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________________ द्रौपदी जिसका न चीरहरण हुआ न शीलहरण डॉ. नीलम जैन द्रौपदी एक सम्पूर्ण चरित्र है नारी का । उसमें तेज भी है, । पुरुषों की दृष्टि में युगीन नारी का सच्चा आकलन है। कहाँ थी शीतलता भी, दाहकता भी है, सहिष्णुता भी, वाचाल भी है, चुप | नारी के महत्त्व के प्रति श्रद्धा, उसकी योग्यता के प्रति आस्था भी है, कांन्ति भी है, शांति भी है। उसका चरित्र विशालतर अथवा उसके स्वतंत्र व्यक्तित्व के प्रति समान दृष्टि? विवाह के मानवीय उदात्त और उर्वर पृष्ठभूमि पर प्रतिष्ठित रहा है। उसकी पश्चात् जैसे वह क्रय की गई जड़ वस्तु हो गई थी। नारी का जीवन यात्रा एक वीरांगना की यात्रा थी, जिसने सदा ही यह माना | आकलन बस भव्य प्रासादों और प्राचीरों के मध्य किसी कि "जीवन तो संपूर्ण ही स्वीकार होता है, उसकी किश्तें नहीं | चित्रालंकरणवत् ही था। होतीं। जीवन को किश्तों में ढूंढना सत्य के टुकड़े करने के समान | वीर बालाओं के इतिवृत में विद्रोह, क्रांति और परिवर्तन है, अधूरापन है, पलायन है, स्वयं को अस्वीकार करना है।" वह | की चिनगारी नारी प्रतिष्ठा के लिए द्रौपदी के चरित्र में प्रचुरता भरे दरबार में पूरे कुरुवंश की धज्जियाँ उड़ा देती है। भीष्म, | से है। विरोध और संघर्ष को झेलकर भी वह महिलाओं के द्रोणाचार्य जैसे वीरों, नीतिज्ञों, कुलपुरुष को ललकार कर चुनौती । लिए अपनी सामर्थ्य से नवीन मार्ग का निर्माण करती है। देती है। वह अपने अकाट्य तर्कों से सबको चुप करने की क्षमता | कदाचित् उनकी दुर्धर्ष क्षमता के बल पर ही चीरहरण' एक रखती है। उसके भीतर का स्वाभिमान, संस्कार-शीलता और | मुहावरा और जन-प्रचलित शब्द बन गया है। चीरहरण भले मानवीयता का उदाहरण था। वह पत्नी बनकर आई थी या वस्तु, | ही द्रौपदी का हुआ पर द्रौपदी तो फिर भी अपनी आत्मशक्ति वह घर की वधू है या वीरांगना? यही उत्तर बार-बार उसने अपने | से सवस्त्र रह कर अपनी चरित्र महत्ता को बचा गई पर पूरे प्रश्न में ढूँढा । न्याय के मंच पर बैठने वाले अपने ही घर में होते | आर्यावर्त को उसने निर्वस्त्र करा ही दिया। घर के एक-एक दुष्कृत्य को नहीं रोक पाये? माना, युधिष्ठिर आवेश में गलती कर | सदस्य के पौरुष और पौरुषहीनता, हृदयहीनता को उसने सरे ही गए तो क्या किसी का दायित्व नहीं था कि उन्हें रोकते-टोकते चौराहे पर बिखरा ही दिया ! द्रौपदी का चरित्र पुरुषों की सोच को और कहते हे धर्मराज ! यह क्या अनर्थ कर रहे हो, द्रौपदी इस घर | धिक्कारने वाला चरित्र है। वह एक स्त्री नहीं पूरी शक्ति पुंज बन का, वंश का, कुल का सम्मान है। तुम हमारे होते हुए ऐसे अनर्थ | कर अपनी शक्ति का लोहा तथाकथित उद्भटों से मनवा लेती है। नहीं कर सकते और कुछ दाँव पर लगाओ पर एक कुल वधू को भरी सभा में मुँह लटकाये हुए मुख पर करारा तमाचा था द्रौपदी नहीं। पर वहाँ किसको था नारी के सम्मान बचाने का भाव। नारी का स्वयं अपने अपमान की सुरक्षा करते हुए निष्कलंक बचकर का मूल्य ही क्या था? सारे पुरुष ही तो बैठे थे। घर की मान- निकल जाना। नारी की गरिमा, महिमा, वीरता को पावों तले मर्यादाएँ-परंपराएँ तो तब स्मरण होती हैं, जब नारी कोई ऐसा पग | कुचलनेवाले अपनी किसी भी प्रकार मर्यादा बचा नहीं पाये थे। स्वयं उठा ले, अपनी किसी व्यक्तिगत आंकाक्षा की पूर्ति कर ले। | पुरुषप्रधान समाज भले ही पुरुषों को अनेकानेक विशेषणों की भरे दरबार में नहीं पूरे हस्तिनापुर में द्रौपदी की चीख-चिल्लाहट | आड़ में बचा गया। किन्तु सच तो सच ही है और द्रौपदी ने उस से कोई द्रवित नहीं हुआ। नारी के प्रति हृदयहीनता का, सरेआम | सत्य का जीवन्त प्रतीक बनकर सबके चरित्र की धज्जियाँ उड़ा अमर्यादित अपमान का आज भी द्रौपदी जैसा कोई उदाहरण नहीं दी। | द्रौपदी की भाँति आज भी महिलाएँ वस्तु की भाँति ही सारे परिवार ने तो मिल कर उसका चीरहरण सहजता से | प्रयोग की जाती हैं। क्या आज भी पति अपने अत्याचारों से उस देखा। कल्पना कीजिए उस दृश्य की , जब सतयुग था। प्रत्येक के | पर पौरुष नहीं दिखाते? अपहरण और लज्जाजनक प्रसंग उनसे लिए समान अवसर थे, धर्म प्रत्येक अणु-अणु में विद्यमान था, | नहीं जुड़ते? और आधारहीन अवस्था में वे अपनी दुरावस्था की तब भी नारी की यह दुरावस्था थी। लज्जाजनक परिस्थितियाँ नहीं भोगतीं? द्रौपदी का चरित्र आज भी वर्तमान के सम्मुख विशाल दुर्घटनाजनित तथ्यों का सत्य तथा उनसे जन्मी स्थितियों प्रश्नचिह्न की भाँति खड़ा हो जाता है। इसको पढ़ते ही मानस में का सामना करने के लिए आज भी नारी सामाजिक आचारसंहिता पुरुषों की सोच के अध:पतन पर अश्रुओं की प्रगाढ़ स्रोतस्विनी | और पुरुष के उदारदृष्टिकोण की अपेक्षा समाज से करती है, यह फूट पड़ती है। वस्तु की भाँति नारी अस्मिता के प्रयोग का द्रौपदी | दायित्व किसका है? किसकी मनोवृत्ति अंकुश की अपेक्षा रखती जैसा उदाहरण अन्यत्र दिखलाई नहीं पड़ता। युधिष्ठिर सदृश धर्मज्ञ, | है, तो स्पृहणीय बन जाता है- वह इन्द्र हो या अहिल्या या वीर, गंभीर पुरुष के द्वारा अनुज वधू को दाँव पर लगा दिया जाना उद्धारकर्ता राम। किन्तु नारी ने पुरुष से संपर्क किया नहीं वह 16 जून 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524274
Book TitleJinabhashita 2003 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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