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________________ दूसरों का दुःखदर्द देखकर भी/नहीं आ सकता जिसे । मिटने, लोभ-क्षोभ, सगा-दगा, इन प्रयोगों में अन्त्यानुप्रास ने पसीना/है ऐसा तुम्हारा सीना/(पृ. 49-50) संगीतात्मक श्रुतिमाधुर्य की सृष्टि की है। दुष्ट प्रकृति के लोग धर्म का उपयोग अपने को सुधारने में भगवान् आदिनाथ द्वारा उपदिष्ट मोक्षमार्ग की आजकल न कर साम्प्रदायिक विद्वेष फैलाकर निहित स्वार्थों की सिद्धि में चर्चा बहुत होती है। उसका हृदयद्रावक प्रवचन करने वाले करते है। इस मानवस्वभाव की हदय को मथ देनेवाली कलात्मक प्रवचनकर्ता बरसाती मेंढकों के समान प्रकट हो गये हैं। किन्तु वे अभिव्यक्ति निम्न पंक्तियों में हुई है मोक्षमार्ग की केवल बात ही करते हैं, उस पर चलते नहीं है। इस कहाँ तक कहें अब/धर्म का झण्डा भी डण्डा बन जाता है/ | तथ्य की अभिव्यक्ति निम्न शब्दों में बड़ी पैनी हो गई हैशास्त्र शस्त्र बन जाता है अवसर पाकर/ आदिनाथ से प्रदर्शित पथ का और प्रभु-स्तुति में तत्पर सुरीली बाँसुरी भी। आज अभाव नहीं है माँ ! बाँस बन पीट सकती है। प्रभुपथ पर चलने वालों को/ परन्तु उस पावन पथ पर समय की बलिहारी है। (पृ.-73) दूब उग आई है। धर्म के झंडे के साथ 'झण्डा' तथा शास्त्र के साथ 'शस्त्र' वर्षा के कारण नहीं, शब्द असीम अर्थ के व्यंजक बन गये हैं। धर्म के नाम पर घटे और केवल कथनी में करुणरस घोल, घट रहे दुनिया के सारे रक्तरंजित इतिहास को वे प्रत्यक्ष कर देते धर्मामृत-वर्षा करनेवालों की भीड़ के कारण (पृ. 151-152) सांसारिक विषयों के प्रति जब आकर्षण समाप्त हो जाता जिस मार्ग पर लोग चलना छोड़ देते हैं उस पर दूब उग है, लाभ-हानि, निन्दा-प्रशंसा, जय-पराजय दोनों ही जब अर्थहीन | आती है। अत: 'दूब उग आई है' मुहावरा 'लोगों ने मोक्षमार्ग पर प्रतीत होने लगते हैं तब आत्मा में शान्ति का संगीत पैदा होता है, | चलना छोड दिया है' इस अर्थ की अभिव्यक्ति में कितना प्रभावशाली क्षोभ विलीन हो जाता है, समभाव का उदय होता है। इस प्रकार हो गया है ! संग अर्थात् सांसारिक पदार्थों के प्रति आसाक्ति से अतीत होने पर | होश को खोकर भी चिन्तामुक्त हुआ जा सकता है और ही वास्तविक संगीत उत्पन्न होता है। यह महान् मनौवैज्ञानिक | होश में आकर भी। इन दोनों उपायों में क्या फर्क है? इस रहस्य तथ्य हृदय को आन्दोलित कर देने वाले निम्न शब्दों में अत्यन्त | को इस प्रकार खोला गया है कि एक उपाय के प्रति जुगुप्सा और कलात्मक रीति से अभिव्यक्त हुआ है दूसरे के प्रति श्रद्धा की धाराएँ मन में प्रवाहित होने लगती हैं। यह संगीत उसे मानता हूँ/ जो संगातीत होता है। 'शव' और 'शिव' शब्दों का कमाल है। और प्रीति उसे मानता हूँ/ जो अंगातीत होती है। इस युग के दो मानव/अपने आप को खोना चाहते हैं। एक भोग-राग को/मद्यपान को चुनता है। सुख के बिन्दु से ऊब गया था यह और एक योग-त्याग को/आत्मध्यान को धुनता है। दुःख के सिन्धु में डूब गया था यह। कुछ ही क्षणों में/दोनों होते हैं विकल्पों से मुक्त/ कभी हार से सम्मान हुआ इसका फिर क्या कहना! एक शव के समान निरा पड़ा है। कभी हार से अपमान हुआ इसका। और एक शिव के समान खरा उतरा है। (पृ. 286) कहीं कुछ मिलने का लोभ मिला इसे शरीर नहीं, आत्मा मूल्यवान् है अतः आत्मा ही उपास्य कहीं कुछ मिटने को क्षोभ मिला इसे। है। इस आध्यात्मिक सत्य की अभिव्यंजना सीप और मोती तथा कहीं सगा मिला, कहीं दगा दीप और ज्योति के प्रतीकों द्वारा करने वाली ये पंक्तियाँ उत्तम भटकता रहा अभागा यह। काव्य का निदर्शन हैंपरन्तु आज सब वैषम्य मिट से गये हैं सीप का नहीं, मोती का जब से मिला यह मेरा संगी संगीत। (पृ. 145-146) दीप का नहीं, ज्योति का इस काव्य से अनेक अर्थकिरणें प्रस्फुटित होती हैं। जिस सम्मान करना है अब। (पृ. 307) प्रेम का केन्द्र शरीर होता है, वह प्रेम नहीं, वासना है। गुणाश्रित तत्त्वज्ञानी पुरुष आत्मा के बारे में केवल विचार करता है ध्यानी प्रेम ही प्रेम है। संसार में सुख बिन्दु बराबर है और दुःख सिन्धु आत्मा का आस्वादान करता है। ज्ञान और ध्यान के अन्तर को प्रकाशित बराबर । 'हार' शब्द दोनों जगह भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयुक्त हुआ | करनेवाले ये काव्यात्मक शब्द प्रतीकात्मक सौन्दर्य से मंडित हैंहै। प्रथम बार उसका अर्थ है 'फूलों का हार', द्वितीय बार तैरनेवाला तैरता है सरवर में 'पराजय'। यहाँ यमक अलंकार ने अपनी स्वाभाविकता के कारण भीतरी नहीं, बाहरी दृश्य ही दिखते हैं उसे। चार चाँद लगा दिये हैं। बिन्दु-सिन्धु, सम्मान-अपमान, मिलने- | वहीं पर दूसरा डुबकी लगाता है, -जुलाई 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524264
Book TitleJinabhashita 2002 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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