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________________ रजि.नं. UP/HIN/29933/24/1/2001-TC डाक पंजीयन क्र.-म.प्र./भोपाल/588/2003 भगवान् महावीर का गर्भावतरण देवेन्द्र कुमार जैन जिला एवं सत्र न्यायाधीश आकाश में छा गये रजत मेघ होने लगी वर्षा रत्नों की हर्ष और उल्लास की विषादयुक्त चेहरों पर खिलाखिला उठी हँसी खेतों में झूमकर गाने लगी फसलें वासन्ती बयारें मलयगंधी हो बह चली कलरव ने भर दिया अंतरिक्ष का सूनापन। धूप हुई गुनगुनी विधु की शीतलता बढ़ी नक्षत्रों की लकदक ने बिखेर दिया आनंद आलोक यत्र तत्र सर्वत्र। माता के गर्भ में अंकुरण के पहले ही छह मास हुआ यह चमत्कार सावधान महावीर ले रहे अवतार। निद्रामग्न त्रिशला ने देखे जो सोलह स्वप्न अलस्सुबह विस्मित हो राजा से किया प्रश्न सिद्धार्थ ने ज्योतिष से माँगा जब समाधान उसने बताया तब राजा को हर्षित हो रानी के गर्भ में आ गये वर्धमान राजन हो भाग्यवान धन्य हुआ कुण्डग्राम। राजा ने खोल दिये भण्डारों के बंद द्वार रत्न बँटे धान्य बँटा अंधियारा कोष घटा त्रिशला के अंतस में विराज गई अपूर्व छटा नव-मासी प्रतीक्षा भी बन गई सुखद भार। जे.डी.ई.-1, भगवती नर्सिंग होम के सामने हरदा (म.प्र.) स्वामी, प्रकाशक एवं मुद्रक : रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, जोन-1, महाराणा प्रताप नगर, भोपाल (म.प्र.) से मुद्रित एवं सर्वोदय जैन विद्यापीठ 1/205, प्रोफेसर्स कालोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) से प्रकाशित। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524272
Book TitleJinabhashita 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size3 MB
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