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छात्र कपड़े एवं भोजन की थाली, ग्लास इत्यादि स्वयं ही स्वच्छ करते हैं। अपने स्थान की स्वच्छता का ध्यान छात्र स्वयं रखते हैं। कुल मिलाकर बच्चों के सर्वांगीण विकास को ही संस्था का प्रमुख उद्देश्य बनाया गया। संस्था की प्रगति में प.पू. आर्यनंदीजी महाराज एवं ट्रस्ट का योगदान
स्थापना के बाद स्वयं प.पू. आर्यनंदीजी महाराज ने छात्रों की धार्मिक पढ़ाई को प्रमुखता दी। बच्चों की सुबह से शाम तक की पूरी व्यवस्था में कार्यकर्ताओं को नियोजन के साथ जोड़ा। निरपेक्ष रहकर भी महाराजश्री गुरुकुल के लिए सबकुछ बन गये।
__ श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर, गुरुकुल एलोरा संस्था के वर्तमान अध्यक्ष श्री तनसुखलालजी ठोलिया, कोषाध्यक्ष श्री हुकुमचंदजी ठोलिया के वात्सल्य पूर्ण व्यवहार ने यहाँ के | गरुदेव समंतभद्र विद्या मंदिर शिक्षक वर्ग के कार्य को स्फूर्ति प्रदान की। शिक्षकों में भी कार्यरुचि | संस्था के अंतर्गत चलने वाले गुरुदेव समंतभद्र विद्या मंदिर बढती गयी। संस्था स्थापना के समय संस्था सचिव के रूप में | में भी सभी प्रकार की गतिविधियों को सम्पन्न किया जाता है। यहाँ आर्यनंदीजी महाराजश्री ने श्री पन्नालालजी गंगवाल का नाम सुझाया, | पर कक्षा 5 से 10 तक की पढ़ाई करायी जाती है। प्रधानाध्यापक जिन्होंने 1962 से आज तक इस सचिवपद को निष्कलंकित रखा। | श्री देवकुमारजी कान्हेड ने विद्यालय एवं संस्था के विकास में श्री पन्नालालजी गंगवाल साहब औरंगाबाद को पूरा गुरुकुल परिवार | बहुत बड़ा योगदान दिया है। प्रधानाध्यापक श्री निर्मलकुमार जी काकाजी के नाम से जानता है। काकाजी ने अपनी युवावस्था से | ठोलिया के नेतृत्व में पूरा स्टाफ योगदान देता है। ही अधिक से अधिक गुरुकुल में रहकर यहाँ की व्यवस्था को | गुणवंत विद्यार्थी सत्कार समारोह सुव्यवस्थित किया। सन् 1962 में इस गुरुकुल की शुरुआत टिन प.पू. समंतभद्र महाराजश्री को छात्रों से विशेष लगाव था। के कमरों में हुई थी और आज इसका जो विशाल रूप बना इसमें छात्रों को वे भविष्य में जैनधर्म का कर्णधार समझते थे। अत: श्री पन्नालालजी गंगवाल का बहुत बड़ा योगदान है। इन्होंने स्वयं पुण्यस्मरण के अवसर पर प्रतिवर्ष विद्यालय में दि. 18 अगस्त को 7,50,000 रु. की दान राशि आजतक इस संस्था को दी है। इससे
गुणवंत विद्यार्थी सत्कार समारोह मनाया जाता है। जिसमें विशेष भी अधिक मूल्यवान उनकी उपस्थिति एवं दिया हुआ समय है।
प्रावीण्य प्राप्त छात्रों को पुरस्कृत किया जाता है। इन पुरस्कारों में 7 जून 1962 श्रुत पंचमी के दिन जो वट कणिका बोई
विद्यालय का पूरा स्टाफ एवं ट्रस्ट मंडल का बड़ा योगदान है। इन गयी काकाजी ने उसे सींच-सींच कर आज विशाल वटवृक्ष बनाया
धार्मिक, शैक्षणिक, बोर्डपरीक्षा, क्रीड़ा, वक्तृत्व इत्यादि विषयों के है। वह अपने पैरों पर स्थिर हो चुका है। आज इस संस्था को न
लिए पुरस्कार बाँटे जाते है यहाँ का छात्र क्रीड़ा एवं वक्तृत्व में केवल महाराष्ट्र में, अपितु पूरे भारत वर्ष में विशेष सम्मान की दृष्टि | राज्य स्तर तक और उसके आगे तक पहुँचा है। से देखा जाता है।
इसी समारोह में किशनगढ़ निवासी श्री अशोकजी पाटनी धार्मिक एवं लौकिक पढ़ाई
(आर.के.मार्बल वालों) की तरफ से धार्मिक परीक्षा में प्रत्येक संस्था स्थापना के प्रमुख उद्देश्यों में प्रथम धार्मिक संस्कार | वर्ग में, प्रथम पारितोषिक- 5100 रु., द्वितीय पारितोषिक-2500 देना है। इसके अंतर्गत यहाँ कक्षा 5 से 10 तक 'भारती तत्त्वमाला' | रु. एवं तृतीय पारितोषिक -1100 रु. इस प्रकार कुल 52200 रु. (कारंजा से प्रकाशित जैनदर्शन का सामान्य परिचय) छहढाला, | की राशि छात्रों को बाँटी जाती है। रत्नकरण्ड श्रावकाचार, तत्त्वार्थसूत्र इत्यादि ग्रंथों की पढ़ाई कराई संस्था का भवन विकास जाती है। इसके लिए विद्यालय के अध्यापक स्वयं अवैतनिकरूप
संस्था की शुरुआत टीनशेड से हुई थी किन्तु आज अनेक में अतिरिक्त समय देते हैं। इन विषयों के अलावा अभिषेक, विशाल भवन बने हये हैं। दर्शनपाठ, सामायिक पाठ, स्तुतियाँ, पूजा, आरती इत्यादि का | संस्था में बने हुए नूतनतम भोजनालय निर्माण में श्री प्रशिक्षण दिया जाता है। दसलक्षण पर्व, महावीर जयंती, अक्षय
सुभाषसा केशरसा साहुजी जालना वालों एवं श्री अशोक पाटनी तृतीया, श्रुतपंचमी आदि अवसरों पर भाषण स्पर्धा, तत्त्वचर्चा, (आर.के.मार्बल) किशनगढ़ वालों का बहुत बड़ा योगदान प्राप्त संगोष्ठी, प्रवचन, आदि आयाजित किये जाते हैं। आनेवाले त्यागी- | हुआ है। छात्रों के सर्वाङ्गीण विकास के लिए प्रत्येक क्षेत्र में विज्ञों व्रतियों की पूरी व्यवस्था का ध्यान भी रखा जाता है। इस प्रकार | की व्यवस्था की गई है। बीमार छात्रों की व्यवस्था के लिए एक धर्म के सभी क्षेत्रों को स्पर्श करने का प्रयास रहता है। इनमें | शिक्षक एवं दो छात्र सदैव तैयार रहते हैं। डॉ. प्रेमचंदजी पाटणी सहभागी एवं विशेष छात्रों को पुरुस्कृत किया जाता है। | एवं डॉ. सौ. सरला पाटणी बीमार छात्रों की चिकित्सा करते हैं। 30 अक्टूबर-नवम्बर 2002 जिनभाषित
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