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________________ केन्द्र बने और सरकारी अनुदान से इसलिए कि जैनधर्म दर्शन, संस्कृति एवं साहित्य भी हमारे देश की गरिमा है। अतः वैदिक, बौद्ध, मुस्लिम शिक्षण संस्थानों की तरह हमें भी इनके संवर्द्धन, संरक्षण हेतु सरकार से आर्थिक अनुदान का उतना ही अधिकार है जितना अन्यों को। हमारे समाज का टैक्स आदि के रूप में सरकारी खजाने भरने में सर्वाधिक योगदान भी है। अतः सही ढंग से चलाया जाय तो विशिष्ट अनुसंधान तथा अध्ययन के उद्देश्य को लेकर चलने वाला यह जैन विश्वविद्यालय नये कीर्तिमान स्थापित कर सकता है। विश्वविद्यालय और पारम्परिक महाविद्यालयों, पाठशालाओं में मौलिक अन्तर यही होता है कि विश्वविद्यालय पूजन, पाठ, विधान और प्रवचन आदि के ट्रेनिंग केन्द्र नहीं हैं। इसलिए यह हो सकता है कि समाज को इस विश्वविद्यालय से सीधा-सीधा विशेष लाभ न दिखे, प्रकारान्तर से यह समाज का ऐतिहासिक सच्चा सेवक सिद्ध हो सकता है। यदि हम अन्तर्राष्ट्रीय शैक्षणिक स्तर पर जैन संस्कृति की कोई स्थिति प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें अवश्य ही छोटे-छोटे लाभ के लोभ का संवरण करना ही पड़ेगा, क्योंकि इस प्रकार के अन्य स्रोत बहुत हैं। सुप्रसिद्ध खिलाड़ी सचिन तेन्दुलकर से यह अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए कि वह हमारे लिए तभी उपयोगी होगा जब वह हमारे गली-मुहल्ले में होने वाले खेलों में भी भाग ले । विभागों का वर्गीकरण जैन विश्वविद्यालय संचालित करने में जो प्रमुख उद्देश्य है वह है - ' अध्ययन-अध्यापन - अनुसंधान - अनुवाद और सम्पादन'। इस दृष्टि से जैन विश्वविद्यालयों में निम्नलिखित विभागों का वर्गीकरण होना चाहिए 1. प्रथमानुयोग विभाग- इस विभाग में 63 शलाका पुरुषों के चरित के आधार पर रचित पुराणों, कथा ग्रन्थों तथा उनमें वर्णित कथाओं और उपदेशों का अध्ययन व अनुसन्धान हो । कथानुयोग के समस्त ग्रन्थों का इस विभाग में अध्ययन-अध्यापन कराया जाय। उस पर शोध कार्य हों। हस्तलिखित पाण्डुलिपियों का सम्पादन एवं प्रकाशन हो । 2. करणानुयोग विभाग यह विभाग एक संकाय के रूप में भी कार्य कर सकता है। जिसके अन्तर्गत कई विभाग अलग-अलग विषयों पर कार्य कर सकते हैं। जैसे क) जैन गणित विभाग इस विभाग में गणित की उत्पत्ति से लेकर आज तक की गणित में जैन गणितज्ञों द्वारा रचित शास्त्रों को क्रमबद्ध पाठ्यक्रम बनाकर उसका अध्ययन-अनुसन्धान किया जाय। जैन गणित के चमत्कारों को दुनिया के समक्ष रखा जाय । वैदिक गणित व आधुनिक गणित से जैन गणित का तुलनात्मक अध्ययन हो । अप्रकाशित प्राचीन ग्रन्थों का सम्पादन व प्रकाशन हो । ख) जैन भूगोल विभाग- इस विभाग में जैन भूगोल Jain Education International का शास्त्रीय व वैज्ञानिक तुलनात्मक अनुसन्धान व अध्ययन हो अप्रकाशित ग्रंथों का सम्पादन व प्रकाशन हो । ग) जैन खगोल विभाग इस विभाग में जैन दृष्टि से तथा अन्य धर्मों से तुलना करते हुए अध्ययन, अनुसन्धान हो तथ अप्रकाशित पाण्डुलिपियों को एकत्रित कर उसका संपादन व प्रकाशन कार्य हो । घ) जैन ज्योतिष विभाग- इस विभाग में जैन ज्योतिष की तथा अन्य परम्परा की ज्योतिष विद्या से तुलनात्मक अध्ययन हो। ज्योतिष, हस्तरेखाविज्ञान, निमित्त ज्ञान, सामुद्रिक शास्त्र इत्यादि विषयों पर इस विभाग के अन्तर्गत अध्ययन-अध्यापन व अनुसन्धान हों । - 3. चरणानुयोग विभाग इस विभाग में श्रावक एवं श्रमण के आचारपरक शास्त्रों का अध्ययन-अध्यापन हो। इसका सभी छोटी-बड़ी कक्षाओं के अनुरूप सुव्यवस्थित पाठ्यक्रम तैयार किया जाय । ग्रन्थों पर शोधकार्य हो । प्राचीन अप्रकाशित पाण्डुलिपियों को खोजा जाय, उनका सम्पादन व प्रकाशन हो। 4. जैन द्रव्यानुयोग विभाग इस विभाग में भी दो उपविभाग होंगे। पहला अध्यात्म शास्त्र विभाग और दूसरा न्यायशास्त्र विभाग। इनसे सम्बन्धित प्रमुख शास्त्रों को व्यवस्थित पाठ्यक्रम बनाकर इस विभाग में पढ़ाया जाय तथा इस दृष्टि से अध्ययनअध्यापन व अनुसन्धान कार्य भी कराया जाय। अन्य परम्पराओं के शास्त्रों से तुलनात्मक अध्ययन भी किया जाए। 5. जैन इतिहास, कला एवं पुरातत्त्व विभाग इस विभाग में जैन इतिहास को एक नये सिरे से नये खोजे गये प्रामाणिक तथ्यों के आधार पर लिखा जाय, उसका अध्ययन अनुसंधान हो । लिपि विज्ञान, मूर्तिकला, वास्तुकला, चित्रकला इत्यादि विषयों पर अध्ययन हो तथा तत्सम्बन्धित अप्रकाशित ग्रन्थों का प्रकाशन हो । जैन पुरातत्त्व के साक्ष्यों को इस विभाग में एकत्रित किया जाय। जैन इतिहास के तथ्यों को दुराग्रहवश तोड़मरोड़कर विश्व में किसी के द्वारा यदि कहीं भी प्रस्तुत किया जाय, तो उसको यहाँ से समाधान मिले। सिंधु घाटी सभ्यता, मोहनजोदड़ो, हड़प्पा संस्कृति, विभिन्न प्राचीन शिलालेखों इत्यादि का पुनः अध्ययन हो। इसी विभाग के अन्तर्गत एक व्यवस्थित विशाल जैन पुरातत्त्व संग्रहालय भी विश्वविद्यालय में स्थापित किया जाय। 6. जैन संगीत एवं नृत्यकला विभाग इस विभाग में इस बात का प्रशिक्षण व अनुसन्धान हो कि संगीत एवं नृत्य जगत् के लिए जैन संस्कृति का क्या अवदान रहा? इन विषयों से सम्बन्धित शास्त्रों का अध्ययन, सम्पादन व प्रकाशन हो । 7. प्राकृत भाषा एवं साहित्य विभाग इस विभाग में सभी प्राकृत भाषाओं एवं उनके साहित्य का सुव्यवस्थित रूप में अध्यापन होगा। यहाँ प्राकृत व्याकरण साहित्य के सभी पहलुओं पर विचार-विमर्श व अनुसन्धान अपेक्षित है। 8. अपभ्रंश भाषा विभाग- इस विभाग में भी भाषा एवं -अगस्त 2002 जिनभाषित 17 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524265
Book TitleJinabhashita 2002 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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