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तो दूसरी जगह सद्भाव को कारण माना है। यदि शुभोपयोग के अभाव को ही शुद्धोपयोग का कारण मान लिया जायगा तो दूसरी बाधा यह आवेगी कि शुभोपयोग का अभाव पूर्व में अनादि काल से रहा है अर्थात् अशुभोपयोग रहा है, तब शुद्धोपयोग मान लेना चाहिये। इस प्रकार की व्यवस्था को पूज्य आचार्य महाराज जैन दर्शन का घोटाला संज्ञा देते हैं।
शंका- सब जगह सद्भाव को कारण मान लिया जावेगा, तो शुभोपयोग का कारण अशुभोपयोग मान लिया जावेगा, यह
कैसे?
समाधान- अशुभोपोग को शुभोपयोग का कारण मानने में बाधा ही क्या हो सकती है? यह तो कारण बनता ही है। जब सम्यग्दर्शन प्रकट होता है, वह मिध्यात्वपूर्वक ही होता है। किंतु सम्यग्दर्शन के लिये कारण सामान्य मिथ्यादर्शन नहीं, किंतु सातिशय मिथ्यात्व ही सम्यग्दर्शन के लिये कारण बनता है। और भी मोक्षमार्ग में कार्यकारण व्यवस्था का प्रसंग आता है, वह भी समझने योग्य है । मैं आचार्य श्री की ही भाषा शैली में बतलाना
बोधकथा
दीवान अमरचंद जयपुर के निवासी थे। एक बार राजा शिकार करने गये। साथ में दीवान जी को ले गये। वन में भटकते-भटकते एक हरिण समूह दिखाई दिया। राजा ने पीछा किया हरिणों का। दीवान को यह अच्छा न लगा। उसने सोचा राजा तो प्राणियों का रक्षक होता है, आज वही इनका भक्षक बन रहा है। निरपराध पशुओं को मारना राजा का अत्याचार है। उसने करुण स्वर में आवाज दी कि हे अनाथ हिरणो! ठहर जाओ। आज जब तुम्हारा रक्षक ही भक्षक बन रहा है, तो तुम कहाँ जाकर प्राण बचा सकोगे? तुम्हारा भागना व्यर्थ है।
दीवान की करुण पुकार सुन हिरन खड़े हो गये। राजा आश्चर्य में पड़ गया। तीर कमान चलाना भूलकर दीवान को आश्चर्यभरी दृष्टि से देखना लगा सोचता है इसकी वाणी का यह कैसा चमत्कार है। उसने पूछा-हिरण रुके कैसे? इनके कानों में तुमने कौन सा मंत्र फूँक दिया। बार-बार पूछने पर दीवान ने कहा- राजन् ! इन्हें रोकने में कारण है प्रेम की शक्ति । अहिंसा की शक्ति दया और करुणा की पुकार ।
दीवान ने कहा- राजन्! अपने पद की ओर ध्यान दें ।
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चाहूँगा ।
जब कोई भी भद्र मिध्यादृष्टि मिध्यात्व कर्म के मन्द उदय को प्राप्त होता है, तभी सम्यग्दर्शन की भूमिका बनती है। मिथ्यात्व कर्म का मंद उदय सम्यग्दर्शन की पंचलब्धि में से प्रथम लब्धि के लिये कारण हैं, जिसे क्षयोपशम लब्धि कहते हैं। क्षयोपशमलब्धि कारण है विशुद्धिलब्धि का विशुद्धिलब्धि कारण है देशनालब्धि का । देशनालब्धि कारण है प्रायोग्यलब्धि का । प्रायोग्यलब्धि कारण है पंचम करणलब्धि के प्रथम करण अधःकरण का अधःकरण कारण है अपूर्वकरण का। अपूर्वकरण कारण है अनिवृत्तिकरण का। अनिवृत्तिकरण कारण है सम्यग्दर्शन का। सम्यग्दर्शन, शुभोपयोग कारण है शुद्धोपयोग का । शुद्धोपयोग कारण है केवलज्ञान का । केवलज्ञान कारण है मोक्ष का। यही मोक्ष मार्ग का क्रम है, मोक्षमार्ग है।
दया की पुकार
उपर्युक्त कार्यकारण व्यवस्था गुरु देशना और मेरा चिंतन है । इस प्रसंग में कहीं मेरी कलम फिसल गयी हो तो अवगत कराएँ। किसी को कष्ट हुआ तो मुझे क्षमा करें। बस इतना ही।
आपका कर्त्तव्य प्रजा की रक्षा करना है। धनुष-वाण निरपराध पशुओं का वध करने के लिए नहीं, बल्कि उनकी सुरक्षा के लिए होना चाहिये आपने राजगद्दी पर बैठते समय संकल्प किया था अनाथ दीन-हीन प्राणियों की रक्षा करने का। क्या वह संकल्प भूल गये ।
राजा यह सब चुपचाप सुनता रहा। उसने पुन: पूछा कि तुम्हारी वाणी उन्हें कैसे समझ में आ गयी ? दीवान ने कहा- दया की पुकार, रक्षा की पुकार सभी प्राणी समझते हैं। वह कानों के बिना भी, वाणी के बिना भी मात्र भावों से भी समझ में आ जाती है। राजा दीवान के आगे कुछ न कर सका। उसने हिरणों को नहीं मारा उस दिन । वह लौट पड़ा अपने महल की ओर । दया की पुकार के आगे झुक जाना पड़ा उसे । आशय यह है कि जो काम हजारों वर्ष में नहीं हो सका वह संयत और अहिसंक मन के द्वारा अल्पकाल में भी संभव है मन संयत हो, इसके लिए उसका निर्विकार बनना आवश्यक है। 'तामस' का विलोम शब्द होता है 'समता'। जीवन में समताभाव जागे यही सफलता की कुंजी है।
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'विद्या-कथाकुज'
अप्रैल 2003 जिनभाषित
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