हैं। किसी से के साथ टक्कर खाने की ठानी है। अहिंसा धर्म बुजदिली सिखाता | कोई नफरत नहीं की जाती। एक अमरीकन लेडी जिसका नाम है या बेखोफी और बहादुरी, यह आज कोई महात्मा गांधी से | महात्मा गाँधी ने 'मीरा बहिन' रक्खा है, आश्रम में महात्मा जी के दरयाफ्त कर सकता है। आज महात्मा जी का त्याग और तप | साथ रहती है और भी कई अंग्रेज लोग रहते हैं, जो कि महात्मा महावीर भगवान् के राजपाट के त्याग का नजारा फिर आँखों के | गांधी के बड़े भगत हैं। सामने लाकर खड़ा कर देता है। जिस तरह भगवान् महावीर नंगे | जैसे भगवान् महावीर ने हर तरह के कष्ट सहन किये थे, पाँव, नंगे सर और नंगे जिस्म पैदल विहार करते थे आज इसी | लेकिन क्या मजाल जो उफ की हो, इसी तरह महात्मा जी भी तरह महात्मा जी भी कूच कर रहे हैं। आज महात्मा जी की इस | अदमतशदुद से काम ले रहे हैं। चाहे हुकूमत कैद करे, पाँव तले जबरदस्त हुकूमत के साथ टक्कर लेना भगवान् महावीर के उस | कुचले, लेकिन हम अपना हाथ बदला लेने के लिए नहीं उठायेंगे। जमाने की याद दिलाये बगैर नहीं रह सकती जबकि हिंसा के | दरअसल देखा जाये तो महात्मा गांधी के अन्दर भगवान् खिलाफ भगवान् महावीर ने बड़ी जबरदस्त टक्कर ली थी। महावीर के जीवन की सच्ची झलक दिखाई दे रही है। महात्मा आज कई लोग फरमाते हैं कि महात्मा जी की हुकूमत पर | जी को मेरे ख्याल से अगर भगवान् महावीर का पक्का भगत चढ़ाई ऐसी है, जैसे कि रामचन्द्र जी की रावण पर, और कृष्ण जी कहा जाये तो बिल्कुल बजा और दुरुस्त है। अगर जैन धर्म का की कौरवों पर, लेकिन नहीं! यह बिल्कुल गलत है। उन दोनों की मर्म समझा है, तो महात्मा गांधी ने समझा है। भगवान् महावीर की जंग में खून की नदियाँ बह गईं थीं, लेकिन महात्मा गांधी प्रेम, सन्तान कहलाने वालो! अहिंसा धर्म की डींग मारने वालो! महावीर अहिंसा, अदमतशदुद और सत्याग्रह के हथियार से लड़ाई लड़ के पुजारी बनने वालो! मन, वचन, काय से धर्म को पालने का रहे हैं, 'इस सादगी पै कौन न मर जाये ऐ खुदा। लड़ते हैं मगर | ठेका लेनेवालो! और भगवान् महावीर की जै-जैकार बोलने वालो! हाथ में तलवार भी नहीं।' इसी तरह से आज से तकरीबन अढ़ाई | क्या तुम अपने ठण्डे दिल से अपने सीने पर हाथ रखकर बतला हजार साल पहले भगवान् महावीर भी अहिंसा, प्रेम वगैरह के | सकते हो कि क्या तुम भगवान् महावीर के सच्चे भक्त कहलाने के हथियार लेकर सामने डटे थे। मुस्तहक हो? मैं तो कहूँगा कि हरगिज भी नहीं। तुम्हारा फर्ज था महात्मा जी ने जो एल्टीमेटम वायसराय हिन्द को दिया है, कि सबसे पहले इन मजालियों को दूर कराने में, मुल्क को निजात वह एक अंग्रेज के हाथ भेजा गया था। वह इसलिए कि मेरी | दिलाने में और छह करोड़ भाइयों को भूख से मरते हुये बचाने में, दुश्मनी किसी अंग्रेज से नहीं है, बल्कि उन मुजालिमों से है जो | आप खुद को खतरों में डालकर मैदाने अमल में आन उतरते। हिन्दुस्तानियों को तहबोवाला (छोटी बड़ी) कर रहे हैं। मेरे नजदीक | लेकिन अफसोस, कि तुम्हारे कान पर जूं भी नहीं रेंगी। तो अंग्रेज भी मेरे ऐसे भाई हैं कि जैसे हिन्दुस्तानी। भगवान् महावीर का नाम ले लेना बहुत आसान है, मंदिर जिस तरह भगवान् महावीर नशीली चीजों के खिलाफ थे | में जाकर पूजा कर लेना भी बहुत सरल है। लेकिन कभी आपने इसी तरह से आज महात्मा जी भी शराब, भंग, सिगरेट वगैरह के | इस पूजा के राज को भी समझा है? अगर आप पहले कुछ नहीं खिलाफ हैं और इनके बायकाट पर पूरा जोर लगा रहे हैं। महात्मा | कर सके, तो अब महात्मा गांधी जी का साथ दें और दुनियाँ को गांधी अछूत उद्धार के उतने ही जबरदस्त और कट्टर हामी हैं कि | दिखला दें कि अहिंसा धर्म के मायने बुजदिली नहीं है, बल्कि जैसे भगवान् महावीर थे। भगवान् महावीर जिस तरह हर तबके | सच्ची बहादुरी और वीरता का नाम अहिंसा है। अगर अब भी के इन्सान को एक जैसा ख्याल करते थे वैसे ही महात्मा गाँधी भी | आपने दुनियाँ के साथ चलना न सीखा और अगर अब भी आपने करते हैं, जिसका जिन्दा सबूत यह है कि महात्मा जी ने एक शूद्र | अपनी पुरानी और दकियानूसी रफ्तार को न बदला, तो मैं पुरजोर लड़की लक्ष्मीबाई को अपनी लड़की बनाया है। महात्मा जी सबसे अलफाज से कहे देता हूँ कि आप इन सफाहहस्ती से मिट जायेंगे पहले आत्मशुद्धि करके मैदान में निकले हैं। और आपका ढूँढे से भी पता न चलेगा। लिहाजा जागो ! समझो ! ___ महात्मा गांधी सब इन्सानों को एक जैसा ख्याल करते हैं। | और काम करना सीखो। क्या ब्राह्मण! क्या शूद्र ! क्या क्षत्री ! क्या वैश्य ! क्या हिन्दू ! क्या शिक्षक आवास ६ कुन्दकन्दु महाविद्यालय परिसर मुसलमान ! क्या हिन्दुस्तानी ! और क्या अंग्रेज ! महात्मा गांधी के खतौली- २५१२०१(उ.प्र.) जून 2003 जिनभाषित 15 mational Jain Education International For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524274
Book TitleJinabhashita 2003 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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