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________________ के कारण भले ही इस भव से और भरत क्षेत्र से मोक्ष न हो, पर । श्रावक - आचार्यश्री ! मैंने निश्चय कर लिया कि अब विदेह क्षेत्र से तो हमेशा मोक्ष होता है। मानव पर्याय की दुर्लभता को नहीं खोना है। व्रत के बिना जीवन श्रावक- महाराज आज आपने मेरी आँखें खोल दी, मेरा व्यर्थ है, जबकि व्रत सहित मृत्यु सार्थक है। मैं तो अब एक क्षण मनुष्य जीवन सार्थक हो गया है। मैं इसी समय ही व्रती बनना भी व्यर्थ नहीं खोना चाहता हूँ। चाहता हूँ। कृपया कम से कम दूसरी प्रतिमा के व्रत देकर कृतार्थ आचार्य- ठीक है, एक बार पुनः विचार कर लो। करें। श्रावक - पक्का विचार कर लिया है। मुनि-देखो, मेरा काम आपको रास्ता दिखाना था। आपको आचार्य- ठीक है, अच्छे से साधना करना। दो प्रतिमा जो भी व्रत लेना हो, पास में आचार्यश्री हैं उनसे ग्रहण करो। और का संकल्प कर लो। कायोत्सर्ग (नौ बार णमोकार मंत्र पढ़ लो) यदि कोई जाने अनजाने में दोष लग जावे तो, उनसे ही प्रायश्चित कर लो। लेकर व्रतों की शुद्धि करना। श्रावक- महाराज जल्दी से जल्दी मोक्ष जाने में मेरे को श्रावक - आचार्यश्री ! नमोस्तु, नमोस्तु, नमोस्तु कितना समय लगेगा? आचार्य - आशीर्वाद (मौन मुद्रा में) आचार्य- यदि तुम व्रती बनकर अच्छे से समाधिमरण कर श्रावक- आज मुनि श्री से मेरी आँखें खुल गयीं । कृपया लोगे तो आचार्य कहते हैं कि तीसरे भव में मोक्ष जा सकते हो । यहाँ कम से कम दूसरी प्रतिमा देकर कृतार्थ करें। से सोलह स्वर्ग, स्वर्ग से पुन: मनुष्य होकर मोक्ष प्राप्त कर सकते हो। आचार्य - देखो, व्रत लेना सरल है, किन्तु उसका जीवन पर्यंत पालन करना होता है, यदि व्रत भंग हो जाते हैं, तो महान् श्रावक- समाधिमरण कैसे होता है? पाप लगता है। एक नियम तोड़ने का पाप एक मंदिर तोड़ने के आचार्य- अंत समय में समताभाव पूर्वक सभी प्रकार के पाप समान लगता है। इसलिए मृत्यु होने पर भी व्रत भंग नहीं आहार का त्याग पूर्वक शरीर का त्याग करना समाधिमरण है। करना चाहिए। विशेष भगवती आराधना ग्रंथ से समझना। महासंत के भोपाल आगमन से अमृत वर्षा से सरावोर हुई राजधानी आधुनिकता की दौड़ में अभ्यस्त भोपाल के नागरिकों । नेहरु नगर जैन मंदिर में आचार्यश्री के दर्शन करने राज्य की जीवनचर्या में अचानक आए बदलाव का कारण जानना | के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री श्री सुभाष सोजतिया एवं नगरीय चाहा तो ज्ञात हुआ कि एक महासंत के परम पवित्र पावन चरण प्रशासन मंत्री श्री सज्जन सिंह वर्मा भी पहुँचे। डॉ. पवन विद्रोही राजधानी में पड़ गए हैं। पिछले एक माह से मुनि मानतुंगाचार्य आचार्यश्री के दर्शनार्थ दोनों मंत्रियों को ले गए। आचार्यश्री के की तपस्या स्थली भोजपुर में शीतकालीन वाचना करने के | दर्शन कर दोनों मंत्री प्रभावित हुए तथा पंचकल्याणक प्रतिष्ठा उपरांत सर्वोदयी सन्त आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज अपने | महोत्सव के लिए हर तरह का सहयोग देने का आश्वासन दिया। समूचे संघ के साथ राजधानी में पधारे। मिसरौद होते हुए | नेहरु नगर जैन मंदिर निर्माण के लिए श्री वर्माजी ने एक ट्रक जवाहर चौक स्थित श्री दिग.जैन मंदिर में प्रवेश करने के बाद | सीमेंट एवं श्री सुजोतिया जी ने ग्यारह हजार रुपये देने की आगामी 19 जनवरी से 25 जनवरी 2003 को भोपाल में आयोजित | स्वीकृति प्रदान की। पंचकल्याणक महोत्सव के स्थल न्यू दशहरा मैदान में पहुंचे। | रमता जोगी बहता पानी की कहावत को चरितार्थ करते आचार्चश्री के सान्निध्य में भूमिशुद्धि का कार्यक्रम प्रतिष्ठाचार्य हुए आचार्य श्री महावीर नगर पहुँचे। रविवार को आयोजित ब्रह्मचारी विनय भैया ने संपन्न कराया। धर्मसभा में आचार्य श्री ने कहा कि दूसरों के लिए जीने वाला ही रविवार के विशेष प्रवचनों में आचार्यश्री ने कहा कि जियो और जीने दो को सार्थक कर सकता है। उन्होंने कहा कि बाहरी आकर्षण को जब तक गौण नहीं किया जाएगा तब तक आँखें जो देखती हैं वह हमेशा सत्य नहीं हो सकता परन्तु ज्ञान अंतरंग में परिवर्तन संभव नहीं है। जो जैसा करता है उसे वैसा के चक्षुओं से हमेशा सार्वभौमिक सत्य दिखाई देता है। इस करते रहने दो आप तो सिर्फ अपना कर्म अच्छा करो तभी अवसर पर पंचकल्याणक महोत्सव समिति के अध्यक्ष श्री महेश सद्गति को प्राप्त हो पाओगे। इस धर्मसभा में विराजमान आचार्यश्री सिंघई एवं महामंत्री श्री सुरेशचंद जैन एवं पं. सुनील शास्त्री, की परम विदुषी शिष्या आर्यिका पूर्णमति माताजी ने कहा कि | आगरा ने अपने उद्गार व्यक्त किए। पहले किरण आती है फिर सूरज का आगमन होता है। सभा पं. कमलकुमार 'कमलाकुंर' कोटरा, भोपाल का संचालन पं. कमलकुमार 'कमलांकुर' ने किया। -जनवरी 2003 जिनभाषित 7 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524269
Book TitleJinabhashita 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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