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________________ तुरन्त आँख बंद करके अनुमान लगाते हैं कि श्रवण नक्षत्र काँप रहा है जो कभी कांपता नहीं था । श्रुतसागर महाराज को अवधि का ज्ञान था निमित्त ज्ञान था। निमित्त ज्ञान से जाना कि हमारी भारत भूमि पर अकम्पनाचार्य, जो अकम्प हैं कभी काँपने वाले नहीं है वो भी कम्पायमान हो रहे हैं उनके एवं संघ के घोर उपसर्ग हो रहा है। हाय हाय क्या होगा! जैसे ही मुख से निकलता है उनके बाजू में क्षुल्लक पुष्पदंत जी महाराज बैठे थे वो कहते हैं नुनिराज जी क्या मामला है? जो आज तक नहीं सुना वो आज सुन हा हूँ कि रात्रि में मुनियों के मुख से श्वास भी नहीं निकलती और तुम्हारे मुख से तो हाय-हाय निकल रहा है! नियम है कि जिस समय मुनि के मुख से हाय श्वास निकल जाये तो समझ लेना वाहिए कि कोई अनर्थ घटने वाला है। साधु के आँसू, साधु का संक्लेश और साधु की हआय श्वास नियम से विनाशसूचक होती है ऐसा ज्योतिष शास्त्र में कहा गया है। यदि साधु कसी निमित्त से संक्लेशित हो जाए तो समझ लेना चाहिए कि अनिष्ट अवश्य सम्भावी है। क्षुल्लक जी घबरा ये कि किस का विनाश होने वाला है अब किसी के विनाश की स्थिति आ गई है? अनर्थ हो गया अनर्थ । आँखे डबडबा रही हैं। अनर्थ हो गया अनर्थ हो गया अनर्थ हो गया ऐसे अनर्थक शब्द मुख से निकल रहे हैं, क्षुल्लक जी घबरा गये। बताइये महाराज क्या हो गया तब उन्होंने कहा कि प्रभाल काल होते ही सब कुछ वनाश जो जाना है, चरम सीमा पर उपसर्ग पहुँच गया है अकप्राचार्य मुनि ने ऊपर उपसर्ग आ गया है। अकम्पनाचार्य का पूरा संघ संकट में आ गया है। क्षुल्लक जी कहते हैं कि उपाय बताइये, मैं क्या करूँ मुझसे जो कार्य बन सकता है वो मैं करने को तैयार हैं। मैं जो रात्रि में भी चल सकता हूँ। मैं तो एक श्रावक की दशा में हूँ और श्रावक सब कुछ कर सकता है। धर्म की रक्षा करने के लिए श्रावक को हर चीज की छूट होती है। तब महाराज ने कहा कि विष्णु कुमार मुनिराज के पास जाओ, शीघ्रता करो, मुनिराज ध्यान में बैठे होंगे उनका ध्यान हटा देना। तुम जैसे ही उनका ध्यान तोड़ो वैसे ही मेरा नाम ले लेना। जो पाप लगेगा मुझे लगेगा। अगर मैं इनका ध्यान भंग कर दूँगा। तो मुझे कितना दोष लगेगा यदि इनको शुद्धोपयोग से हटाऊँगा और उनको अशुद्धोपयोग में लाऊँगा । शुद्ध उपयोग से गिराकर अशुद्ध उपयोग में लाने में कितना पाप लगेगा। मुनिरीज कहते हैं कि उस समय तुम इस पाप से ना डरना। तुम इसे अपने मार्थ मढ़ लेना, उनको ध्यान से डिगा देना फिर मेरा सन्देश सुना देना क्षुल्लक जी ने देर नहीं की और पलक झपकते ही आकशय गामिनी विद्या के सहारे पहुँच गये और पर्वत पर जहाँ महाराज बैठे थे । ध्यान में बैठी सौम्य मुद्रा को देखकर नमस्कार किया, क्षुल्लक जी के मन में दया आई कि कैसे इस सौम्य मुद्रा को विकृत कर दें। ऐसी लग रही है यह वीतरागी मुद्रा मुझे जैसे अरहन्त भगवान् बैठे हों। कैसे मैं इनको ध्यान से हटा दूँ लेकिन उनको तुरन्त आदेश ध्यान में आया जिसने आदेश दिया है उसकी Jain Education International आज्ञा का पालन करना है और उनको हिलाता है चरणों में लोटता है। मुनिराज ध्यान छोड़ दीजिए, मोक्ष छोड़ दीजिये। अभी आपकी संसार में आवश्यकता है। संसार से ऊपर उठने की आवश्यकता अभी आपको नहीं। अभी संसार में पहले आप सांर के कई जीवों को उठाइये। महाराज का ध्यान भंग हो गया। महाराज क्षुल्लक को देखते ही बोले- तुम क्षुल्लक और अर्द्धरात्रि में कया आवश्यकता थी तुम्हें विचरण करने की। अति आवश्यक संदेश लेकर आया हूँ। श्रुतसागर महाराज ने अपने निमित्त ज्ञान के माध्यम से जान करे बताया कि 700 मुनियों पर उपसर्ग आया है, उसके नायम अकम्पनाचार्य हैं, उनको बचाने का साहस मेरे में नहीं है। उन्होंने कहा कि आपके अन्दर (विष्णु कुमार) शक्ति है । विष्णु कुमार मुनि बोले मैं क्या कर सकता हूँ? मैं इतना कर सकता हूँ कि आत्मा का ध्यान कर सकता हूँ और मेरे अंदर कोई शक्ति नहीं है तब क्षुल्लक जी महाराज कहते हैं कि महाराज ने कहा है कि आपके पास ऐसी शक्ति प्रकट हुई है जिस शक्ति का आप प्रयोग कर सकते हैं। विष्णु सागर मुनि कहते हैं कि मैं एक तुच्छ महाराज हैं मेरे अंदर कोई शक्ति नहीं महाराज भूल गये हैं कि वह शक्ति उन्हीं महाराज के पास है। वे निमित्त ज्ञानी हैं, अवधि ज्ञानी हैं तब क्षुल्लक महाराज कहते हैं कि महाराज किसी-किसी को अवधि ज्ञान होता है और किसी-किसी को मनः पर्ययज्ञान, लेकिन ऋद्धि ज्ञान नहीं है। उन्होंने अवधि ज्ञान का सदुपयोग करके ही मुझे यहाँ भेजा है। आप ऋद्धि का प्रयोग कीजिए। विष्णु कुमार मुनि को विश्वास नहीं हुआ कि मेरे पास कोई शक्ति है। साधु को अपनी शक्ति का भान नहीं होता है। सच्चे मुनि अपनी शक्ति क भान करने का प्रयास भी नहीं करते। मुनि जीवन भर साधना करते हैं लेकिन यह परिणाम नहीं आता है कि मैंने इतनी बड़ी साधन की है मेरे अंदर शक्तियाँ जागी हैं कि नहीं, मेरे अन्दर अतिशय प्रकट हुआ है कि नहीं। मेरे अंदर कोई चमत्कार प्रकट नहीं हुआ कि इसकी परीक्षा करने का प्रयास नहीं करते हैं यही सच्चे साधुओं की विशेषता होती है। लेकिन दिगम्बर साधु में अपार शक्ति होती है 26 घंटे में 3 घंटे की साधना से किसी देवता पर लक्ष्य करके दृष्टि फेंक दे तो सारे देवता-हाथ जोड़कर खड़े जो जायेंगें ऐसी साधन होती हैं दिगम्बर साधुओं की। एक घंटा दोपकर में एक घंट सायंकाल और एक घंटा ब्राह्ममुहूर्त की साधना होती हैं इस प्रकार तीन घंटे होते हैं। लेकिन दिगम्बर साधु की साधना इन देवताओ के लिए नहीं होती है। बल्कि परम देवता जो कि आत्मा में बैठ हुआ है उस परमात्मा के दर्शन के लिए दिगम्बर मुनि की साधन होती है। 4 विष्णु कुमार मुनि महाराज कहते हैं कि क्षुल्लक महाराज परेशान मत करो कोई दूसरे को खोजो देर हो जायेगी मेरे पास कुछ नहीं। यदि आपके पास कुछ नहीं है तो मैं कहता हूँ कि आप हाथ फैला दीजिए तुम्हारे हाथ में चमत्कार दिख जायेगा मुझे मार्च 2003 जिनभाषित For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524271
Book TitleJinabhashita 2003 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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