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शेषांश
भगवान् महावीर और महात्मा गाँधी
प्रस्तुति : डॉ. कपूरचन्द्र जैन एवं डॉ. ज्योति जैन
जैन इतिहास का धुंधला पृष्ठ जब अंग्रेजों ने उनका लेख और जमानत जब्त कर ली
एक जब्तशुदा लेख
भगवान् महावीर के बारे में महर्षि शिवव्रतलाल जी बर्मन आजकल का जमाना आप सब लोगों के सामने मौजूद है। एम.ए. 'साधूनाम' के माहवारी रिसाला, माह जनवरी १९११ में | आज भारतवर्ष में लाखों बेजुबान जानवर मांस खाने के लिए रोज (प्रकाशित) हुए 'महावीर स्वामी के पवित्र जीवन' में फरमाते हैं | काटे जाते हैं। दूध देने वाली गायों के गलों पर छुरी चलाई जाती कि "यह जबरदस्त रिफारमर और जबरदस्त उपकारी बड़े ऊँचे | है। भारतवर्ष के आदमी भूखों मर रहे हैं, बेकारी की चक्की में दर्जे के उपदेशक और प्रचारक थे। यह हमारी कौमी तारीख के | दरड़े जा रहे हैं, मौजूदा हुकूमत ने हिन्दुस्तान के तमाम उद्योग रत्न हैं। तुम कहाँ और किन धर्मात्मा प्राणियों की खोज करते हो, | हिरफत पर पानी फेर दिया, किसानों पर लगान और सौदागरों पर इन्हीं को देखो। उनसे बेहतर साहबे कमाल तुमको और कहाँ टैक्स इतना ज्यादा लगा दिया कि लोग टैक्स के बोझ से दबे जा मिलेंगे? इनमें त्याग था, वैराग्य था, धर्म का कमाल था। इन्सानी | रहे हैं। माल पर टैक्स, गल्ले पर टैक्स, घी-खांड पर टैक्स, दूधकमजोरियों से बहुत ही ऊँचे थे। इनका खिताब 'जिन' था। उन्होंने | दही पर टैक्स, बर्तन-भाँडे पर टैक्स, कपड़े पर टैक्स, खाने के मोह-माया, मन और काया को जीत लिया था। यह तीर्थंकर थे। | सामान पर टैक्स, पीने के सामान पर टैक्स, रोटी-पानी पर टैक्स । इनमें बनावट नहीं थी, दिखावट नहीं थी, जो बात थी साफ-साफ यहाँ तक की नमक जैसी कारआमद चीज पर भी टैक्स । थी। यह वह लाशानी शख्सियत हो गुजरी है जिनको इन्सानी | इन टैक्सों की ज्यादती से हिन्दुस्तान इस कदर दब गया है कि छह कमजोरियों ओर ऐबों को छिपाने के लिए किसी जाहिरा पोशाक | करोड़ हिन्दुस्तानी एक वक्त भी पेट भरकर नहीं खा सकते। कहन की जरूरत महसूस नहीं हुई, क्योंकि उन्होंने तप करके, जप (अकाल) जुदा पड़ रहे हैं। बवाई (छूत की बीमारी) इमराज ने करके, योग का साधन करके, अपने आपको मुकम्मिल और पूर्ण जुदा दम पी रक्खे हैं। आमदनी का यह हाल है कि हिन्दुस्तान की बना लिया था।" वगैरह ......
मजमुई आमदनी फीकस छह-सात पैसे दैनिक होती है, जिससे भगवान् महावीर सब इन्सानों का एक जैसा ख्यात करते | एक आदमी एक वक्त पेट भरकर रोटी नहीं खा सकता, फिर थे। क्या ब्राह्मण! क्या शूद्र ! क्या क्षत्री! क्या वैश्य! भगवान् महावीर | हिन्दुस्तानियों के सर पर साठ लाख मुफ्तखोर फकीरों का भार, के पैरोकार और चेले सब तबके के लोग थे। इन्द्रभूति वगैरह | जिनकी वजह से पन्द्रह लाख रुपया रोज इन गरीबों की पाकिट से उनके ग्यारह गणधर ब्राह्मण कुल में से थे, उद्दापन मेघ कुमार | निकलता है। यह सब होते हुए भी हिन्दुस्तान की हिफाजत के वगैरह क्षत्री महावीर के चेले थे, शालिभद्र वगैरह वैश्य और | नाम पर फौज का करोड़ों रुपयों का खर्च । एक अंग्रेज की तनख्वाह हरीकेशी वगैरह शूद्र ने भी भगवान् की दी हुई पवित्र दीक्षा को | हिन्दुस्तानी से कई गुनी ज्यादा। हासिल कर ऊँचे पद को हासिल किया था। गृहस्थों में वैशालीपति गरीब किसान गर्मी-सर्दी की सदा तकलीफ उठाकर राजा चेटक, मगध नरेश श्रेणिक और उनका लड़का कोतक वगैरह कड़कती धूप में बदन को जलाकर रात दिन जाग-जाग कर भूखा कई क्षत्री राजा थे। इसीलिए भगवान् उस जमाने की आमफहम प्यासा रहकर जो कुछ जिन्स पैदा करता है उसका ज्यादातर भाषा में ही उपदेश दिया करते थे ताकि हर खास-आम धर्म हिस्सा तो लगान की नजर कर देता है। बाकी बचे खुचे में कर्ज हासिल कर सके। जैन ग्रन्थ भी प्राकृत में लिखे गये थे ताकि सब की अदायगी और दीगर लोगों की नजर नियाज का भुगतान । इस लोग समझ सकें।
बेचारे पर क्या बचता है, यह मालूम करना हो तो गाँव में जाकर
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जून 2003 जिनभाषित 13
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