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सप्त व्यसन त्याग की वैज्ञानिक अवधारणा
प्राचार्य निहालचंद जैन, बीना
श्रावक का सौन्दर्य उसका शील एवं सदाचरण होता है। सम्यक्चारित्र की अन्विति सम्यग्दर्शन पूर्वक सम्यग्ज्ञान से होती है। श्रावक रत्नत्रय का आराधक होता है। शील से रहित श्रावक का ज्ञान, गधे की पीठ पर लदे हुए बोझ के समान होता है।
जीवन का कल्पवृक्ष मनुष्य का शील एवं सदाचरण होता है। क्योंकि उससे वह मनोवांछित फल प्राप्त करता है।
सदाचरण / शील को भंग करने वाले सप्त व्यसन होते हैं, जो महापाप के बीज और बुद्धि-विवेक को नष्ट करने वाले होते हैं। द्यूत मांस-सुरा वेश्या चौर्याखेटपराङ्गना।
महापापनि सप्तानि व्यसनानि त्यजेद् बुधः ॥
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ये सात व्यसन है- द्यूत (जुआ), मांस भक्षण, सुरा-पान, वेश्या और परस्त्री गमन, चोरी करना तथा आखेट (शिकार) करना। द्यूत में झूठ व चौर्य पाप, मांस भक्षण और आखेट में हिंसा पाप, मद्यपान में हिंसा व झूठ पाप तथा वेश्या व परस्त्रीगमन में कुशील पाप गर्भित है, अतः ये दुर्गति के कारण हैं।
व्यसन का सम्मोहन व्यक्ति को नैराश्य, मानसिक तनाव, घुटन, आत्महत्या, नृशंसता और पशुता की ओर प्रेरित करता है। यह ऐसा मोहक विषफल है, जिसे विवेक से रहित मूड़ जीव एक बार चखकर बार-बार भोगने की लालसा करने लगता है। ससन, वासनाओं के गर्भ से उपजी ऐसी इच्छा है, जो मनुष्य के आचरण पर सीधा प्रभाव डालती है और वह पतन के गर्त में गिरता जाता है।
व्यसन विपत्ति और विनाश का खुला निमन्त्रण है । व्यसन मय जीवन, घोर अंधकार की काली रात्रि है जो अणुव्रत के प्रकाशामय दीप से अपने कल्याण का मार्ग देख सकता है।
धर्म और संत-महापुरुषों का आह्वान एक व्यसनमुक्त समाज का निर्माण करना । व्यसनमुक्त समाज ही अपना अस्तित्व कायम रख सकता है। यदि वसुन्धरा पर वात्सल्य/करुणा / प्रेम / अहिंसा की फसलें उगाना हों, तो व्यसनमुक्त समाज का एक प्रशस्त संकल्प हो ।
1. मांस भक्षण एक ऐसा व्यसन है, जिसके कारण शेष छह व्यसन अपने आप जीवन में प्रवेश कर जाते हैं।
इसमें न तो कार्बोहाईड्रेट जैसा ऊर्जादायी तत्त्व होता है। और न ही फाइबर जो भोजन को पचाने में मदद करता है। यह रक्त में कॉलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ा देता है, जिससे हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है। आँतों का कैंसर, संधिवात, रक्तचाप, किडनी का रोग, मांसाहार के कारण असामान्य रूप से बढ़ रहे हैं।
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हारवर्ड मेडिकल स्कूल ऑफ अमेरिका के डॉ. वॉचमेन एवं डॉ. डी. एस. बर्मस्टीन ने अपनी खोजों से यह तथ्य निकाला कि जिनकी हड्डी कमजोर है उन्हें मांस एकदम छोड़ देना चाहिए। लंदन के डॉ. एलैग्जेण्डर हेग ने बताया कि मांस में यूरिक एसिड विष प्रमुख रूप से पाया जाता है, जो टी.बी., जिगर की खराबी, गठिया रक्तअल्पता हिस्टीरिया, सांस रोग को निमन्त्रण देता है। नोबल पुरस्कार विजेता (1985) डॉ. माइकल एस. ब्राउन तथा डॉ. जोसेफ आई. गोल्ड स्टीव ने सिद्ध किया है कि पशुओं का कत्ल से उनके भीतर एक ऐसे पदार्थ को निर्मित करता है, जो रक्तचाप बढ़ाता तथा असाध्य रोगों को उत्पन्न करता है । अतः मांस भक्षण पूर्णत: वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अभक्ष्य / त्याज्य है । 2. मद्यपान - मांसाहार मद्यपान के लिए प्रेरित करता है। मांस एक अप्राकृतिक आहार है, जिसे पचाने के लिए मनुष्य को एल्कोहल सहायक होता है। अतः मांसाहारी शराब का आदी हो जाता है। मद्यपान में वे सभी वस्तुएँ आ जाती हैं जो स्नायुशैथिल्य को बढ़ाकर उत्तेजना व निर्बलता बढ़ाती है इसमें धूमपान, चरस, अफीम, ब्राउन शुगर, भांग, हेरोइन आदि आ जाते हैं। ये वस्तुएँ शरीर व मस्तिष्क को बेकाबू करके कम्पन रोग बढ़ा देती हैं। नशा चाहे शराब का हो या नशीली वस्तुओं का, पुरुषार्थ को नष्ट करने वाला कामोत्तेजक होता है।
शराबी व्यक्ति की कामाग्नि ईंट के भट्टे की तरह होती है, जो अन्दर ही अन्दर जलती रहती है, जिससे वह नपुंसकता को प्राप्त हो जाता है क्योंकि उसकी वीर्य शक्ति शीघ्र स्खलित हो जाती है । मद्य व्यसनी की इन्द्रियां अशक्त हो जाती हैं। करोड़पति का बेटा जब शराबी हो जाता है तो उसका घर कलह का केन्द्र बन जाता है।
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शराब फल, जौ, गुड़, महुआ आदि को सड़ाकर एवं निचोड़कर आसवन विधि से तैयार की जाती है जिसमें अनन्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव / द्वीन्द्रिय जीवों की उत्पत्ति एवं उनका मरण होता है अत: हिंसा का महादोष लगता है । मद्य की एक बूँद में इतने सूक्ष्म जीव होते हैं कि यदि वे बड़े होकर फैल जाएँ तो तीनों लोक भर सकते हैं।
मांसाहार शरीर को शक्ति नहीं वरन् एक किस्म की विकृत उत्तेजना देता है। अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनी केंटुकी, अपने प्रचार तंत्र से युवाओं में ऐसा क्रेज पैदा करने में सफल है, जो मांसाहार को आधुनिक संस्कृति का प्रतीक और शक्तिदायक मानता है। यही कारण है कि 20 वर्षों से मांसाहार का उत्पादन 40 से 45 प्रतिशत बढ़ा है।
3. शिकार मांसाहारी शिकार करने के लिए प्रेरित होता कोई भी सम्प्रदाय / धर्म मांस भक्षण की अनुमति नहीं है। शिकार उसका हत्याजन्य खेल है। आज नये-नये खुल रहे यांत्रिक कत्लखाने 'शिकार' के परिवर्द्धित / नये संस्करण हैं।
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-जुलाई 2002 जिनभाषित
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