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चिपकाकर भिजवायें। यदि 10 वीं कक्षा की मार्कशीट न आ सकी । अल्पसंख्यक घोषित किया है, सिर्फ जैनियों को जानबूझ कर
हो तो कक्षा 9 की मार्कशीट लगाकर भेजें। प्रार्थना-पत्र मिलने पर | अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया है, क्योंकि सरकार जैन धर्म को 'साक्षात्कार के लिये बुलाया जावेगा और छात्रों का चयन किया | हिन्दू धर्म का अंग बनाना चाहती थी। इस उद्देश्य से सन् 1992 जायेगा। प्रार्थना-पत्र 31 मई 2002 से पूर्व मिल जाने चाहिये। में तत्कालीन सरकार ने जैन धर्म को अल्पसंख्यक समुदाय की प्रार्थना-पत्र निम्न पते पर भिजवायें।
सूची से निकाल दिया था उसी दिन से भारत की सभी जैन शिक्षण निरंजन लाल बैनाड़ा | संस्थाएँ, जो पहले अल्पसंख्यक संस्था के रूप में मान्यता प्राप्त अधिष्ठाता - श्रमण ज्ञान भारती
थीं, उनकी मान्यता समाप्त कर दी गई। 1/205, प्रोफेसर कॉलोनी, आगरा-282002 फोन - 0562-351452
| जैन धर्म के अस्तित्व की रक्षा के लिये जैन धर्मावलम्बियों अ.भा. प्रश्नमंच स्पर्धा में डॉ. जैन को स्वर्ण
को अल्पसंख्यक समुदाय की मान्यता मिलना अत्यंत आवश्यक
है। दिनांक 9.1.97 को नई दिल्ली में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग पदक
के अध्यक्ष ने जैनियों को अल्पसंख्यक वर्ग में शामिल करने की छतरपुर । भगवान महावीर की 2600 वीं जयंती के विशिष्ट
घोषणा की थी, तदनुसार तत्कालीन केन्द्रीय सरकार उचित कार्यवाही अवसर पर सम्पन्न अखिल भारतीय प्रश्नमंच स्पर्धा में सर्वाधिक
करने जा रही थी। इसी दौरान किसी हिन्दू संगठन द्वारा याचिका प्रश्नों के सही उत्तर देने पर महाराजा महाविद्यालय, छतरपुर में
| दायर करने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया था। वाणिज्य सहा. प्राध्यापक डॉ. सुमति प्रकाश जैन को स्वर्णपदक
उक्त केस में जैन समाज को अपना पक्ष प्रस्तुत करने के अथवा 2501 रुपये के नकद पुरस्कार का विजेता घोषित किया
लिये एक बड़ी कानूनी लड़ाई लड़नी है। जैन समाज की सभी गया है।
संस्थाएँ मिलकर इस केस को लड़ रही हैं और इस कार्य में काफी राजेश बड़कुल
रुपये खर्च होने का अनुमान है। मंत्री, जैन समाज, छतरपुर (म.प्र.)
समाज से निवेदन है कि इस कार्य में अपने-अपने नगर, जैन धर्मावलम्बियों को अल्पसंख्यक समुदाय
ग्राम एवं क्षेत्र से अपनी यथासंभव सहयोग राशि श्री भारतवर्षीय की मान्यता
दिगम्बर जैन महासभा चेरिटेबल ट्रस्ट के नाम से ड्राफ्ट द्वारा सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 2 अप्रैल से
अध्यक्ष श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा चेरिटेबुल ट्रस्ट'
1506, मोदी का टावर, 98 नेहरू प्लेस, नई दिल्ली -110019, जैन समाज से विनम्र अपील
फोन-आ. 6293824, 6419476, निवास-4992436,6292669 जैन धर्म एक स्वतंत्र एवं सनातन धर्म हैं। जैनियों की पूजा | पद्धति, गुरु, ग्रन्थ, त्याग, तपस्या व संस्कृति सभी मान्यताएँ भिन्न
| कृपा करें। हैं। जैन धर्म और हिन्दू धर्म अलग संस्कृति से पोषित हैं। जैन धर्म
निर्मल कुमार जैन (सेठी) हिन्दू धर्म से भिन्न है, इस संबंध में विभिन्न विद्वानों एवं राजनेताओं
अध्यक्ष
श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन ने भी अपने स्पष्ट मत एवं विचार व्यक्त किये हैं। विभिन्न उच्च
(धर्म संरक्षिणी) महासभा न्यायालयों द्वारा भी जैन समुदाय को धर्म, भाषा व लिपि के आधार पर हिन्दुओं से अलग मानते हुए अल्पसंख्यक मानने के
मृत्यु महोत्सव के साक्षी बने हजारों नेत्र पक्ष में निर्णय दिये हैं तथा कुछ राज्यों में जैन समुदाय को
सागर। जैन सिद्धांत में मरने की कला को एक महोत्सव अल्पसंख्यक भी घोषित किया गया है। लेकिन भारत सरकार द्वारा
के रूप में देखा जाता है। जीने के साथ धैर्यपूर्वक मरण की कला जैन धर्मावलम्बियों को अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता न देना
केवल जैनाचार्यों द्वारा ही सीखी जा सकती हैं। जीवन भर संयम भारतीय संविधान का स्पष्ट उल्लंघन ही नहीं, अपितु जैन समाज
की आराधना करते हुए अपने अंतिम समय में भी वीरतापूर्वक के साथ घोर अन्याय भी है।
संयमाराधना करते हुए इस देह के त्याग करने को सल्लेखना जैसा कि आपको विदित होगा कि यह मामला सुप्रीम | (समाध) कहा जाता है।
(समाधि) कहा जाता है। इसको स्पष्ट करते हुए भगवती आराधना कोर्ट में भी विचाराधीन है। सुप्रीम कोर्ट में लम्बित इस मामले की
में आचार्य शिवार्य महाराज ने कहाअब प्रतिदिन सुनवाई दिनांक 2 अप्रैल, 2002 से प्रारंभ हो रही है।
धीरेण वि मरिदव्वं विद्धीरेण वि अवस्स मरिदव्वं । श्रत 30 वर्षों में यह पहली बार हो रहा है कि इस मामले की
जदि दोण्हि वि मरिदव्वं वरं ही धीरत्रणेण मरिदव्वं ।। सुनवाई हो रही है। 11 सदस्यीय संविधान पीठ इस मामले की
धीर भी मरण को प्राप्त होता है, अधीर भी मरण को प्राप्त सुनवाई करेगी।
होता है जब दोनों ही मरण के प्राप्त हो हैं तो अच्छा है कि धीरता भारत सरकार ने बौद्धों, सिखों को स्वयं अपने निर्णय से | के साथ मरण किया जायें।
-जून 2002 जिनभाषित 31
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