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________________ हमें दुआ चाहिए, दवा नहीं संकलन : सुशीला पाटनी सेवा करना सबसे बड़ा धर्म है, सेवा का अर्थ दूसरों की । हैं, अनाथ लोग हैं। उनकी पीड़ाओं को पहचानो, अपने पीड़ा, दूसरों का दर्द,दूसरों के दु:खों को दूर करना है, लेकिन | हृदय में करुणा जाग्रत करो और भक्ति के साथ उनकी सेवा स्वयं करना चाहिए। चाकरों के द्वारा सेवा नहीं करानी | सेवा करो। चाहिए। सच्ची सेवा तो वही कहलाती है, जो स्वयं हाथों से की जो व्यक्ति अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करता, जाती है, क्योंकि उसके साथ हमारी भावनाएँ जुड़ी होती हैं, | वह अपने पापों को साफ नहीं कर सकता। धर्म को समझ सेवा उतनी महत्त्वपूर्ण नहीं, जितना की उसकी भावना महत्त्वपूर्ण | नहीं सकता। अध्यात्म में प्रवेश नहीं कर सकता। सच्चाई है। जब दवा काम नहीं करती, तो हवा काम करती है और की खोज नहीं कर सकता। जब हवा और दवा दोनों काम नहीं करतीं तो दुआ पुण्य के उदय से धन मिला है, लेकिन उस धन का (सद्भावना) काम करती है। महत्त्वपूर्ण दवा नहीं दुआ सदुपयोग करो, तिजोरी में भरकर मत रखो या भोग विलासिताओं है। दवा तो मेडिकल स्टोर में मिल जाती है, लेकिन दुआ में उसका दुरुपयोग मत करो। अपने धन से दूसरों को आजीविका मेडिकल स्टोर से नहीं मिल सकती। डॉक्टर के पास भी प्रदान करो, जो जरूरतमंद हो उनकी अपने धन से मदद करो। दवा मिल सकती है, लेकिन दुआ मिले यह कोई निश्चित धन की गति है-दान, भोग या नाश। यदि आपको धन नहीं। परन्तु यह निश्चित है कि दवा के साथ यदि दुआ नहीं मिला है तो उसका शक्ति के अनुसार दान करो या उसका है, तो कभी भी मरीज ठीक नहीं हो सकता है। उपयोग करो, अन्यथा एक दिन धन का नाश हो जायेगा। वह सेवा मात्र मानव की ही नहीं, प्राणी मात्र की होनी | इसलिए दान करने में, खर्च करने में, किसी प्रकार की कंजूसी चाहिए। सेवा में कोई भेद नहीं होना चाहिए, चाहे वह पशु हो, | मत करो। खुले दिल से धन का दान करो। लोगों को रोजी दो, पक्षी हो या आदमी हो, दुःख तो होता है, पीड़ा तो होती है। | गोशालाओं का निर्माण करो। अपने धन से लोक कल्याणकारी दुनियाँ में किसी भी प्राणी को दुःख अच्छा नहीं लगता। सभी | कार्य करो। जीव चाहते हैं। इस बात को ध्यान में रखकर हमको प्राणी मात्र व्यक्ति को सही रास्ते पर लगाना ही सही दान कहलाता की सेवा करना चाहिए। सबके दुःखों को दूर करना चाहिए, | है। जो नशा करता है, व्यसनों में फँसा हो, धूम्रपान करता हो जो विकलांग हैं, उनको कृत्रिम पैर आदि की व्यवस्था करना | और भी अनेक अनैतिक काम करता हो, गलत मार्ग पर चलता चाहिए जो भूखे हैं, रोगी हैं, उनको उचित शुद्ध आहार, औषधि | हो, ऐसे कुपथगामी व्यक्तिओं को बुरे काम छुड़वाकर उनको की व्यवस्था करना चाहिए, यह सबसे बड़ा धर्म है। सच्चाई के मार्ग पर लगा देना सबसे बड़ा दान कहलाता है। हमारे पास कमी मात्र भावनाओं की है। हमारे आस- | यही सबसे बड़ा धर्म है। पास बहुत दुःखी लोग हैं, बेसहारा लोग हैं, विकलांग लोग | आर.के.मार्बल्स लि. दूरयेनासुरक्ष्येण, नश्वरेण धनादिना। स्वस्थंमन्यो जनःकोऽपि,ज्वरवानिवसर्पिषा। भावार्थ- बड़ी कठिनाई से कमाये जाने वाले असुरक्षित और विनाशीक धनादिकों को पाकर अपने आप को सुखी मानने वाला व्यक्ति ठीक वैसा ही है जैसे की बीमार व्यक्ति घी को पीकर अपने आपको स्वस्थ मानता है। विपत्तिमात्मनो मूढः परेषामिव नेक्षते। दह्यमानमृगाकीर्णवनान्तरतरुस्थवत्॥ भावार्थ- दावानल से जले हुये जीवों को देखनेवाले किसी वृक्ष पर बैठे हुए मनुष्य की तरह यह संसारी प्राणी दूसरों की तरह अपने ऊपर आने वाली विपत्तियों का ख्याल नहीं करता है। -फरवरी 2003 जिनभाषित 31 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524270
Book TitleJinabhashita 2003 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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