SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बालवाता ताला किससे खुलेगा? डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन 'भारती' महामहिमावान् राजा महीपाल ने एक बार नगर में घोषणा | राज दरबार में पुरस्कार हेतु पहुँचा। इधर आश्चर्यचकित गुरु भी पीछेकरवा दी कि जो व्यक्ति कमरे के अन्दर से बाहर दरवाजे पर लगे | पीछे राज-दरबार की ओर चल पड़े। ताले को खोलकर बाहर निकल आयेगा उसे 500 दीनारें पुरस्कार सर्ववृत्तान्त जानकर समस्त सभासदों के बीच राजा ने शिष्य स्वरुप दी जायेंगी। ताला खोलने हेतु सहायता के लिए कमरे में गणित को 500 दीनारें पुरस्कार में दी और शिष्य से सभी को बताने के लिए की पुस्तकें उपलब्ध रहेंगी ताकि गणितीय सूत्रों की सहायता से ताला कहा कि "उसने ताला कैसे खोला? जबकि गुरु रात-भर गणित के खोल सकें। इच्छुक व्यक्ति कल प्रात: उपस्थित हों और प्रतियोगिता सूत्र खोजने के बाद भी ताला नहीं खोल सके?'' जीतकर पुरस्कार ग्रहण करें। "समय-सीमा 24 घंटे रहेगी" शिष्य ने कहा कि "राजन् ! मै आपकी प्रतियोगिता-घोषणा गणित की बात तथा 500 दीनार का पुरस्कार सुनकर एक तथा कमरे के अन्दर बन्द होते ही यह जान चुका था कि जो ताला गणितज्ञ गुरु तथा उनके शिष्य ने प्रतियोगिता में भाग लेने का निर्णय खोलने के लिए कहा जा रहा है वह बन्द नहीं होगा। यह बस नाटक लिया। दोनों को ही अपने गणितज्ञान पर विश्वास था। नियत समय पर मात्र बुद्धि एवं व्यावहारिक ज्ञान की परीक्षा के लिए किया जा रहा राजसेवकों ने दोनों को कमरे के अन्दर बन्द कर दिया तथा किवाड़ है। मैं आश्वस्त था कि बाहर लगे ताले को अन्दर से किसी भी बन्द किये और बाहर हो गया। गुरु एवं शिष्य दोनों को लगा कि गणितीय सूत्र से नहीं खोला जा सकता, क्योंकि आज तक ऐसा राजसेवकों ने जाने से पूर्व दरवाजे की साँकल चढ़ायी तथा ताला ताला बना ही नहीं है। कोई भी गणित का सूत्र बिना चाबी के ताले लगाया हो। के गणित को नहीं खोल सकता अत: मैं निश्चिन्त भाव से सोता रहा। इधर गुरु ने गणित की पोथियों की पड़ताल शुरु की, कुछ | सुबह होने पर मैंने जो सोचा-समझा था कि ताला बन्द नहीं किया पन्नों पर कुछ सूत्र लिखे और उन्हें हल करना प्रारम्भ किया। इधर | गया है, मात्र नाटक है, तदनुसार कार्य किया किवाड़ खोला और शिष्य 24 घंटे की समय सीमा बहुत है, सोचकर कमरे के एक कोने बाहर आ गया। एक बात और राजन् मैं आपके ज्ञान से अच्छी तरह में चादर तानकर सो गया। 12 घंटे बीत जाने पर व्यग्र हो गुरु ने शिष्य परिचित था, यदि कोई बाहर लगा ताला अन्दर से गणितीय सूत्रों से को जगाया और कहा कि 'ले यह पुस्तकें और तू भी कुछ सूत्र खोज खुल सकता तो आप इतनी अधिक पुरस्कार-राशि वाली प्रतियोगिता ले' किन्तु शिष्य सोया ही रहा। ही आयोजित क्यों करते?" रातभर गणित की श्रेष्ठ पुस्तकें खोजने के बाद भी, अनेक | राजा शिष्य के उत्तर से अत्यधिक प्रसन्न हुआ तथा सभा को सूत्र मिलाने पर भी ताला खोलने का कोई सूत्र नहीं मिला। उधर | सम्बोधित करते हुए कहा कि "सभासदो! हमें कोरे पुस्तकीय ज्ञान शिष्य सोकर उठा, अपनी चेतना को जागृत किया और गुरुजी से पूछा | | में न उलझकर व्यावहारिक विवेक बुद्धि को नहीं भूलना चाहिए। कि "गुरुवर, ताला खोलने का कोई सूत्र मिला या नहीं?" गुरु कोरे पुस्तकीय ज्ञान में उलझे रहे अतः असफल रहे, जबकि गुरु ने बड़े ही कातरभाव से मनाही में सिर झुका लिया। इधर शिष्य ने अपने व्यावहारिक ज्ञान से सफलता प्राप्त की अतः हमें शिष्य ने कहा "तो फिर ठीक है मैं ही ताला खोलता हूँ।" और वह विवेक से काम लेना चाहिए। पुस्तकें हमारी परम मित्र हैं किन्तु उनमें लिखे वचन भी हमें विवेक जागरण का ही सन्देश देते हैं। दरवाजे के पास आया, किवाड़ों को एक भरपूर नजर से देखा, हल्का सा धक्का देते ही ताला खुल गया (किवाड खुल गये) और वह सीधे इसीलिए तो कहा है -- विवेकी सदासुखी।" । एल-65, न्यू इन्दिरा नगर,ए, बुरहानपुर (म.प्र.) विपद्भवपदावर्ते पदिकेवातिवाह्यते। यावत्तावद्भवन्त्यन्याः प्रचुरा विपदः पुरः॥ भावार्थ-घंटी यंत्र में लगी घरिया की तरह जब तक एक विपत्ति भुगतकर तय की जाती है, तब तक दूसरी-दूसरी अनेक विपत्तियाँ सामने उपस्थित हो जाती हैं। 30 फरवरी 2003 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524270
Book TitleJinabhashita 2003 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy