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________________ व्यक्ति और कृति साठ वर्ष के 'सरल' में छः वर्ष की सरलता समाई डॉ. आनंद जैन देश के आठ महान सन्तों की जीवन-गाथा लिखते हुए। लेखनी से "सर्व-हिताय" के स्वर अधिक मिलते हैं, वे साहित्य आठ विशेष ग्रन्थों की रूपरेखा तैयार कर देने वाले श्री सुरेश सरल को जिस ऊँचाई से लिखते हैं, जीवन को उसी ऊँचाई से जीते हैं, एकमात्र साहित्यकार हैं जो सन् 84 से अब तक केवल सन्तों- | सादगी और उदारता उनके अलंकरण हैं, परोपकार व्रत। साध्वियों और अध्यात्म पर कलम चला रहे हैं और देश के देश के अनेक नगरों के जैन समाज द्वारा समय-समय पर साहित्य संसार से सर्वथा नवीन एवं मौलिक सूत्रों पर समाहित | उनके सार्वजनिक अभिनंदन किये गये हैं, उसी श्रृंखला में गत वर्ष साहित्य का भंडारण कर रहे हैं। खण्डेला (राजस्थान) समाज से उन्हें उनके लेखन पर यों स्व, पं. हरिशंकर परसाई जी से प्रभावित होकर श्री | "स्वर्णाभिनंदन-पत्र' और इकतीस हजार रु. की राशि से अभिनंदित सरल ने वर्ष 70 से 84 तक देश के पत्र-पत्रिकाओं में सार्थक किया जा चुका है। व्यंग्य-लेख, व्यंग्य-कविता और व्यंग्य-कथाओं का क्रमबद्ध लेखन उनकी अनेक सच्चाइयाँ समय के शिलालेखों पर स्वर्णाक्षरों किया था, उसी अवधि में व्यंग्य को लेकर उनकी दो पुस्तकें भी | से लिखी जा सकेंगी कि वे साहित्य और जीवन में सरलता का रंग पाठकों के समक्ष आई थीं। भर रहे हैं, कि वे अपने साहित्य को औदार्य और निस्वार्थता का फिर सन् 84 से आचार्य विद्यासागर का सान्निध्य प्राप्त कर | वह धरातल दे रहे हैं जो आनेवाली पीढ़ियों को प्रकाश स्तम्भ का लेने के बाद, सरल जी के प्रौढ़-मन और परिपक्व लेखनी ने | कार्य करेगा, कि वे सरल हों या कठिन परन्तु सन्त-जीवनी की केवल सन्त-विषय को स्पर्श किया और अपनी जीवन 'कथा- सुगन्धों से आप्लुत हैं, कि वे सन्त-साहित्य और सन्त-स्वभाव के शिल्प' के सहारे सबसे पहले आचार्य विद्यासागर, फिर मुनि जौहरी हैं, कि वे मौन और एकान्त स्थल को सजाने वाले साधकसुधासागर और उसके बाद आचार्य विरागसागर की जीवनी लिखी। पुरुष हैं, कि स्वेच्छा से जीवन को तप में निरत करने वाले विषपायी क्रम ऐसा बना कि फिर शांत न बैठ सके और देखते-ही-देखते | हैं, कि वे साठ वर्ष के हैं पर उनमें छ: वर्ष की सरलता समाई हुई अर्ध-दशक में स्व. आचार्य ज्ञानसागर, स्व. आचार्य विमलसागरजी, | है। उनके विषय में मनीषी मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने उपाध्याय गुप्तिसागरजी, उपाध्याय ज्ञानसागरजी एवं मुनिरत्न | लिखा है-"सरल वर्तमान दौर के अति विशिष्ट कथाकार हैं, वे तरुणसागरजी के चरित्र लिखे। 'सन्त-चरित' लिखते समय वे | भले ही सरल हों परंतु पुरस्कार उन्हें भारी लेखकीय-श्रम कर लेने उसमें अपने स्वाध्याय की पूर्ति भी कर लेते हैं। क्योंकि उनकी के बाद मिले हैं। मौलिक साहित्य की सर्जना में निरंतरता बनाये कलम भक्ति के धरातल पर चलती है। कठिनाइयों को स्वेच्छा से | रखने में कृतसंकल्पित श्री सरल को सिद्ध-हस्त-लेखकों की अंगीकार कर अपने सुख-साखों को तिलांजलि दे सरलजी नित्य राष्ट्रीय-सूची में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है" लेखन कर्म की तपाग्नि से गुजरते हैं और जाप की तरह अनिवार्य दस वर्ष तक मंच संचालन का सुनहरा इतिहास घड़ने लेखन को नित नये आयाम प्रदान करते हैं। वाले सरल जी की कथा या कहानी-लेखन में जितनी स्वस्थ अब तक अठारह प्रकाशित कृतियाँ और पाँच अप्रकाशित पकड़ है, उतनी ही लेख और व्यंग्य शिल्पन में है, कविता तो ग्रन्थ, साहित्य-जगत की झोली में, उनकी कलम के अवदान के उनके मानस में ही रमी हुई है। उनकी विशेष पंक्ति-“जिसे चार रूप में स्थान पा चुके है। लगभग सत्रह वर्षों से श्री सरल किसी दाने मिल जाते, भूल बैठता वह उड़ान है।" भी स्पर्धा, प्रतियोगिता, मंचबाजी, गोष्ठीबाजी और संस्थाबाजी से जैन-त्यागीगण बतलाते हैं कि जैन परम्परा की दृष्टि से श्री दूर, किन्तु सबके प्रति निर्मल-भावनाएँ लेकर-चलनेवाले, समय सरल के उक्त आठ ग्रन्थों ने श्रुत-संवर्द्धन में महान सहयोग किया के एकमात्र व्यस्त लेखक हैं, जो प्रतिदिन दो-तीन घंटे का समय है। आज बड़े-से-बड़े विद्वान केवल प्राचीन ग्रंथों की टीकाएँ लेखन-संशोधन को प्रदान करके ही चैन अनुभूत करते हैं। मुंशी लिखकर अपनी भूमिका की इति समझ लेते हैं, तब सरल जी प्रेमचंद की लेखनी की सरलता और जैनेन्द्र कुमार की दार्शनिकता दिगम्बर संतों के चरित पर लेखनी चला कर अपना अजर-अमर सरलजी की लेखनी का स्वभाव बन चुके हैं । वे स्व. डॉ. धर्मवीर भारती, स्व. कविवर वीरेन्द्र जैन और वरिष्ठ मनीषी स्व. डॉ. कर रहे हैं। गत सौ वर्षों में कितने आचार्य हुए, कम ही लोग नेमीचंद जैन से भी कम प्रभावित नहीं हुए हैं। जानते हैं, किन्तु आचार्य शांतिसागरजी को सभी जानते हैं, क्योंकि देश के बड़े मंच और बड़ी से बड़ी पत्रिका के स्नेह प्राप्त उनका जीवनवृत्त पं. दिवाकर जी द्वारा लिखा गया था। एक मायने कर लेने वाले सरल, अत्यन्त सुलझे हए साहित्यकार हैं और | में श्री सरल जी दिवाकरजी द्वारा प्रज्ज्वलित किये गये दीप को सरलता को प्रथम धर्म-गुण मानते हैं। अपनी लेखनी से और-और तेजवान कर रहे हैं। नूतन दीप बाल भारतीय क्राँति दिवस, 9 अगस्त 1942 को संस्कारधानी कर धर रहे हैं, एक सुन्दर दीपावली घड़ रहे हैं, वह भी आधुनिक में जन्मे सरल 9 अगस्त 2002 को 60 वर्ष के हो रहे हैं। कहें उन्हें भाषा में और अत्याधुनिक शैली में। जीवन-ग्रन्थ के 60 पृष्ठ बाँच लेने का अनुभव प्राप्त है। उनकी 69, गल्ला बाजार रोड, सागर (म.प्र.) 26 अगस्त 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524265
Book TitleJinabhashita 2002 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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