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गुरुदेव विद्यासागर
डॉ. वन्दना जैन
विद्या का ही सागर है
कैलाश मड़वैया
गगन का हर सितारा अब तुम्हारे गीत गायेगा। प्रभंजन देखकर साहस तुम्हारा, ठहर जायेगा।
सरोवर की इसी माटी में, तुमने जन्म पाया है। नये अंकुर सरीखा पथ, तुम्हें बचपन से भाया है। तुम्हारे मान और सम्मान पर जग झूम जायेगा। गगन का हर सितारा अब तुम्हारे गीत गायेगा।
विद्या का ही सागर है या सागर की ही विद्या ये, हाड़ मांस देह बीच ज्ञान-गीत-गागर है। सम्यक् ज्ञान, सम्यक दृष्टि, सम्यक् चारित्र युक्त, बीसवीं सदी का आश्चर्य ये उजागर है। ज्ञान औ चरित्र जैसे पा गये शरीर एक और इस शरीर में समाया धर्म आगर है। सूरज की धूप और चन्द्रमा का रूप लिये, तीर्थंकर सा धरती पै आज विद्यासागर है।
लिया संकल्प मुक्ति मार्ग पर चलने की बेला में। पवन भी हो गया गतिहीन, उस अचरज की बेला में। विजय का पथ ये साहस की निशानी देख पायेगा। गगन का हर सितारा अब तुम्हारे गीत गायेगा।
तुम्हारा देखकर तप त्याग, पूर्वज मुस्कराते हैं। गगन से कुंदकुंदाचार्य जी कुंदन लुटाते हैं। उन्हीं सा यश तुम्हारा, इस धरा पर फैल जायेगा। गगन का हर सितारा अब तुम्हारे गीत गायेगा।
ज्ञान की पिपासा जिसे देख और और बढ़े, ज्ञान मुक्ताओं में ये हीरा है-जवाहर है। जिज्ञासा की हरी भरी भूमि पै वितान दिव्य, सौम्य, सरल, श्वेत-शांत, ज्ञान-दीप्त-चादर है। सिन्धु में तो सरितायें डूबतीं हैं आ-आकर, किन्तु इस सागर से निकलती ज्ञान-धारायें। लक्षण-विलक्षण-दशलक्षण का भव्य रूप, आज 'जिनता' का पर्याय विद्यासागर है।
है तुममें ओज शांति सा, दमक है वीर सागर सी। शिव सागर सा जीवन दर्श तेरा है ओ तेजस्वी। ज्ञान सागर का पाकर अंश जग ये जगमगायेगा। गगन का हर सितारा अब तुम्हारे गीत गायेगा।
'नर्मदा का नरम कंकर' हो गया है 'मूक माटी',
और उस माटी में समाया 'समय सार ' है। दक्षिण से उत्तर का पानी, पानीदार हुआ नर्मदा औ बेतवा में 'विद्या' वाली धार है। 'वर्णी' के बाद किसी सन्त ने जगाया ऐसा, ऐसे लगा जैसे यह वही अवतार है। 'श्रवणबेलगोला' जैसे आ गये हों मध्य-देश, उत्तर से दक्षिण का सेतु 'विद्यासागर' है।
नहीं संदेह अब हमको कभी दिग्भ्रांत होने का। यही विश्वास है पक्का यहाँ प्रत्येक मानव का। डगर का शूल बनकर फूल, फिर स्वागत में आयेगा। गगन का हर सितारा अब तुम्हारे गीत गायेगा।
भाग्यादेय तीर्थ प्राकृतिक चिकित्सालय सागर (म.प्र.)
75, चित्रगुप्त नगर, कोटरा भोपाल (म.प्र.)-462003
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