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किशनगढ़ रेनवाल ने सन् 1972 में प्रकाशित करवाया है। वाला व्यक्ति भी इस पुस्तक को पढ़कर लाभ ले सकता है। यह हिन्दी काव्य सम्पदा
पुस्तक श्री जैन समाज, हाँसी द्वारा 1949 में पहली बार प्रकाशित ऋषभावतार महापुराण में वर्णित आदितीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के
मानव धर्म कथानक के आधार पर लिखा गया यह हिन्दी काव्य है। इस
यह आचार्य समन्तभद्र स्वामी के रत्नकरण्डक श्रावकाचार काव्य में सत्रह अध्याय हैं। काव्य की कुल पदसंख्या आठ सौ के संस्कृत श्लोकों पर लिखी गई छोटी-छोटी टिप्पणियों का ग्यारह है। काव्य में शृंगार, शांत, वीर, वात्सल्य आदि रसों का
संकलन हैं। विषय को रोचक बनाने वाली छोटी-छोटी बोधयथास्थान सम्यक् प्रयोग हुआ है। इस काव्य में कवि ने सुकुमार
| कथाएँ भी इसमें शामिल हैं। एक सामान्य गृहस्थ के लिये सच्ची शैली का प्रयोग किया है। समाप्ति भक्तिभाव की अभिव्यंजना के | जीवन दृष्टि, सच्चा ज्ञान और सच्चे आचरण की शिक्षा देने वाला साथ हुई है।
यह एक समीचीन धर्म शास्त्र है। इसका प्रकाशन पहली बार श्री कवि ने इस काव्य के माध्यम से जैन धर्म और दर्शन को दिगम्बर जैन पंचायत, ललितपुर (उत्तरप्रदेश) के द्वारा 1988 में भली-भाँति पाठकों तक पहुँचाया है। इस काव्य में आचार्य सम्मत । हुआ। महाकाव्य के सभी अधिकांश लक्षण दृष्टिगोचर होते हैं। अतः स्वामी कुंदकुंद और सनातन जैन धर्म । हमें इस काव्य को महाकाव्य की संज्ञा देने में संकोच नहीं करना इस छोटी सी पुस्तक के माध्यम से कवि ने महान दिगम्बर चाहिए। इस काव्य का प्रकाशन श्री दिगम्बर जैन समाज, मदनगंज जैन आचार्य कुंद-कुंद स्वामी का जीवन-परिचय प्रस्तुत किया ने 1967 में कराया।
है। साथ ही श्वेताम्बर, दिगम्बर मत की उत्पत्ति, उसकी विशेषताएँ, भाग्योदय
वस्त्राधारी को मुक्ति संभव नहीं, केवलज्ञान का वैशिष्ट्य आदि इस काव्य में धन्यकुमार का जीवन-वृत्तान्त बड़े रोचक |
विषयों का अच्छा विवेचन किया है। इसका पहली बार प्रकाशन ढंग से प्रस्तुत किया गया है। तेरह शीर्षकों वाले इस काव्य में | खजानसिंह विमलप्रसाद जैन, मुजफ्फरनगर ने 1942 में किया है। प्रयुक्त समस्त पद्यों की संख्या आठ सौ अट्ठावन हैं। इस काव्य से | पवित्र मानव जीवन कवि ने मानव को कर्मठता, सत्यवादिता, सहिष्णुता, त्यागप्रियता | प्रस्तुत पुस्तक की रचना सरल हिन्दी भाषा के पद्यों में की और परोपकारपरायणता की शिक्षा देने के प्रयास में अदभत सफलता | गई । पूरी पुस्तक में एक सौ तिरानवे पद्य हैं। इसमें कवि ने जीवन पायी है। ऋषभावतार के समान ही यह काव्य भी महाकाव्य की को सफल बनाने वाले कर्तव्यों का निरूपण किया है। समाज संज्ञा पाने के योग्य है। यह काव्यग्रंथ श्री जैन समाज, हाँसी द्वारा | सुधार, परोपकार, कृषि और पशुपालन, भोजन का नियम, स्त्री 1957 में प्रकाशित हुआ है।
का दायित्व, बालकों के प्रति अभिभावकों का दायित्व आदि गुण सुंदर वृत्तान्त
विषयों पर अच्छी सामग्री इसमें हैं। इस पुस्तक को दिगम्बर जैन यह रूपक काव्य है। इसमें राजा श्रेणिक के समय में | महिला समाज, पंजाब ने पहली बार 1965 में प्रकाशित कराया। युवावस्था में दीक्षित एक श्रेष्ठिपुत्र का मार्मिक वर्णन किया गया | सरल जैन -विवाह विधि
इस पुस्तक के माध्यम से कवि ने जैनविवाहपद्धति का कर्तव्य पथ प्रदर्शन
दिग्दर्शन कराने का प्रयास किया है। मंत्रोच्चारण संस्कृत भाषा में इस ग्रंथ में बयासी शीर्षकों के अन्तर्गत मानव के दैनिक हैं। उनका अनुवाद हिन्दी में है। सारी विधि विभिन्न छन्दों में कर्तव्यों की शिक्षा दी गई है। शिक्षा को रोचक बनाने के लिए पद्यात्मक रूप से लिखी गई है। इसका प्रकाशन दिगम्बर जैन अनेक कथाएँ शामिल की गई हैं। यदि इस पुस्तक में बताये गए समाज, हिसार ने पहली बार 1947 में कराया। सामान्य नियमों को व्यक्ति आत्मसात् कर ले, तो वह सच्चा मानव तत्त्वार्थ दीपिका बन सकता है। इस पुस्तक का प्रकाशन सबसे पहले दिगम्बर जैन यह जैन धर्म के पवित्र ग्रंथ तत्त्वार्थसूत्र/मोक्षशास्त्र को पंचायत, किशनगढ़ द्वारा 1959 में हुआ।
सरल भाषा में प्ररूपित करने वाली पुस्तिका है। गहन, गम्भीर सचित्त विवेचन
विषय को सरल बनाने के लिए रोचक उद्धरण शामिल किए गए प्रस्तुत पुस्तक में सचित्त यानी जीवाणुसहित और अचित्त | हैं। वैसे भी मोक्षमार्ग और मोक्ष का निरूपण करने वाला आचार्य यानी जीवाणुरहित पदार्थों का अन्तर समझाया गया है। दैनिक उमास्वामी का यह ग्रन्थ अपने आप में अनूठा है। इसका प्रकाशन उपयोग में आने वाली खाद्य सामग्री-वनस्पति, जल आदि को
दिगम्बर जैन समाज, हिसार ने पहली बार 1958 में कराया। अचित्त (बैक्टीरिया रहित) बनाने का उद्देश्य यथासम्भव हिंसा से | विवेकोदय बचना और इन्द्रियों पर अनुशासन बनाये रखना है।
यह आचार्य कुंदकुंद महाराज के द्वारा रचित महान ग्रंथ की भाषा सरल और सुबोध है। सामान्य ज्ञान रखने | आध्यात्मिक ग्रंथ 'समयसार' की गाथाओं का "गीतिकाछंद" में
- जून 2002 जिनभाषित 11
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