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________________ समाचार बैरसिया चातुर्मासः उपलब्धियाँ विद्वानों की नगरी मालथौन (सागर) में नवम संत शिरोमणि आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी के शुभ ऐतिहासिक शिविर सम्पन्न आशीर्वाद से ऐतिहासिक बन गया है। गुरुवर ने अपनी महकती 23.11.02 से 4.12.02 तक सागर जनपद के प्रसिद्ध कस्बा बगिया के दो पुष्पों मुनि श्री 108 अजित सागर जी महाराज एवं मालथौन में दस दिवसीय पूजन एवं प्राकृतभाषा प्रशिक्षण शिविर ऐलक श्री 105 निर्भय सागर जी महाराज ने इस रसहीन नगरी को का भव्य आयोजन अनेकान्त ज्ञानमंदिर शोधसंस्थान बीना द्वारा महका दिया है। गुरुओं के चरण पड़ते ही इस बैरसिया का अर्थ अभूतपूर्व सफलता के साथ सम्पन्न हुआ। शोधसंस्थान द्वारा ही परिवर्तित हो गया जहाँ इसे इसके नाम के कारण बिना रस के आयोजित यह नवम् शिविर समस्त नगर में जैन-जैनेतर समाज में चर्चा का विषय बना रहा। कहा जाता था आज गुरुओं के सान्निध्य को पाकर इस नाम की शिविर का शुभारम्भ 25.11.02 को प्रात:7:30 बजे से १ सार्थकता सिद्ध हो गई है गुजराती भाषा में "बै" का अर्थ दो से बजे मंगलदीपों के प्रज्जवलन के साथ हुआ। शिविर सम्बन्धी होता है। बैरसिया एक तो भक्ति रस से और दूसरा वात्सल्य युक्त विस्तृत जानकारी एवं नियमावली ब्र. संदीप 'सरल' ने प्रस्तुत ज्ञान के रस से सराबोर हो गया है। की। प्रतिदिन प्रात: 7.30 से 9.30 तक पूजन प्रशिक्षण के अन्तर्गत 8 आषाण शुक्ल सप्तमी मंगलवार को जब यहाँ महाराज पूजन विषयक अनेक जानकारियाँ आगम के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत द्वय का नगर में आगमन हुआ था उस समय भीषण गर्मी व पानी कर समीचीन बोध कराया गया। वह दृश्य बड़ा ही मनोहर हुआ की त्राहि जन-जन को व्याकुल कर रही थी। उस समय गुरुओं के करता था जब लगभग 300 शिविरार्थी अपने-अपने वर्गों के अनुसार चरण पड़ते ही जल देवता ने भी प्रसन्न होकर जल की बरसात की निर्धारित स्थान पर बैठकर जिनेन्द्र प्रभु की पूजन बड़े ही शुभ जिससे जन-जन खुशी से झूम उठा तथा जन-जन की यही भावना परिणामों से किया करते थे। दोपहर में 2.30 से 3.30 तक नय थी कि गुरुओं के चरण पड़ते ही हम सभी के भाग्य जागृत हो गये विषयक कक्षा आलाप पद्धति की ली जाती थी। रात्रिकालीन 7 से 9 बजे तक प्राकृतभाषा प्रशिक्षणका सत्र चला करता था। प्राकृत भाषा पढ़ने के लिए लोगों का उत्साह देखते ही बनता था। कुछ इसके पश्चात् आषाण शुक्ल चतुर्दशी, मंगलवार 23 जुलाई परिवारों में तो तीन-तीन पीढ़ियों के लोगों ने प्रवेश लेकर इसका को हम सभी के भाग्य को नई किरण मिली जब चातुर्मास मंगल अध्ययन किया। 9 से 9.30 तक शिविरार्थीगण अपने अनुभव प्राप्त कलश की स्थापना हुई इसके साथ सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, किया करते थे। इस शिविर की कुछ विशेषताएँ इस रूप में लिपिबद्ध सम्यक्चारित्र और तप के चार कलश भी स्थापित हुए। यह मंगल की जा सकती हैं :बेला बैरसिया वासियों के लिए प्रथम बार गुरुवर आचार्य विद्यासागर | 1. आडम्बर एवं प्रदर्शन से शून्य, क्षणिक नहीं अपितु कुछ जी के आशीर्वाद से प्राप्त हुई। स्थाई संस्कारों का बीजारोपण देखने को मिला। परम पूज्य मुनि श्री एवं ऐलक श्री द्वारा विभिन्न जैन- | 2.. बिना बोलियों की नीलामी के सभी कार्यक्रम सम्पन्न कराये धार्मिक ग्रंथों की कक्षायें संचालित की गयीं जिसमें सैकड़ों लोगों गये। ने भाग लिया तथा ग्रंथों का सारगर्भित ज्ञान अर्जित किया इसी कार्यक्रम में समाज के हर वर्ग को समानता का स्थान दौरान इनकी परिक्षायें भी आयोजित की गयी तथा विजेताओं को मिला। पुरस्कार भी वितरित किये गये ग्रंथों में रत्नकरण्ड श्रावकाचार, ज्ञान प्राप्ति की ललक हर शिविरार्थियों के अंदर देखी गई। तत्त्वार्थसूत्र, भक्तामरस्तोत्र, महावीराष्टक आदि की कक्षायें संचालित समय की पाबंदी एवं अनुशासन के लिए लोगों ने अपने जीवन में प्रथम बार इतनी बारीकी से अनुभव किया। की गयीं। शिविर प्रशिक्षक के पढ़ाने की शैली इतनी आकर्षक.एवं परम पूज्य 108 आचार्य विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावकारी रही कि 8 वर्ष से लेकर 85 वर्ष तक के शिष्य पूज्य 108 अजितसागर जी एवं 105 ऐलक श्री निर्भय सागर शिविरार्थी बिना कसी भेदभाव के समय पर आकर कक्षाओं जो के सान्निध्य में ऐसा लगा कि चातुर्मास अल्प समय में ही में शामिल होते रहे। व्यतीत हो गया हो। 7. सभी शिविरार्थियों ने शिविर समापन पर संकल्प किया राजीव जैन कि माह में एक बार सामूहिक रूप से पूजन करेंगे। बैरसिया (भोपाल)। योगेन्द्र जैन,मालथौन 32 फरवरी 2003 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524270
Book TitleJinabhashita 2003 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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