________________
श्रुतपञ्चमी : हमारे कर्त्तव्य
पं. सुनील जैन 'संचय' शास्त्री
कल्पना करें कि शास्त्र या आगम ग्रन्थ यदि न लिखे गए । के बहु-खर्चीले कार्यक्रम प्रचुर मात्रा में हो रहे हैं परन्तु शास्त्र होते तो क्या होता ? हम कहाँ होते ? हम सब अज्ञान के | सुरक्षा की तरफ किसी का भी ध्यान नहीं है। मैं अपने इस लघु अंधकार में भटक रहे होते, हमें लौकिक सुख-सुविधाएँ प्राप्त तो | लेख के माध्यम से श्रुतपंचमी के अवसर पर आचार्य भगवन्तों, होती, परन्तु ज्ञानसुधारस के स्वाद से वंचित ही रहना पड़ता। ज्ञान | मुनिराजों, आर्यिकाओं, प्रतिष्ठाचार्यों, विद्वानों, श्रेष्ठियों, दानवीरों से के अभाव में सभ्य जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। अनुरोध करना चाहता हूँ कि एक पंचकल्याणक में होने वाली ज्ञान के अभाव का परिणाम होता कि लोगों को धर्म-ज्ञान प्राप्त न | व्यय-राशि को यदि शास्त्र सुरक्षा में लगा दें, तो सैकड़ों पंचकल्याणक होता। ऐसे में लोग अपने जीवन को भोगों में गँवाकर संसार के | कराने का पुण्य फल उन्हें प्राप्त होगा। हम सभी इस आगम वाक्य अनंत चक्र में भटकते रहते। इस अज्ञान अंधकार को मिटाने का से परिचित हैं कि "शास्त्र के एक पेज (पृष्ठ) का जीर्णोद्धार अभूतपूर्व व ऐतिहासिक दिन है श्रुतपंचमी। माँ भारती के उत्थान करवा देने से एक मंदिर के निर्माण बराबर पुण्य की प्राप्ति होती तथा ज्ञानाराधना का यह महापर्व श्रुतपंचमी जैन परम्परा में महावीर | है"। हमारा समाज प्रांतीय, राष्ट्रीय स्तर पर पाण्डुलिपि संग्रहालय जंयती पर्व की तरह बड़ा ही महत्त्वपूर्ण तथा सांस्कृतिक पावन केन्द्रों की स्थापना करे और उस संग्रहालय में पाण्डुलिपियों की पर्व है। यह पर्व प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को बड़े आदर एवं लेमीनेशन अथवा माइक्रोफिल्म बनाकर पूर्ण सुरक्षा की जावे। सम्मान के साथ मनाया जाता है। इस पर्व के लिए धरसेन स्वामी, | केन्द्रों की स्थापना का मंगलाचरण श्रुतपंचमी के पावन पर्व से कर जिनके मन में तीर्थंकर कथित तत्त्वज्ञान को लिपिबद्ध कराने का | सकते हैं। प्रशस्त विचार उत्पन्न हुआ और अद्भुत प्रज्ञा सम्पन्न पुष्पदन्त और | वर्तमान युग मुद्रणकला का है। आजकल प्रकाशित साहित्य भूतबलि सरीखे उनके युगल शिष्य, जिन्होंने ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी | में शुद्ध, अशुद्ध का विवेक नहीं रखा जाता। आवश्यक सावधानी के दिन शास्त्र रचना या श्रुतावतार का प्रथम महान कार्य पूर्ण | नहीं रखने से लिखने वाले के भाव सही रूप में पाठक तक नहीं किया था, उनको युगों-युगों तक याद किया जाता रहेगा। । पहुँच पाते। जो लिखा जाता है, वह छप जाता है और जो छप
श्रुतपंचमी के दिन हमें सतत शास्त्राभ्यास या स्वाध्याय की | जाता है वह छुपा तो नहीं रहता, मगर विकृत होकर सामने आ प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिए। वस्तुतः यह श्रुतपंचमी पर्व शास्त्र- जाए तो लिखने वाले का उद्देश्य सफल नहीं होता और पढ़ने वाला भण्डारों के प्रारंभ किये जाने का पर्व है। उन महान आचार्य- ठीक से समझ नहीं पाता, अन्यथा समझ लेता है। भगवन्तों ने कठिन परिश्रम, लगन, कर्मठता, एकाग्रता से दिन- | आज हमारे समाज में स्वाध्याय की गौरवशाली परम्परा रात खून-पसीना एक करके शास्त्रों को ताड़पत्र एवं भोजपत्र | का दिनों-दिन ह्रास हो रहा है, जिनालय सूने हो रहे हैं। यही आदि पर लिखकर उनकी सुरक्षा कर हम तक पहुँचाया, परन्तु कारण है कि आज की युवा पीढ़ी धर्म ग्रंथों को पढ़ना पसन्द नहीं हम कितने अभागे और आलसी हैं कि उस दिव्य सम्पदा से | कर रही है, धर्म-कर्म में वे अरुचि दिखा रहे हैं। स्वाध्याय की लाभान्वित होने का भाव ही हमारे मन में नहीं आता। आज । | गौरवशाली परम्परा को वर्तमान को देखते हुए पुर्नजीवित करना मुद्रण-कला की भरमार होने पर भी हमारी प्राचीन दुर्लभ | ही होगा। पाण्डुलिपियाँ नष्ट होने की कगार पर है। कई प्राचीन पाण्डुलिपियाँ | हमारे कर्तव्य दीमक या चूहों का भोजन बनकर नष्ट हो गयी हैं। पाण्डुलिपियाँ इस दिन जगह-जगह जिनवाणीरथ निकाले जायें। शास्त्रों हमारी जैन परम्परा, संस्कृति, इतिहास, आचार-विचार की अमूल्य | के वेष्टन बदले जायें तथा अलमारियों की साफ सफाई की जाए। धरोहर हैं। यदि हमने विरासत में मिली हुई पाण्डुलिपियों की | प्रत्येक नगर, ग्राम में पुस्तकालय की स्थापना की जाए। हर मंदिर सुरक्षा हेतु प्रबंध नहीं किया तो इतिहास हमें क्षमा नहीं कर पाएगा।। में साहित्य विक्रय केन्द्र खोले जायें तथा दानी महानुभाव द्वारा आज हम गन्धहस्तिमहाभाष्य, विद्यानंद महोदय, वादन्याय आदि | लागत या लागत से कम मूल्य पर साहित्य पाठकों को सुलभ शताधिक ग्रंथों को लुप्त घोषित कर चुके हैं। आखिर इसमें प्रमाद कराये जायें। प्राचीन या अनुपलब्ध पुस्तकों का पुनः प्रकाशन तो हमारा ही रहा न? पाण्डुलिपियों के संरक्षण-संवर्द्धन में जिनवाणी किया जाए। मंदिरों में जैन पत्र/पत्रिकाएँ अधिक से अधिक को समर्पित आदरणीय भैया संदीप जी "सरल" ने अनेकान्त ज्ञान | संख्या में मँगायें ताकि सामाजिक रुचि बनी रहे। शास्त्र सुरक्षा मंदिर, बीना की स्थापना कर एक अभिनंदनीय व स्तुत्य कार्य | अभियान चलाया जावे। जीर्णशीर्ण पड़े ग्रंथों का जीर्णोद्धार कराया किया है। हमारा दायित्व बनता है कि श्रुतपंचमी के इस पावन पर्व | जाये। ग्रंथों की सूची बनाकर रखी जाये ताकि सुलभता से ग्रन्थ पर हम भी उनके साथ हों।
प्राप्त हो सकें। श्रुतपंचमी के दिन प्रातः पूजनादि के पश्चात् मंदिरों आज हमारे समाज में गजरथों, पंचकल्याणकों, विधानों | के ग्रंथ भण्डारों, पुस्तकालयों की पुस्तकों को विधिवत् शास्त्र
-जून 2002 जिनभाषित 21
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org