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________________ मंदिर संख्या ६ अवश्य मेरू शैली का है जिसे चक्की का आकार । का मनोहारी दृश्य । सचमुच सुखद प्रतीत होता है। का होने से गाँव वाले चक्की मंदिर भी कहते हैं। मंदिर संख्या ५२ पर्वत के नीचे १८ जिन मंदिर भी विशाल और पुरातन हैं। प्राचीन शैली का है और संख्या ५८ गुम्बजदार मंदिर है। इसके | धर्मशालाओं की संख्या भी एक दर्जन से अधिक लगभग १५ है। चारों कोनों पर बड़ी-बड़ी और बीच में छोटी मीनारें हैं, जो मुगल दर्शनार्थियों को समस्त सुविधाएँ उपलब्ध हैं। शैली का प्रभाव छोड़ती हैं। मुख्य तीर्थ-नायक चंदाप्रभु का मंदिर सोनागिरि तीर्थ दिल्ली-झाँसी मेन रेल लाइन पर, केन्द्र में अत्यन्त विशाल और विशिष्ट है। इसके गर्भगृह में दो लेख हैं जो होने, विशालता, सिद्धता, भव्यता और प्राकृतिक रम्यता के कारण आधुनिक देवनागरी लिपि में हैं, जिनमें जीर्णोद्धार करने वाले तथा विशाल भूभाग में फैले होने के साथ ही आधुनिक सुविधाएँ दानदाता का उल्लेख है। एक शिलालेख में संवत् ३३५ अंकित है उपलब्ध होने से, यहाँ कुछ वर्ष पूर्व जैन विश्वविद्यालय स्थापित जो लिपि देखकर प्रतीत होता है कि १३३५ संवत् होना चाहिये, १ करने का कार्यक्रम बना था पर पता नहीं किसकी नजर लगी कि कदाचित दब या मिट गया है। वह खटाई में पड़ गया। इस मंदिर में १२ फुट उतुंग भगवान् चंदाप्रभु की खड्गासन कुछ वर्षों पूर्व यहाँ कुछ हिंसक अजैनियों ने द्वेष वश, में प्राचीन मूर्ति ध्यान मुद्रा युक्त है। अत्यंत भावपूर्ण मनोयोग वाली अहिंसक जैनियों को न केवल परेशान करने की गरज से वरन् यह प्रतिमा सचमुच प्राण प्रतिष्ठित, सजीव-विहंसित मुद्रा में सिद्ध शताब्दियों पुराने जिन तीर्थ पर जबरन कब्जा करने की नियत से मूर्ति है। षड्यंत्र भी रचा था। इस अराजक आक्रमण की देश भर में निन्दा सोनागिरि पर्वत पर मंदिरों के अतिरिक्त दो प्राचीन आकर्षण | हुई थी तब जाकर वातावरण शान्त हो सका था। भी दर्शनीय हैं, एक नारियल कुण्ड जो गहराई में नारियल के जो भी हो देश के सम्पन्न अल्प संख्यक जैन समाज के आकार का है और दूसरा बाजनी शिला जिसे बजाने पर धातु जैसी | पास, आजादी के पचास वर्ष से अधिक बीत जाने के बाद भी खनकदार आवाज निकलती है। एक साधना और शोध का केन्द्र, विश्वविद्यालय तक नहीं है। जैन कुछ आधुनिक मूर्तियाँ, संगमरमर से निर्मित नये मंदिरों में समाज के लिये यह अत्यंत विचारणीय मुद्दा है। भारतवर्षीय जैन स्थापित की जा चुकी हैं, जो दर्शनीय हैं। मुख्य आनन्द है पर्वत | समाज के पास उसके स्वतंत्र व समर्थ सम्पन्न दर्शन, सम्पदा एवं की प्राकृतिक रमणीयता में। शीतल मंद सुगंध वायु का संप्रेषण भरपूर प्राचीन साहित्य होने के बाद भी आज उनका एक जैन और वंदना करते हुए बीच-बीच में पैरों के पास नाचते हुए मोर | विश्वविद्यालय नहीं है, जिसकी आज महती आवश्यकता है। एवं अन्य जंगली अहिंसक पशु-पक्षी। वर्षा में प्रवाहित हल्के- | शायद भविष्य में कभी चन्द्रप्रभु भगवान् के दरबार में यह विचार हल्के मदमस्त झरने, गलीचे सी हरी-हरी घास और पर्वत से नीचे | आकार ग्रहण करे? ७५, चित्रगुप्त नगर, कोटरा, भोपाल सत्पथ डॉ. सुरेन्द्र जैन 'भारती' जन सजन हो रहा है लोग कहते हैं सत्संग चल रहा है। सत् से सत्य बनता है जिसकी शान बड़ी निराली है मानव की, मानवीयता की कहानी है बिना सत् के तू चल नहीं सकता मर तो सकता है मगर जी नहीं सकता। सत्य से 'हरिश्चन्द्र' जिन्दा है असत्य के कारण 'वसु' पर समाज शर्मिन्दा है सत्य संत और सतीत्व की निशानी है मर्यादा पुरुषोत्तम पुरुषों की, राम की कहानी है। सत्य मर्यादा है, राम है सत्य है तो आराम ही आराम है सत्य के बिना जीवन हराम है, अकाम है। सत्य चिह्न है धर्म का, ध्वज का ध्येय का, कर्म का सत्य पाथेय बने/पथ में आलोक दिखे मर्म यही पथ का/सत् का, सत्पथ का। 12 जून 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524274
Book TitleJinabhashita 2003 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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