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________________ पूज्य ऐलक श्री निश्चयसागर जी महाराज, बा. ब्र. राजेन्द्र भैया, बा. न. अन्नु भैया के पावन सान्निध्य का सौभाग्य मिला। पंचकल्याणक की क्रियाएँ ब्र. प्रदीप जी, अशोक नगर तथा डॉ. श्रेयांस जी. बड़ौत के आचार्यत्व में सम्पन्न हुईं। वेदी प्रतिष्ठा सम्पन्न डॉ. धन्य कुमार जैन, पूर्व चेयर मेन अवागढ़ द्वारा मंदिर नसिया जी, कोठी नया बाग, अवागढ़ (जिला-एटा) में, प्रतिष्ठाचार्य श्री शचीन्द्र कुमार " सौम्य" मथुरा के सान्निध्य में भव्य वेदी प्रतिष्ठा एवं पंचकल्याणक समारोह सम्पन्न कराया गया। पं. सुनील शास्त्री 962, सेक्टर-7 आवास विकास कॉलोनी, आगरा (उ.प्र.) फोन: 0562-2277092 शिलान्यास एवं भूमिपूजन श्री दिगम्बर जैन लेखराज नगर कमेटी द्वारा लेखराज नगर, सिविल लाइन्स अलीगढ़ में मंदिर विस्तार हेतु नवीन भूमि खरीदकर उसका शिलान्यास एवं भूमि पूजन, ब्र. श्री राकेश भैया जी के मार्ग दर्शन में दिनांक 22 फरवरी 2003 को सम्पन्न हुआ। आचार्य श्री विद्यासागर जी ससंघ कुण्डलपुर में आत्मा का कोई नाम नहीं होता है। जिनबिम्ब के दर्शन से यह ज्ञात होता है कि हमारी आत्मा का स्वरूप छोटा- - बड़ा नहीं अपितु सभी का समान है। उपर्युक्त उद्गार आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कुण्डलपुर के विद्याभवन में आयोजित अपने मंगल प्रवचन में अभिव्यक्त किए। प्रवचन के पूर्व मंगलाचरण नीतू नीलू जैन ने प्रस्तुत किया, जबकि आचार्य ज्ञान सागर जी महाराज का चित्र अनावरण सोगानी जी हजारी बाग एवं द्वीप प्रज्वलन पवन कुमार, नरेश कुमार, दिल्ली के करकमलों से सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर कुण्डलपुर क्षेत्र कमेटी के अध्यक्ष संतोष सिंघई के साथ अन्य पदाधिकारियों, सदस्यों एवं अनेक स्थानों से आये भक्तों, तीर्थ यात्रियों ने आचार्य श्री को श्रीफल अर्पित किए। आचार्य श्री ने अपने मंगल उद्बोधन में आगे कहा कि अज्ञान से अपने द्वारा अपना दीपक बुझ जाता है, परंतु ज्ञान होने से उसे हवा से बचाया जा सकता है। बड़े-बड़े साधक भी अपनी शारीरिक साधना से आत्मिक साधना करते हैं। गुरु हमें हेय का त्याग एवं उपादेय को ग्रहण करने का प्रकाश प्रदान करते हैं। अच्छे को अच्छा समझो एवं उसकी अच्छाइयों को ग्रहण करो, जो बुरा है, उसकी बुराइयों को वहीं छोड़ दो। यदि दूसरों को शांत करना है तो स्वयं शांत हो जाओ । आज तक हमने खोया है, खोजा नहीं, सभी सामग्री वीतरागता प्राप्ति के लिए है। कुण्डलपुर में ग्रीष्म कालीन वाचना का शुभारंभ 18 मार्च 2003 को राष्ट्रसंत आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के ससंघ सान्निध्य में ग्रीष्म कालीन वाचना हेतु मंगल कलश की स्थापना श्री अशोक कामर्शियल दमोह द्वारा की गई । इस अप्रैल 2003 जिनभाषित 32 Jain Education International अवसर पर उपस्थित अपार जन समुदाय को आचार्यश्री ने अपना मंगल आशीष देते हुए मंगल प्रवचन में कहा कि गुरुओं की वाणी को सुनकर हृदयंगम करना चाहिए, न कि एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकालना चाहिए। स्मरण रहे कि तीर्थ क्षेत्र कुण्डलपुर जी में अतिशययुक्त श्री बड़े बाबा के भव्य मंदिर निर्माण हेतु तीव्रगति से काम चल रहा है, वहीं पहाड़पुर के पत्थरों पर नागर शैली से अभिभूत नक्काशी के साथ दिलवाड़ा के जैन मंदिरों के समकक्ष बनने वाले इस भव्य मंदिर हेतु क्षेत्र कमेटी ने अधिक से अधिक दान राशि देने की धर्मावलंबियों से अपील की है। प्रवेश सूचना श्रमण ज्ञानभारती मथुरा पू. आ. श्री विद्यासागर जी महाराज के आशीर्वाद एवं पू. उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज की प्रेरणा से श्रमण ज्ञान भारती छात्रावास का शुभारंभ 11 जुलाई सन् 2001 को भ जंबूस्वामी निर्वाण क्षेत्र, चौरासी, मथुरा में हुआ था। इस छात्रावास में हाईस्कूल पास छात्रों को लिया जाता है। इन छात्रों को मथुरा के कॉलेजों में आर्ट्स एवं कॉमर्स की कक्षाओं में इण्टर में प्रवेश दिलाया जाता है। कॉलेज के समय के अलावा, अन्य समयों में छात्रावास के रहने के काल में इन छात्रों को धार्मिक शिक्षण, पूजा, आरती सामायिक करना आदि आवश्यक होता है। छात्रावास में प्रथम वर्ष में छहढाला, द्रव्य संग्रह व दूसरे वर्ष में रत्नकरण्ड श्रावकाचार तथा तत्त्वार्थसूत्र एवं इष्टोपदेश का अध्ययन कराया जाता है। छात्रावास का पूरा कोर्स 5 वर्ष का है। शेष 3 वर्षों में इण्टर पास करने के बाद जीवकांड, कर्मकांड, समयसार, पंचास्तिकाय आदि ग्रंथों का क्रम से अध्ययन कराया जायेगा। छात्र को धार्मिक परीक्षा देना तथा अच्छे प्राप्तांक के योग्य परिश्रम करना आवश्यक होता है। छात्रावास में भोजन, आवास, पुस्तकें एवं शिक्षा तथा परीक्षा शुल्क आदि की निःशुल्क व्यवस्था है। छात्रावास का मुख्य उद्देश्य देश में जैन विद्वानों की कमी दूर करना है । अतः जो भी छात्र, कॉलेज शिक्षा के साथ धर्म पढ़ने के इच्छुक हों तथा हाईस्कूल के समकक्ष अर्थात् दसवीं कक्षा पास कर चुके हों, वे अपना प्रार्थनापत्र, दसवीं कक्षा के परीक्षाफल के साथ, 20 जून 2003 से पूर्व तक भिजवा दें। प्रार्थनापत्र में पूरा पता तथा फोन नं. अवश्य लिखें व अपना एक फोटो अवश्य संलग्न करें। वर्तमान में 22 छात्र, छात्रावास में रहकर धार्मिक शिक्षण ले रहे हैं। धार्मिक शिक्षण का कार्य श्रेष्ठि विद्वान श्री निरंजनलाल जी बैनाड़ा, अधिष्ठाता, पं. जिनेन्द्र शास्त्री जैन दर्शनाचार्य तथा ब्र. अरुण द्वारा संपादित किया जाता है। अन्य विषयों के लिये कुशल शिक्षकों की व्यवस्था भी की जाती है। इस वर्ष कुल 15 छात्र लेने हैं, जिनका चयन योग्यता आदि के आधार पर किया जायेगा। अतः शीघ्रताशीघ्र प्रार्थना पत्र निम्न पते पर भिजवायें। । For Private & Personal Use Only अधीक्षक, श्रमण ज्ञान भारती छात्रावास, श्री 1008 भ. जंबूस्वामी निर्वाण क्षेत्र चौरासी, मथुरा www.jainelibrary.org
SR No.524272
Book TitleJinabhashita 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size3 MB
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