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________________ थायरोट्रोपिक हार्मोन इंसुलिन के प्रभाव को कम कर मधुमेह पैदा । खराबी, तंत्रिका संस्थान की अनेक विकृति, नपुंसकता, त्वच करते हैं। यकृत में पैदा होने वाला तथा पिट्यूटरी की अति | विशेषकर जननेन्द्रिय का सम्पर्क पेशाब से होने से थ्रश क्रियाशीलता से इंसुलिनेस एंजाइम,एंटागोनिएट्स तथा एंटीबॉडीज | (मोनिलिया)संक्रमण, खुजली, घाव, गर्भवती मधुमेही महिलाओं इंसुलिन के स्राव में असंतुलन पैदा करते हैं । इनके अतिरिक्त, 1. | में भ्रूण का आकार तथा जन्मजात शिशु के आकार तथा भार में आनुवांशिक पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाला मधुमेह छोटी आयु में | वृद्धि, गठिया, संधिवात आदि अनेक विकृतियाँ तथा रोग होते हैं ही प्रारंभ हो जाता है, यह असाध्य एवं इंसुलिन डिपेंडेंट होता है। | मधुमेह का अहिंसात्मक एवं प्राकृतिक उपचार 2. मोटापा, 3. बैठे-ठाले श्रम विहीन व्यवसाय, 4. संक्रमण, 5. | मधुमेह के विशेष उपचारतले भुने तथा मीठे आहार अग्नाशय स्थित इंसुलिन पैदा करने धूप में तेल मालिश 15 से 25 मिनट । वाली बीटा कोशिकाओं तथा यकृत को क्षतिग्रस्त कर मधुमेह पैदा • गीली चादर लपेट, Water massage करते हैं, 6. मानसिक चिंता, तनाव, क्रोध, प्रतिस्पर्धा से पिटयूटरी • करेले का रस रोज एक-एक गिलास दो बार। थायरायड, एड्रिनल ग्रंथि के कार्य अस्त-व्यस्त होने से मधुमेह • मैथी का पानी एक गिलास। होता है, 7. अग्नाशय में सूजन, कैंसर तथा तन्तु वृद्धि फाइब्रोसिस, • खट्टे फल ज्यादा लेना जैसे-मौसमी, संतरा, अनार, 8. अग्नाशय की धमनियों की कठोरता, 9. उम्र-70 साल के बाद आँवला आदि। इसके अतिरिक्तमधुमेह होने की शिकायत कम पायी जाती है, प्रायः 40 वर्ष के 1. सप्ताह में एक दिन गुनगुने जल का एनिमा देते हैं। बाद मधुमेह के लक्षण दिखते हैं, परन्तु जन्मजात अभिरुचि के 2. 15-20 मिनट का प्रतिदिन ठंडा कटि स्नान। कारण आनुवांशिक मधुमेह बचपन से ही प्रारंभ हो जाता है, 10. 3. पेट तथा पीठ की मालिश करके गर्म ठंडा सेंक देकर थायरायड की विकृति थायरायड टाक्सिकोसिस के कारण रक्त में मिट्टी की ठंडी पट्टी देते हैं। शर्करा की वृद्धि को अग्नाशय नियंत्रित करने के प्रयत्न में क्षतिग्रस्त 4. अग्न्याशय तथा पीठ का गरम ठण्डा सेंक देकर आधा होने लगता है, फलत: स्थायी मधुमेह पैदा हो जाता है । इसकी कु | घण्टे मिट्टी की पट्टी पेट पर बायीं तरफ अग्न्याशय को ढकते हुए छ अवस्थाओं में रक्त शर्करा नियंत्रित होती है परन्तु पेशाब में दें। इससे शरीर में आक्सीजन का उपयोग बढ़ जाता है साथ ही शर्करा की उपस्थिति होती है। 11. लिंग-स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों | कार्बोहाइड्रेट का आक्सीकरण एवं चपापचय क्रिया भी उन्नत में अधिक होता है । 12. एड्रिनल की अधिक क्रियाशीलता जैसे होती है। परीक्षा, खेल प्रतिस्पर्धा से उत्पन्न अचानक भय तथा उत्तेजना के 5. पानी के अन्दर शरीर की मालिश तथा उसके बाद कारण, 13. मद्यपान एवं धूम्रपान, 14. स्नायविक दुर्बलता तथा घर्षण स्नान देने से लाभ होता है। कुर्शिग सिण्ड्रोम आदि अनेक कारण हैं जिनसे अग्नाशय की बीटा 6. सप्ताह में दो दिन शरीर को गीली चादर लपेट देते हैं। कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं। इंसुलिन के अभाव में कोशिकाएँ 7. नींद की कमी में रात को गर्म पाद स्नान देते हैं। ग्लुकोस का उपयोग नहीं कर पाती हैं। रक्त शर्करा तथा मूत्र 8. नीम के पानी में तौलिया भिगोकर स्पंज स्नान देकर घर्षण स्नान देने से त्वचा की शुष्कता दूर होकर लचकता आती है। शर्करा बढ़ जाती है। रक्त में शर्करा के बढ़ने से अम्लाक्षार संतुलन | 9. रात्रि में सोने से पहले तथा खाने के 3 घंटे बाद पेट पर विक्षब्ध हो जाता है । सोडियम तथा पोटेशियम का पुनः अवचूषण | ठंडी पटी लपेट देते हैं। काफी कम हो जाता है और ऑस्मोटिक दबाव बढ़ जाता है। 10. परे शरीर पर मिट्टी स्नान देने से लाभ होता है। मधुमेह का दुष्प्रभाव 11. शरीर की चयापचय शक्ति बढ़ाने के लिए सम्पूर्ण मधुमेह के दुष्प्रभाव से रक्त में शर्करा अधिक होने से | वाष्प स्नान भी देते हैं। हाइपरग्लाइसेमिक मूर्छा तथा कम होने से हाइपोग्लाइसेमिक 12. प्रतिदिन 3-5 कि.मी. (सामर्थ्यानुसार) टहलना। मूर्छा, साँस फूलना, वमन की इच्छा, स्टेफलोकोकस तथा टी.बी. 13. जलाहार हफ्ते में कम-से-कम 3 दिन, बीच-बीच में कीटाणुओं का संक्रमण, पायरिया आर्टिस्क्लरोसिस, रक्तवाहिनियों | रसाहार करें। के रोग, आँखों में मोतियाबिंद, कम तथा विकृत दिखना, यौगिक क्रियाएँ एवं प्राणायाम रेटीनोवाइटिस, ऑपटिक न्युराइटिस, दृष्टि नाड़ी शोथ, मस्कलर 1. इसमें सूर्य भेदी प्राणायाम सर्वाधिक उपयोगी होता है। एट्रोफी, ऑस्टियोपोरोसिस, ब्रोंकाइटिस, हाइपो या एक्लोर हाइड्रिया, 2. उड्डियान एवं मूलबंध। यकृत वृद्धि, सिरोसिस, ब्लोमेरूलोस्क्लेरॉसिस, एल्व्युमिन यूरिया, 3. आसनः निम्न आसन करने से लाभ होता हैबोरासियमस बुलिमिया, सिरदर्द, विक्षुब्ध नींद, केन्द्रीय स्नायु संस्थान जानुशिरासन, अर्धमत्स्येन्द्रासन, कूर्मासन, उष्ट्रासन, पश्चि मोत्तानासन, योगमुद्रा, पद्मासन, उत्तानपादासन, धनुरासन, चक्रासन, के दोष, विटामिन बी 6 का फॉस्फोरिलेशन कम होने से उत्पन्न पवनमुक्तासन, मेरूदण्डस्नायु विकासक, उदर-शक्ति विकासक, स्क्लेरोसिस तथा कैल्सिनोसिस, वृद्ध मधुमेही रोगियों में न्यूमोनिया, शलभासन, नौकासन, भुजंगासन, सर्वांगासन, हलासन, मत्स्यासन, स्नायविक दोष, न्यूराइटिस, पॉली न्यूराइटिस, पैर तथा पैर के मयूरासन। अंगूठे में सूजन व दर्द, घाव, गर्भावस्था के बाद गर्भस्थ शिशु की भाग्यादेय तीर्थ प्रा. चि. मृत्यु, हृदय रोग का दौरा, उच्च रक्तचाप, गुर्दे तथा यकृत की सागर (म.प्र.) -अक्टूबर-नवम्बर 2002 जिनभाषित 35 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524267
Book TitleJinabhashita 2002 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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