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________________ द्रव्य में जो परिस्पंदरूप परिणमन होता है उसे क्रिया कहते हैं।। विमान को इन्द्र के निवास के कारण इन्द्रक विमान नहीं कहा प्रायोगिक और वैनसिक के भेद से वह दो प्रकार की है। उनमें | जाता। केवल मध्य का विमान होने के कारण इसको इन्द्रक विमान गाड़ी आदि की प्रायोगिक है और मेघादिक की वैससिकी। कहते हैं। सौधर्म इन्द्र के निवास के बारे में श्री तिलोयपण्णत्ति सारांश यह है कि जीव में जो क्रोध आदि परिणाम होते हैं अधिकार ८ गाथा ३४१ में इस प्रकार कहा हैअथवा औपशमिक आदि भाव होते हैं या गुणों में अन्य प्रकार पढमादु एक्कतीसे, पभ-णाम-जुदस्स दक्खिणोलीए। परिणमन होता है वह जीव का परिणाम है। पुद्गल में क्रियारहित बत्तीस-सेढिबद्धे, अट्ठारसम्मि चेट्ठदे सक्को॥३४१॥ अवस्था में जो वर्ण आदि का बदल जाना होता है अर्थात् आम के अर्थ- प्रथम से इकतीसवें प्रभ नामक इन्द्रक की दक्षिण हरे रंग का पीला पड़ जाना, सफेद कपड़े में पीलापन आ जाना, | श्रेणी में बत्तीस श्रेणी बद्धों में से अठारहवें श्रेणबद्ध विमान में इन्द्र मकान के पाषाणस्तंभ में जीर्णता आ जाना आदि परिणाम हैं। स्थित है। जबकि द्रव्य में जो स्थान से स्थानांतर होने पर परिणमन होता है । भावार्थ - सौधर्म ईशान स्वर्ग के ३१ पटल हैं जो एक के वह क्रिया है। गेंद का ऊपर उछलना, मशीन का चलना, हाथ पैरों | ऊपर एक हैं। उनमें से सबसे ऊपर के पटल में दक्षिण श्रेणी में ३२ का संकोच विस्तार होना, अंगुली को टेढ़ा सीधा करना, आदि रूप श्रेणीबद्ध विमान हैं उन श्रेणीबद्धों के १८ वें नम्बर विमान में जो परिणमन है उसे क्रिया रूप परिणमन जानना चाहिये। । सौधर्म इन्द्र का निवास है। श्री त्रिलोकसार में गाथा नं. ४८३ में भी सारांश में क्रिया रहित वस्तु के परिणमन को परिणाम और | इसी प्रकार कथन पाया जाता है। क्रिया सहित वस्तु के परिणमन को क्रिया कहते हैं। प्रश्नकर्ता - सत्येन्द्र कुमार जैन, रेवाड़ी प्रश्न कर्ता - श्री मनीष कुमार जैन, सहारनपुर प्रश्न-५. देव और नारकियों के आयुबंध-योग्य अपकर्ष प्रश्न- सौधर्म स्वर्ग का इन्द्र कौन से इन्द्रक विमान में | काल कब आते हैं? रहता है? समाधान- देव और नारकी जीवों का अकालमरण नहीं समाधान- स्वर्गों में देवों के विमानों की रचना इस | होता। इनकी आयु के जब अंतिम छह माह बाकी रहते हैं तब प्रकार है। प्रत्येक पटल के सबसे मध्य में जो एक विमान है उसे | आयुबंध-योग्य आठ अपकर्ष काल होते हैं। उन्हीं में इनके आयु इन्द्रक विमान कहते हैं और उसकी चारों दिशाओं में जो श्रेणीबद्ध | बंध होता है। (पंक्ति बद्ध) विमान हैं उन्हें श्रेणीबद्ध विमान कहते हैं। शेष 1/205, प्रोफेसर्स कॉलोनी स्थानों के विमानों को प्रकीर्णक विमान कहा जाता है। इन्द्रक । आगरा-282002 (उ.प्र.) भक्ति जिनने जोड़ ली है पं. योगेन्द्र दिवाकर "ईश" क्या है ? आत्मा क्या है? और क्या संसार है? यह समझने पर, नहीं फिर दूर आत्मोद्धार है। स्वार्थमय संसार से, परदा हटा अज्ञान का। और पथ दिखने लगा, फिर आत्म के उत्थान का। भक्ति जिनने जोड़ ली है, केवली भगवान् से। जगमगाते चित्त उनके, वास्तविक श्रद्धान से॥ दिवाकर निकेतन सतना (म.प्र.) - अप्रैल 2003 जिनभाषित 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524272
Book TitleJinabhashita 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size3 MB
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