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इतिहासकारों की खोज एवं प्रारम्भ में उन्हीं के द्वारा उसका किया | बन सकता, वह तो बनता है दीर्घकालीन बहुआयामी तुलनात्मक गया मूल्यांकन प्रकाश में आया है?
अध्ययन, मनन एवं चिन्तन से तथा समतावृत्तिपूर्वक सभी उपलब्ध वस्तुतः लच्छेदार-भाषा में अपने इतिहास-विरुद्ध विचारों | साक्ष्यों के निष्पक्ष अध्ययन, मनन, चिन्तन तथा लेखन से। को प्रस्तुत करना शब्दों की कलाबाजी का प्रदर्शन मात्र ही है।
महाजन टोली नं. 2 इससे प्राचीन इतिहास भ्रम के कुहरे में कुछ समय के लिये भले
आरा (बिहार) 802301 ही धूमिल पड़ जाय, किन्तु उसके शाश्वत रूप को कभी भी मिटाया नहीं जा सकता।
दश वृष की संजीवनी ___नालन्दा स्थित कुण्डलपुर को जन्म-स्थली मानने वाले हमारे कुछ आदरणीय विद्वान् अपने ही प्राचीन दिगम्बराचार्यों के
__ प्रो. डॉ. विमला जैन, 'विमल' कथनों को तोड़-मरोड़ कर तथा उनके भ्रामक अर्थ करके उनके वास्तविक इतिहास को अस्वीकार कर समाज में भ्रम उत्पन्न कर रहे हैं। उन्होंने श्वेताम्बर साहित्य, बौद्ध-साहित्य एवं पुरातात्त्विक
शाश्वत पर्व महान का, भादव मास पुनीत, प्रमाणों को भी अप्रामाणिक घोषित कर शंखनाद किया है कि
धर्माकुर की पौध बन, हरित-फलित वृष नीत। उनकी मान्यता मानने वाले "अज्ञानी" तथा आगम-विरोधी हैं। दश लक्षण हिय धार कर, भव्य बढ़े हर्षाय, इसी क्रोधावेश में वे उन पर कहीं कोई-कोर्ट केस भी दायर न कर मुक्ति रमा जयमाल ले, खड़ी द्वार पर आय।
उत्तम क्षमा पीयूष उर, चउदिश मीत अनेक, विदेह- वैशाली स्थित कुण्डलपुर को भगवान महावीर की जन्मस्थली सिद्ध करने वाले अनेक सप्रमाण लेख भगवान
क्रोध विभाव तिमिर हटा, हर्षालोक विवेक। . महावीर स्मृति-तीर्थ-स्मारिका (पटना), वर्धमान महावीर स्मृति उत्तम मार्दव वृष महा, मृदुल हिया जगमीत, ग्रन्थ (दिल्ली), जैन सन्देश (मथुरा), समन्वयवाणी (जयपुर), मान कटारी फैंक दी, शाश्वत हो गयी जीत। प्राकृत-विद्या का वैशालिक महावीर विशेषांक (दिल्ली), जैन बोधक,
उत्तम आर्जव सरल मन, मानव बनता भव्य, मराठी, (बम्बई) आदि में प्रकाशित हो चुके हैं, अतः उन्हीं
मायाचारी छल कपट, दुखद करें भवितव्य। प्रमाणों को इस निबन्ध में भी प्रस्तुत करना पुनरावृत्ति मात्र ही होगी। अत: मेरी दृष्टि से यदि विद्वद्गण विदेह-देश तथा उसकी उत्तम शौच सुश्रेष्ठ है, करता अमल त्रियोग, प्राच्यकालीन अवस्थिति पर बिना किसी पूर्वाग्रह के गम्भीरतापूर्वक लोभ पाप मल पंक में, डूब मरे भव भोग। विचार कर लें, तो सभी के समस्त भ्रम अपने आप ही समाप्त हो
उत्तम सत्य की साधना, हित-मित मीठे बैन, जावेंगे।
मिथ्या कटु बहु बोलना, हर लेते सुख चैन। विदेह-कुण्डपुर या कुण्डलपुर के समर्थन में जैन-सन्देश (मथुरा) में अभी हाल में अ.भा. दिग. जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी के उत्तम संयम वृष बिना, मिले न नर को मुक्ति, अध्यक्ष श्रीमान् साहू रमेशचन्द्र जी (दिल्ली) ने विविध प्रमाणों के रक्षा प्राणी मात्र की, इन्द्रिय वस कर युक्ति। साथ अपने सुचिन्तित विचार प्रकाशित किये ही हैं। अत: यहाँ उत्तम तप के ताप से, आत्म कनक परमात्म, अधिक लिखना अनावश्यक मानता हूँ।
द्वादश तप सम्यक किये, कर्म कटे भव्यात्म। कोई भी विचारशील व्यक्ति इसका विरोध कभी भी नहीं कर सकता कि किसी भी तीर्थभूमि का विकास न हो, या वहाँ पर
उत्तम त्याग से लोक में, होय स्व-पर कल्यान, कोई नया निर्माण कार्य न हो। वस्तुतः ये सब कार्य तो होना ही
राग द्वेष अरु मोह तज, देहु चतुर्विध दान । चाहिये, किन्तु वहाँ के इतिहास को बदल कर नहीं तथा दूसरों के उत्तम आकिंचन धरम, वीत राग विज्ञान, लिए "अपराधी'" जैसे असंवैधानिक शब्दों का प्रयोग करके नहीं।
चतुर्वीस परिग्रह तजे, चढ़े मुक्ति सोपान । क्योंकि क्रोधावेश, पूर्वाग्रहपूर्वक एवं इतर-साक्ष्यों को बिना किसी परीक्षण के ही दोषपूर्ण कह देना, ये निष्पक्ष-विचारकों के लक्षण
उत्तम ब्रह्मचर्य वृष, ब्रह्मरूप सन्देश, नहीं हैं।
शील शिरोमणि भव्य का, जगत रहे ना शेष। आक्रोश दिखाने से इतिहास नहीं बनता, वह धनराशि की दश वृष की संजीवनी देते सन्त सहेज, चमक दिखाने से भी नहीं बनता, पूर्वाचार्यों के कथन को तोड़- 'विमल' त्रियोग सुसाध ले, सहज मिले शिव सेज। मरोड़कर नई-नई व्याख्याएँ करने से परम्परा एवं इतिहास में विकृति आती है। बड़े-बड़े खर्चीले सुन्दर ट्रैक्ट्स तथा सचित्र
1/344, सुहाग नगर, फिरोजाबाद कीमती पोस्टरों के प्रचार से भी सर्वमान्य प्रामाणिक इतिहास नहीं |
-अक्टूबर-नवम्बर 2002 जिनभाषित 21
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