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जिज्ञासा-समाधान
पं. रतन लाल बैनाड़ा
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जिज्ञासा - क्या श्रीवत्स चिन्ह केवल तीर्थंकरों के | (उ) श्री वरांग चरित्र पृष्ठ 9 पर इस प्रकार कहा हैवक्षःस्थल पर ही पाया जाता है या अन्य महापुरुषों के भी?
जिनके वक्षःस्थल में लक्ष्मी के निवास का श्रीवत्स चिह्न समाधान - तीर्थंकरों के वक्षः स्थल पर तो श्रीवत्स का | था, ऐसे महाराजा धर्मसेन (जो महाराज वरांग के पिता थे) चिन्ह होता ही है पर अन्य महापुरुषों के वक्षःस्थल पर भी श्रीवत्स (ऊ) श्री उत्तर पुराण पृष्ठ 430 पर इस प्रकार कहा हैचिन्ह होने के प्रमाण शास्त्रों में उपलब्ध होते हैं। कुछ प्रमाण इस
वीक्ष्य वक्षःस्थले साक्षान्मंक्षु श्रीवत्स लाञ्छनम्। प्रकार हैं
स्वपूर्वभवसम्बन्धं प्रत्यक्षीकृत्य चेतसा।।17।। (अ) श्री पद्मपुराण भाग-1, पृष्ठ 156 में इस प्रकार कहा
अर्थ- परन्तु उनके वक्षःस्थल पर जो श्रीवत्स का चिन्ह
था उसे देखकर (राजा अरविन्द के) हृदय में अपने पूर्व भव का श्रीवत्स मण्डितोरस्को ध्यायतातत विग्रहः।
सम्बन्ध साक्षात दिखाई देने लगा। अद्भुतैकरसासक्त नित्य चेष्टो महाबलः। 246 ।।
उपर्युक्त प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि तीर्थंकरों के अलावा अर्थ- जरा ध्यान तो करो कि जिसका वक्षःस्थल श्री नारायण, प्रतिनारायण, बलभद्र, चक्रवर्ती आदि शलाका पुरुषों के वत्स के चिह्न से चिह्नित है, विशाल शरीर को धारण करने वाला |
तथा अन्य सामान्य राजा धर्मसेन एवं अरविन्द के वक्षःस्थल पर है, जिसकी प्रतिदिन की चेष्टायें एक आश्चर्य रस से ही सनी
भी श्रीवत्स का चिन्ह था। रहती हैं, जो महाबलवान है, ऐसा दशानन।
जिज्ञासा- इस अवसर्पिणी काल में सबसे पहले मोक्ष (आ) श्री पद्मपुराण भाग-2. पृष्ठ 303 में इस प्रकार कहा |
जाने वाले भगवान् बाहुबली थे या भगवान् अनन्तवीर्य?
समाधान- अभी तक विद्वानों के द्वारा तथा अन्य छोटी श्रीवत्सकान्तिसंपूर्णमहाशोभस्तनान्तरम्।
पुस्तकों के माध्यम से यही सुनने और पढ़ने में आया है कि गम्भीरनाभिवत्क्षाम्मध्यदेशविराजितम्।।57॥
भगवान् अनन्तवीर्य को सर्वप्रथम मोक्ष हुआ। परन्तु प्रथमानुयोग अर्थ- जिनके स्तनों का मध्य भाग श्री वत्स चिह्न की |
के शास्त्रों को देखने पर स्पष्ट होता है कि इस सम्बन्ध में आचार्यों कांति से परिपूर्ण महाशोभा को धारण करने वाला था, जो गम्भीर के भिन्न-भिन्न मत हैं। प्रमाण इस प्रकार हैंनाभि से युक्त तथा पतली कमर से सुशोभित थे ऐसे श्रीराम को श्री पद्मपुराण भाग-1, पृष्ठ 62 पर इस प्रकार कहा हैदेखकर हनुमान क्षोभ को प्राप्त हुआ।
तत: शिवपदं प्रापदायुषः कर्मणः क्षये। (इ) श्री पद्मपुराण भाग-2, पृष्ठ 385 में इस प्रकार कहा
प्रथमं सोऽवसर्पिण्यां मुक्तिमार्ग व्यशोधयत्।।77॥
तदनन्तर आयु कर्म का क्षय होने पर उन्होंने ( श्री बाहुबली एतस्मिन्नन्तरे दिव्यकवचच्छन्नविग्रहो।
भगवान्) ने मोक्षपद प्राप्त किया और इस अवसर्पिणी काल में लक्ष्मीश्रीवत्स लमाणौ तेजोमण्डलमध्यगौ॥1॥ | सर्वप्रथम उन्होंने मोक्षमार्ग विशुद्ध किया, निष्कण्टक बनाया।।77 ।।
अर्थ- इसी बीच में जिनके शरीर दिव्य कवचों से श्री आदिपुराण भाग-1, पृष्ठ 592 पर इस प्रकार कहा हैआच्छादित थे, जो लक्ष्मी और श्रीवत्सचिह्न के धारक थे, ऐसे
संबुद्दोऽनन्तवीर्यश्च गुरोः संप्राप्तदीक्षणः । श्रीराम और श्री लक्ष्मण।
सुरैरवाप्त पूजर्द्धिरग्रयो मोक्षवतामभूत्।।181।। (ई) श्री हरिवंश पुराण पृष्ठ 124 पर इस प्रकार कहा है--
अर्थ- भरत के भाई अनन्तवीर्य ने भी सम्बोध पाकर श्री वृक्ष लक्षितोरस्के सचतुःषष्टि लक्षणे।
भगवान् से दीक्षा प्राप्त की थी, देवों ने भी उसकी पूजा की थी षोडशे मनुराजेऽस्मिन् विडोजः श्री विडम्बिनि।।135।। |
और वह इस अवसर्पिणी युग में मोक्ष प्राप्त करने के लिये सबमें अर्थ-जिनका वक्षःस्थल श्रीवृक्ष के चिह्न से सहित था।
अग्रगामी हुआ था। ऐसे श्री भरत चक्रवर्ती।
भावार्थ- इस युग में अनन्तवीर्य ने सबसे पहले मोक्ष प्राप्त
| किया था (टीका पण्डित पन्नालाल जी सागर)। 22 मई 2003 जिनभाषित
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