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________________ भगवान् महावीर की जन्मभूमि कहाँ? प्रो. (डॉ.) राजाराम जैन जब भगवान् महावीर के 2600वें जन्म कल्याणक महोत्सव | ससंघ अपने नवदीक्षित शिष्य मगध सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य (प्रथम) वर्ष के मनाए जाने की घोषणा की गई और भारत सरकार ने | के साथ दक्षिण भारत गये थे। उस भीषणता में मगध एवं विदेह से उसके बहुआयामी रचनात्मक कार्यक्रमों के लिए 100 करोड़ | निर्ग्रन्थों को स्थान-परिवर्तन के लिये बाध्य होना पड़ा था। यह रुपयों के आवण्टन की स्वीकृति दी, तो उससे जैन समाज में सर्वत्र | विषम स्थिति आगे भी विपरीत परिस्थितियों के कारण बढ़ती हर्षोल्लास छा गया। विभिन्न समितियों तथा उनके नेताओं एवं | रही। फिर भी किन्हीं कारणों से कुछ जैनधर्मानुयायी एवं निर्ग्रन्थ मार्ग-दर्शकों ने अपनी-अपनी दृष्टि से बृहद् योजनाएँ बनाईं, बजट | वहाँ रह गये थे। क्योंकि सुप्रसिद्ध चीनी यात्रियों ने विदेह-वैशाली बनाए और तदनुसार भारत सरकार से उनकी आपूर्ति हेतु अपनी- | के निर्ग्रन्थों की प्रचुरता की चर्चा की है। किन्तु बाद में वे सब अपनी माँगें प्रस्तुत की। इसमें किसी के लिए विरोध करने का | निर्ग्रन्थ कहाँ चले गये? क्या कभी.इस तथ्य पर भी विचार किया कोई प्रश्न ही न था। गया है? तह में जाकर देखें तो विदित होगा कि ईसा-पूर्व तीसरी किन्तु दु:ख तो तब हुआ, जब समारोह के मूलनायक | सदी के बाद से लेकर गुप्त काल के मध्य जैन समाज पर इतर भगवान् महावीर के जन्म स्थल को लेकर ही विवाद खड़े किये | ईर्ष्यालुओं ने कितने-कितने कहर ढाए? शैवों एवं शाक्तों ने जैनियों जाने लगे। किसी ने नालन्दा के समीपवर्ती कुण्डलपुर को उनका | को नास्तिक कहकर "हस्तिना ताड्यमानोऽपि न गच्छेत् जैन जन्म स्थल बतलाना प्रारम्भ कर दिया, तो किसी ने मुंगेर स्थित | मन्दिरं" के नारे लगाकर दक्षिण भारत के समान ही वहाँ भी लिछुवाण को, जब कि विदेह स्थित वैशाली-कुण्डलपुर की युगों- | भीषण नरसंहार किये, उनका धर्म-परिवर्तन किया गया अथवा युगों से उनकी जन्मस्थली के रूप में मान्यता चली आ रही है। उनको अपने देश के बाहर खदेड़ भी दिया गया। यहाँ तक कि गनीमत यही रही कि दमोह (मध्यप्रदेश) के समीपवर्ती कुण्डलपुर | उनके आयतनों के नामोनिशान तक भी समाप्त कर दिये गये। इन्हीं को उनकी जन्मभूमि घोषित नहीं किया। सब कारणों से परवर्ती कालों में वैशाली-कुण्डलपुर तथा उसके प्रारंभ में ऊहापोह चल ही रही थी कि एक महान् संस्था भवनों, आयतनों एवं वहाँ के श्रमण-निर्ग्रन्थों का वहाँ कोई स्थूल ने अपने एक सम्मेलन के प्रसंग में उसकी संगोष्ठी का एक ऐसा | नाम-निशान भी न रहा। विषय रख दिया, जिसका शीर्षक था-"महावीर स्वामी की जन्मभूमि | प्राच्यकालीन अफगानिस्तान, तिब्बत, मंगोलिया, नेपाल कुण्डलपुर है, वैशाली नहीं।" किन्तु सम्मेलन संगोष्ठी का उक्त | एवं भूटान के सामाजिक इतिहास के अध्ययन से इसकी अच्छी विषय देखकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता नहीं हुई और मैंने आयोजकों | जानकारी मिल सकती है। के उक्त विचार से अपनी असहमति जताई थी। दिनांक 26 जनवरी . इस प्रसंग में मुझे एक दु:खद स्मरण आ रहा है। देशरत्न 2001 को मैंने एक संक्षिप्त पत्र भी लिखा था, जिसमें आचार्य | डॉ. राजेन्द्रप्रसाद जी (प्रथम राष्ट्रपति) वैशाली में महावीर स्मारक गुणभद्र तथा अन्य कुछ जैन एवं जैनेतर ग्रन्थों तथा पुरातात्त्विक का शिलान्यास कर रहे थे। उसमें अनेक मंत्रीगण, नेतागण, जैन सन्दर्भ प्रस्तुत करते हुए सादर निवेदन किया कि भगवान् महावीर | समाज के प्रतिष्ठित नेतागण, प्रो. डॉ. हीरालाल जी जैन आदि की जन्मस्थली विदेह स्थित (अथवा वैशाली स्थित) कुण्डलपुर उपस्थित थे। डॉ. हीरालाल जी ने स्मारक के विषय में जो प्राकृतही है, और इस समय जन्मस्थली को लेकर किसी भी प्रकार के | पद्य लिखे थे, वे उनका पाठ तथा हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत कर रहे भ्रम अथवा विवाद खड़े करने से जैनेतरों तथा केन्द्रीय एवं प्रान्तीय | थे। सर्वत्र हर्ष का वातावरण था, किन्तु एक सज्जन, जो कि सरकारों में गलत सन्देश जायगा कि जैन समाज असंगठित है, जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय में वरिष्ठ एवं ख्यातिप्राप्त प्रोफेसर थे,वे समाज के भविष्य के लिये हितकारी नहीं, क्योंकि यह ऐतिहासिक अपने एक साथी से कह रहे थे कि जिन नास्तिकों को यहाँ से तथ्य है कि पिछले पारस्परिक विवादों ने जैन-संघ की शक्ति को उखाड़ने एवं भगाने में सदियाँ लग गईं, अब उन्हें ही फिर से यहाँ बिखेर दिया है। बुलाने एवं स्थापित करने के प्रयत्न किये जा रहे हैं। वस्तुत: वे प्रारंभ में जैन समाज बहुसंख्यक, श्रीसमृद्ध एवं सुसंगठित | सज्जन स्थानीय ही थे और उनके ये विचार कुछ समय तक वहाँ होने के कारण न केवल भारत में, अपितु विदेशों में भी अत्यन्त | चर्चा के विषय भी बने रहे थे। सम्मानित एवं प्रभावक था। पिछला इतिहास ऐसे अनेक उदाहरणों . हमारे प्राचीन महामहिम आचार्यों को ग्रन्थ-लेखन के काल से भरा पड़ा है। किन्तु आज उसकी क्या स्थिति होती जा रही है? | में अपने-अपने स्थलों पर जो भी प्रत्यक्ष या परोक्ष जानकारी यह तो सर्वज्ञात ही है कि ईसा पूर्व चौथी सदी में मगध | मिली, उसके आधार पर उन्होंने भगवान् महावीर के चरित का सहित समस्त पूर्व एवं उत्तर भारत में भीषण दुष्काल पड़ा था और | चित्रण किया। भले ही उनमें यत्किञ्चित् विभेद रहा हो, फिर भी इस कारण श्रमण धर्म एवं संघ की सुरक्षा हेतु आचार्य भद्रबाहु | अधिकांश ने एक मत से उस तथ्य की सूचना अवश्य दी कि -अक्टूबर-नवम्बर 2002 जिनभाषित 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524267
Book TitleJinabhashita 2002 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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