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करार दिए जाने वाली पवित्र गर्भ को धारण करने वाली भी | आत्मसात कर फिर घर-घर पहुँचाती पवन से मिली, बिना महज हतभागिनी बन जंगल-जंगल भटकने वाली अंजना के अंदर कौन | सुगन्ध आत्मसात कर फिर घर-घर पहुँचाती पवन से मिली, बिना सी इच्छा शक्ति, किस सुख सौभाग्य की लालसा, क्या प्राप्ति की | किसे के सींचे और बाये मीटरों लम्बे हरे पते से लद वृक्षों से मिली। आकांक्षा शेष थी...? क्सा ऐसे पति की 22 वर्ष जिसने रहाग्नि में इस शान्त किन्तु स्वावलंबी ऊर्जास्विता प्रकृति की गोद में तड़पा-तड़पा कर जला डाला या उस पति की ही निशानी को जन्म सारा संसार छोड़कर अंजना आई तो शान्तचित्त होकर वह समझ देने की जिसने जन्मने से पूर्व ही घर से निष्कासित करा डाला या गई कि भगवान् की प्रतिमा एकदम शान्त, रात-दिन जलने वाली पति और पिता दोनों ही कुलों को कुलधर्म के बीच फंसने की जहाँ दीप की लौ शान्त, भक्त के मन को तृप्त करने वाली प्रत्येक वस्तु अंजना की दयनीय अवस्था उपहास बन गई थी, फिर किस लिए शान्त है तो निरर्थक है, आवाज का करना अथवा विद्रोह के स्वर इस जीवन को मृत्यु की ओर नहीं धकेला अंजना ने? यदि सच भी मात्र अरण्य-रोदन है। अंजना की शांति और धैर्य का ही कहा जाए तो वह थी अंजना की कर्तव्यपरायणता। अंजना ने 22 परिणाम था कि उसने अपना तो जन्म सार्थक किया ही अपनी कृर वर्ष तक दूर रहने वाले से चुपचाप आगमन पर न रोष प्रकट किया, सास को, सहज ही बहकने वाले पति को भी सन्मार्ग दिखाया न दुःख, बल्कि सहज ही समर्पण कर डाला चूँकि वह जानती है | तथा सम्पूर्ण जगत को दिया एक ऐसा पुत्र रत्न जिसने सदा सदा के कि जाने वाले का यूँ अनायास लौटना ही उसे जो आत्मप्रबोध दे रहा लिए इस संसार से 'राक्षसत्व' मिटाकर 'देवत्व' की प्रतिष्ठापना है वही पर्याप्त है। इस संसार के एक एक अणु को उसने अपनी दृष्टि | की। इतिहास ही नहीं वर्तमान भी ऋणी है उस शांत मृर्ति अंजना से देखा। जीने का संबल, संघर्षों से जूझने की अदम्य शक्ति उसे वन | का जिसका मातृत्व आज भी जन-जन को अनुप्राणित कर रहा है। में मिली, वन में स्थित साक्षात् देव शास्त्र गुरु से मिली, बिना | धन्य है अंजना.... और धन्य है उसका मातृतव!! आवाज की भीगी हुई धूप से मिली, फूलों की सहज सुगन्ध ।
___के-एच. 216 कविनगर गाजियाबाद
साहित्य-समीक्षा
कृति नाम- 'अपने दीप जलाओ'
परिपालन के लिए विवश करते हैं? इन लेखों के ये विचार संकलनकर्ता- श्री अजीत कुमार कासलीवाला | कितने प्रासंगिक है(बलून्दा वाला)
जीवन वन तक पहुँचना समय साध्य है पर जोखिम संपादक- प्रा. अरुण कुमार जैन, शास्त्री, ब्यावर उसमें नहीं है।
प्रकाशक- पीयूष प्रकाशन, जैन मंदिर के पास, छावनी, डर अपने आप में एक संकट है। वह पक्षाघात की तरह ब्याबर
आक्रमण करता है और अच्छे खासे आदमी को देखते-देखते पृष्ठ सं. - 150, मूल्य -- 70 रुपये।
अपंग, असमर्थ बनाकर रख देता है? समीक्ष्य कृति 'अपने दीप जलाओ' श्री अजीत कुमार
मनुष्य का सृजन जिन तत्त्वों से हुआ है वे ऐसे प्रखर हैं कासलीवाल की विवेकी दृष्टि एवं नीर-क्षीर विवेकी हंस की
कि हर अभाव को दूर कर सकते हैं? तरह सार को चुनने का परिणाम है। 77 शीर्षकों में निबद्ध इस
यदि तथ्य सशक्त हो और संकल्प में सच्चाई हो तो कृति में अनेक विद्वानों के आलेखों, कहानियों एवं प्रेरक संस्मरणों
छोटा शुभारंभ भी क्रमश बढ़ सकता है? को सँजोया गया है ताकि जनसामान्य इन्हें पढ़कर अपने जीवन
चेहरे की प्रसन्नता बताती है कि व्यक्ति भीतर से भारी को सुधार सके, चारित्रवान बना सके। इस कृति को कोई भी। किसी भी सम्प्रदाय/ धर्म का व्यक्ति पढ़े वह प्रभावित हुए बिना
भरकम है। नहीं रहेगा? आलेखों के शीर्षक- आध्यात्मिकता निष्क्रियता
वास्तव में यह कृति अत्यन्त पठनीय एवं मननीय है नहीं सिखाती प्रार्थना एवं विनम्र पुरुषार्थ, पुत्रों के नाम वाली
इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है? कुशलता से लोक सेवामी सृजन शिल्पी ऐसे हों, पगडण्डियों में न भटकें, संकलन/प्रकाशन के लिए भाई अजीत कुमार कासलीवाला एवं अपना दीपक स्वयं बनो, सज्जनता ही नहीं साहज भी दु:ख | संपादन कला में दक्ष प्राचार्य अरुणकुमार जी शास्त्री बधाई के और दुष्टता की जननी दुर्बलता, गर्भपात महापाप, हँसे तो दिल | पात्र हैं। एक कमी अवश्य खटकती है कि लेखकों के नाम खोलकर बनें आत्महत्या नहीं, मांसाहार, गुनाह बेलज्जत, कृत्रिम नहीं दिए यदि दिए जाते तो उनके उपकार का किंचित् ऋण प्रसाधन हमें कर निर्दयी बनाते हैं, सात्विक भोजन की महत्ता | चकाया जा सकता। कवर चित्र नयानाभिराम है। आदि आकर्षित करते हैं और विचारों पर विचार करने, उनके ।
____ डॉ. सुरेन्द्र जैन 'भारती'
22 मार्च 2003 जिनभाषित
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