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________________ प्रश्नकर्ता एस. के जैन सिकन्दरा प्रश्न- वर्तमान में कुछ प्रवचनकार क्षेत्रपाल पद्मावती आदि को जिनधर्म का आयतन कहते देखे जा रहे हैं। क्या ये वास्तव में जिनधर्म के आयतन हैं स्पष्ट करें ? जिज्ञासा समाधान समाधान- आयतन स्थान को कहते हैं। जो सद्गुणों का स्थान है वही जिनागम में आयतन नाम से प्रसिद्ध है। आचार्य कुन्दकुन्द ने बोधपाहुड़ गाथा ५, ६, ७ में आयतनों का वर्णन इस प्रकार किया है । गाथा नं. ५ में मन, वचन, काय इन तीनों तथा पंचेन्द्रियों और उनके विषयों को स्वाधीन रखनेवाले मुनियों के रूप को आयतन कहा है। गाथा नं. ६ में क्रोधादिक विकारों में पूर्ण विजय प्राप्त करने वाले पंच महाव्रतों के धारक ऋद्धिधारी मुनियों को आयतन कहा है। तथा गाथा नं. ७ में निर्मल ध्यान से सहित, केवलज्ञान से युक्त गणधर, केवली, सामान्य केवली अथवा तीर्थंकर को सिद्धायतन कहा है। अर्थात् परम वैराग्य से युक्त उपर्युक्त तीन ही जिनधर्म के आयतन हैं। उपरोक्त गाथाओं के भावार्थ में पूज्य आर्यिका सुपार्श्वमतिजी ने इस प्रकार लिखा है कि " आयतन का अर्थ है निवास व धर्मात्मा पुरुषों के आश्रय लेने योग्य स्थान । अर्थात् जिनके आश्रय से सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्रधर्म की वृद्धि हो उनको आयतन कहते हैं । वे धर्मायतन संयमी मुनि व केवली अरिहंत भगवान् ही होते हैं, क्योंकि उनके आश्रय से ही रत्नत्रय की प्राप्ति या वृद्धि होती है । अतः निर्ग्रन्थ लिंगधारी, कषाय- इन्द्रिय-विजेता संयमी एवं केवलज्ञानी को आयतन कहा है। वे आयतन ही वंदना, अर्चना, प्रशंसा करने योग्य हैं, वे ही स्तुत्य, दर्शनीय और वंदनीय हैं। अन्य आरम्भ परिग्रहधारी वंदना स्तुति करने योग्य नहीं हैं।" श्री मूलाचार गाथा १४६ की टीका में आचार्य वसुनंदि सिद्धांत चक्रवर्ती ने इस प्रकार कहा है 24 - "लोक में छह आयतन प्रसिद्ध हैं- सर्वज्ञ देव, सर्वज्ञदेव का मंदिर, ज्ञान, ज्ञान से संयुक्त ज्ञानी, चारित्र, चारित्र से युक्त साधु" । ये छह आयतन माने हैं। द्रव्य संग्रह गाथा ४१ की टीका में ब्रह्मदेव सूरि ने इस प्रकार कहा है- " अब छह अनायतन का कथन करते हैं १. मिथ्यादेव २. मिथ्यादेवों के सेवक ३. मिथ्यातप ४. मिथ्या तपस्वी ५. मिथ्याशास्त्र ६. मिथ्याशास्त्र के धारक पुरुष। इस प्रकार पूर्वोक्त लक्षण के धारक ये छह अनायतन सराग सम्यग्दृष्टियों को त्याग अप्रैल 2003 जिनभाषित Jain Education International पं. रतनलाल बैनाड़ा 44 करने होते हैं"। इसी टीका में मिध्यादृष्टि देवों का वर्णन करते हुये लिखा है। 'राग तथा द्वेष से युक्त आर्त तथा रौद्र परिणामों के धारक क्षेत्रपाल, चंडिका आदि मिध्यादृष्टि देवों को .. उपर्युक्त सभी प्रमाणों के अनुसार क्षेत्रपाल, पद्मावती को धर्म का आयतन किसी भी दृष्टि से कहना उचित नहीं है। यदि इनको जिनधर्मी भी माना जाये, तो ये केवल साधर्मीवत् जयजिनेन्द्र कहकर सम्मान करने तक पात्रतावाले हैं, इससे अधिक नहीं। जिनको अपना सम्यक्त्व निर्मल रखना हो या सम्यक्त्वप्राप्ति के इच्छुक हों उनको चाहिये कि वे रत्नकरण्डक श्रावकाचार श्लोक नं. २३ की टीका में पं. सदासुखदास जी द्वारा लिखित " क्षेत्रपाल पूजन के सम्बन्ध में विचार अवश्य पढ़ें। पंडित सदासुखदास जी के ये विचार एक बार नहीं बल्कि बार-बार पढ़ने के योग्य हैं। अतः सभी दृष्टियों से क्षेत्रपाल पदमावती को धर्म का आयतन कदापि नहीं कहा जा सकता। प्रश्न- णमोकार मंत्र तो आचार्य पुष्पदन्त महाराज द्वारा निबद्ध है परन्तु "एसो पंच णमोयारी" आदि गाथा के रचयिता कौन से आचार्य हैं ? समाधान- " एसो पंच णमोयारो" यह गाथा प्रतिक्रमणपाठ में भी आती है। प्रतिक्रमण पाठ के रचयिता पूज्य आचार्य गौतम गणधर कहे जाते हैं । इस आधार से तो इस गाथा के रचियता पूज्य गौतम गणधर ही हैं। इससे मिलती हुई एक गाथा मूलाचार में गाथा ५१४ इस प्रकार उपलब्ध होती है एसो पंच णमोयारी सव्वपावपणासणो । मंगले य सव्वे, पढमं हवदि मंगलं ॥ यह गाथा 'उक्तं च' लिखकर नहीं कही गयी है अतः इसके रचयिता आचार्य वट्टकेर हैं। प्रश्न- काल द्रव्य के उपकार में परिणाम तथा क्रिया में क्या अंतर है समझाइये ? समाधान तत्त्वार्थसूत्र की सर्वार्थसिद्धि टीका में अध्याय ५ सूत्र २२ की टीका के पैरा ५६९ में इस प्रकार कहा गया है-एक धर्म की निवृत्ति करके दूसरे धर्म के पैदा करने रूप परिस्पंद से रहित द्रव्य की जो पर्याय है उसे परिणाम कहते हैं जैसे जीव के क्रोधादि, पुद्गल के वर्णादि। इसी प्रकार धर्म, अधर्म, आकाश और काल द्रव्य में परिणाम होता है, जो अगुरुलघु गुणों की वृद्धि और हानि से होता है। क्रिया का वर्णन करते हुये लिखा है कि 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524272
Book TitleJinabhashita 2003 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size3 MB
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