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________________ बोधकथा चावल के पाँच दाने राजगृह में धन्य नाम का एक धनी और बुद्धिमान | जब हरे-हरे धान पककर पीले पड़ गये, उन्हें एक तेज दतिया व्यापारी रहता था। उसके चार पतोहुएँ थीं जिनके नाम थे | से काट लिया। फिर धानों को हाथ से मला और उन्हें साफ़ उज्झिका, भोगवती, रक्षिका और रोहिणी। करके कोरे घड़ों को लीप-पोतकर, उन पर मोहर लगाकर एक दिन धन्य ने सोचा, मैं अपने कुटुम्ब में सबसे | कोठार में रखवा दिया। दूसरे साल वर्षा ऋतु आने पर फिर से बड़ा हूँ और सब लोग मेरी बात मानते हैं। ऐसी हालत में यदि | इन धानों को खेत में बोया और पहले की तरह काटकर साफ मैं कहीं चला जाऊँ, बीमार हो जाऊँ, किसी कारण से काम | करके घड़ों में भर दिया। की देखभाल न कर सकूँ, परदेश चला जाऊँ या मर जाऊँ तो इसी प्रकार तीसरे और चौथे वर्ष किया। इस तरह उन मेरे कुटुम्ब का क्या होगा? कौन उसे सलाह देगा, और कौन | पाँच दानों के बढ़ते-बढ़ते सैकड़ों घड़े धान हो गये। घड़ों को मार्ग दिखाएगा? कोठारे में सुरक्षित रख रोहिणी निश्चिन्त होकर रहने लगी। यह सोचकर धन्य ने बहुत-सा भोजन बनवाया और | चार वर्ष बीत जाने के बाद एक दिन धन्य ने सोचा कि अपने सगे-सम्बन्धियों को निमन्त्रित किया। मैंने जो अपनी पतोहुओं को धान के दाने दिये थे, उन्हें बुलाकर भोजन के बाद जब सब लोग आराम से बैठे थे तब | पूछना चाहिए कि उन्होंने उनका क्या किया। धन्य ने अपनी पतोहुओं को बुलाकर कहा, "देखो बेटियो, मैं धन्य ने फिर अपने सगे-सम्बन्धियों को निमन्त्रित तुम सबको धान के पाँच-पाँच दाने देता हूँ। इन्हें सँभालकर किया और उनके सामने पतोहुओं को बुलाकर उनसे धान के रखना और जब मैं माँगू मुझे लौटा देना।" दाने माँगे। चारों पतोहुओं ने जवाब दिया, 'पिताजी की जो आज़ा', पहले उज्झिका आयी। उसने अपने ससुर के कोठार और वे दाने लेकर चली गयों। में से धान के पाँच दाने उठाकर ससुर जी के सामने रख दिये। सबसे बड़ी पतोहू उज्झिका ने सोचा, "मेरे ससुर के | धन्य ने अपनी पतोहू से पूछा कि ये वही दाने हैं या कोठार में मनों धान भरा पड़ा है, जब वे माँगेंगे कोठार में-से | दूसरे? लाकर दे दूंगी।" और उसने उन दानों को फेंक दिया और उज्झिका ने उत्तर दिया, "पिताजी, उन दानों को तो काम में लग गयी। मैंने उसी समय फेंक दिया था। ये दाने आपके कोठार में से दूसरी पतोहू भोगवती ने भी यही सोचा कि मेरे ससुर लाकर मैंने दिये हैं।" के कोठार में मनों धान भरा पड़ा है। उन दानों का छिलका यह सुनकर धन्य को बहुत क्रोध आया। उसने उज्झिका उतारकर वह खा गयी। को घर के झाड़ने-पोंछने और सफाई करने के काम में नियुक्त तीसरी पतोहू रक्षिका ने सोचा कि ससुर जी ने बहुत- कर दिया। से लोगों को बुलाकर उनके सामने हमें जो धान के दाने दिये तत्पश्चात् भोगवती आयी। धन्य ने उसे खोटने, पीसने हैं, और उन्हें सुरक्षित रखने को कहा है, अवश्य ही इसमें | और रसोई बनाने के काम में लगा दिया। कोई रहस्य होना चाहिए। उसने उन दानों को एक साफ़ । उसके बाद रक्षिका आयी। उसने अपनी पिटारी से कपड़े में बाँध, अपने रत्नों की पिटारी में रख दिया, और उसे धान के पाँच दाने निकालकर अपने ससुर के सामने रख अपने सिरहाने रखकर सुबह-शाम उसकी चौकसी करने लगी। दिये। इस पर धन्य प्रसन्न हुआ और उसे अपने माल-ख़ज़ाने चौथी पतोहू रोहिणी के मन में भी यही विचार उठा की स्वामिनी बना दिया। कि ससुर जी ने कुछ सोचकर ही हम लोगों का धान के दाने अन्त में रोहिणी की बारी आयी। उसने कहा, “पिताजी, दिये हैं। उसने अपने नौकरों को बुलवाकर कहा, “जोर की | जो धान के दाने आपने दिये थे, उन्हें मैंने घड़ों में भरकर वर्षा होने पर छोटी-छोटी क्यारियाँ बनाकर इन धानों को खेत कोठार में रख दिया है, उन्हें यहाँ लाने के लिए गाड़ियों की में बो दो। फिर इन्हें दो-तीन बार निदाई-गुड़ाई करके एक आवश्यकता होगी।" स्थान से दूसरे स्थान पर रोपो, और इनके चारों ओर बाड़ धानों के घड़े मँगाये गये। धन्य अत्यन्त प्रसन्न हुआ। लगाकर इनकी रखवाली करो।" रोहिणी को उसने सब घर-बार की मालकिन बना दिया। नौकरों ने रोहिणी के आदेश का पालन किया, और प्रस्तुति - डॉ. जगदीशचन्द्र जैन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524272
Book TitleJinabhashita 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size3 MB
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