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मालूम करो। जहाँ देखोगे कि गरीब किसान के चूल्हे पर बर्तन | गुजारें। नहीं, छान पर फंस नहीं, तन को कपड़ा नहीं और पेट को पेटभर महात्मा जी अपनी डायरी में तहरीर फरमाते हैं कि "मुझ रोटी नहीं। लेकिन यह सब कुछ होते हुए भी हुकूमत के कानों पर | पर तीन महापुरुषों ने गहरी छाप डाली है: टालस्टाय, रस्किन और जूं तक नहीं रेंगती। अगर कोई अपनी मुसीबत का रोना हुकूमत के | रायचन्द्र भाई। टालस्टाय ने अपनी एक किताब व कुछ खतों आगे रोता है, भूख प्यास का सवाल पेश करता है, तो बिना पूँछ- किताबत से, रस्किन ने 'अन्टु दि लास्ट' किताब से, जिसका नाम प्रतीत किये जेल में ढूंस दिया जाता है। अगर ज्यादा शोर मचाता | मैंने गुजराती में 'सर्वोदय' रखा है, और रायचन्द्र भाई से तो मेरा है तो ठोकरें मारकर गिरा दिया जाता है, सच है
बहुत संबंध हो गया था। जब १८९७ ई. में मैं जनूबी अफरीका में न तड़पने की इजाजत है न फरियाद की है।
था तब मुझको चन्द ईसाई लोगों के साथ अपने कामकाज की घुट के मर जाऊँ यह मर्जी मेरे सैय्याद की है। वजह से मिलना होता था। वह लोग बहुत साफ रहते थे और
बेकारी का रोना कहाँ तक रोया जाय, न कोई तिजारत है, | धर्मात्मा थे। दूसरे धर्म वालों को ईसाई बनाना ही इनका काम था। न धंधा, जिसको देखो वह ही बेकारी का शाकी है, मुफलिसी का | मुझे भी ईसाई बन जाने के लिये कहा गया, लेकिन मैंने अपने दिल शिकार, फिर ऐसी हालत में क्या किया जाये, कहाँ जाया जाये, | में पक्का इरादा कर लिया कि जब तक हिन्दू धर्म को न समझ लूँ, ऐसे वक्त में कौन सँभाल करेगा? हमको तो गरीबी की वजह से तब तक बाप-दादा के धर्म को नहीं छोडूंगा। हिन्दू धर्म पर मुझको अपना प्यारा धर्म भी छोड़ना पड़ रहा है। लाखों भारतवर्ष के लाल बहुत शकूक पैदा हो चुके थे। मैंने रायचन्द्र भाई से खतो-किताबत ईसाइयों की गोद में चले जा रहे हैं। हा भगवान् ! न हम दीन के रहे | शुरु की। उन्होंने मेरे तमाम शकूक रफै कर दिये। जिससे मुझको और न दुनियाँ के।
शान्ति हासिल हुई और हिन्दू धर्म की फिलासफी पर मेरा और दृढ एक सदी में सारी दुनियाँ की लड़ाई में जितने इन्सान मर श्रद्धान हो गया और मैंने समझा कि सिर्फ हिन्दू धर्म ही एक ऐसा सकते हैं। इससे बहुत ज्यादा सिर्फ हमारे देश के अन्दर दस साल धर्म है जो शांति देने वाला है। इस वाकफियत के जरिये रायचन्द्र में भूख की वजह से मर जाते हैं। यह कितना बड़ा गजब है जो भाई थे। इसलिए रायचन्द्र भाई में और भी विश्वास बढ़ गया।" आला खानदान की औरतें हैं वह घर की चाहर दीवार के अन्दर | भारतवर्ष की दुर्गति देखकर महात्मा गाँधी ने अपने जीवन भूख के मारे तड़फ कर प्राण पहले ही दे देती हैं, लेकिन किसी के का लक्ष्य पाँच व्रत बनाये जो कि भगवान् महावीर ने धारण किये आगे हाथ नहीं पसार सकतीं।
थे। उन पर अमल करना शुरू किया यानि अहिंसा, सत्य, अचौर्य, अब ऐसी हालत में हमारा उद्धार कौन करेगा, हमारी | ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह । आज महात्मा जी अहिंसा, अदमतशदुद मुसीबतों का खात्मा किस आत्मा के जरिये होगा और हमको | सत्याग्रह से अपने देश को हुकूमत की ज्यादतियों के नीचे से आजादी कौन दिलायेगा? बस यह एक सवाल हिन्दुस्तानियों के | निकालने को तैयार हुए हैं, जिस तरह भगवान् महावीर ने उस रूबरू आता है कि फौरी ही एक महान् आत्मा यानि महात्मा गाँधी | जमाने के जानदारों को छुड़ाया था। महात्मा जी हमेशा सच बोलते जी का जहूर होता है, बैरिस्टरी पास कर लेने के बाद आपको एक | हैं, इसका सबूत उनकी खुद की डायरी से मिल रहा है। महात्मा महान् जैन विद्वान् कवि रायचन्द्र जी शतावधानी की सोहबत मिलती | जी चोरी नहीं करते और शीलवान भी आप अरसे दराज से हैं, है और आप आत्मबल प्राप्त करके कहते हैं कि हिन्दुस्तान की | अपरिग्रही तो आप इस कदर हैं कि सिर्फ एक लँगोट के सिवाय मुसीबतों का खात्मा मैं करूँगा और मैं ही मुल्क को आजादी | और कुछ भी कपड़ा नहीं पहनते। दिलाऊँगा, इस काम में मैं अपने को हर तरह से कुर्बान करूँगा। कई लोगों का कहना है कि अहिंसा कायरों और बुजदिलों
चूँकि सब इन्सान एक बराबर हैं, वह गोरे हों या काले, ब्राह्मण हों | का धर्म है। अहिंसा इन्सान को बुजदिल व डरपोक बना देती है, या शूद्र, छूत हों या अछूत, गरीब हो या अमीर, गर्ज सब का हक | जिनमें से लाला लाजपतराय जी मरहूम एक शख्स थे, लेकिन बराबर है, इन्सानी दर्जा एक है, एक को क्या हक है कि जब छह | आज महात्मा जी ने भगवान् महावीर की अहिंसा का सिंहनाद करोड़ हिन्दुस्तानी भर पेट खाना भी नहीं खा सकते, तो वह लाखों | दुनियाँ के हर एक कोने में बजा दिया है और साबित करके रुपया सालाना ऐसे गरीब देश से तनखाह के नाम से वसूल करे। | दिखला दिया है कि अहिंसा धर्म बहादुरों व बेखौफ लोगों और यह अजीब तमाशा है कि घरवाले घर से बाहर मारे-मारे फिरें | धर्म पर कुर्बान हो जाने वाले परवानों का धर्म है। अहिंसा धर्म के और दूसरे लोग बड़े-बड़े महलों में ऐशो आराम की जिन्दगी | जरिये से जबरदस्त से जबरदस्त मजालिम भी दूर हो जाते हैं।
14 जून 2003 जिनभाषित
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