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________________ पशु रक्षा संकलन : श्रीमती सुशीला पाटनी अत्याचार का अन्त करो, बचाओ पर्यावरण "नहीं | आप अपनी आजादी के इतिहास को जरा याद करें, भारत तो अकाल मरण" "बचाओ पशधन नहीं तो मिट जायेगा | की आजादी का इतिहास ही गौ रक्षा से प्रारम्भ हुआ था। वतन" कारतूस पर गाय की चर्बी लगाकर अंग्रेजी सरकार ने ठहर गये श्री विद्यासागरजी नर्मदा के तीर, भारतीयों का धर्म भ्रष्ट करना चाहा। स्वयं नर्मदा बोल उठी ये इस युग के महावीर जो जलचर, थलचर जीव नभचर हैं, दूध की नदियाँ लोप हो गईं धरा खून से लाल, उनकी रक्षा करना ही हमारा कल्चर है। कृष्ण कन्हैया की गैया भी, हो गई आज हलाल. सरकार को समझना होगा, अपनी भारतीय संस्कृति क्या कल बूचड़ खानों में, इंसान को काटा जायेगा, और इतिहास का अध्ययन करना होगा। पशु मांस खाने वाला क्या, इंसानों को खायेगा? बहुत सहा हमने अब तक कत्लखानों में जो पशु काटे जा रहे, उनकी बेहद अब नहीं सहन करेंगे। संख्या है। इसी रफ्तार से पशु कटते रहे तो, एक दिन खून की धारा भारत में, देश में पशुधन समाप्त हो जायेगा। हम गाय, बैल, भैंस, अब नहीं बहने देंगे। आदि जानवरों के चित्र मात्र कलेण्डर में देखेंगे और उनके बन्द करो माँस निर्यात, नहीं तो, नाम शब्द कोशों में पढ़ेंगे। स्थिति बहुत भयानक है। हिन्दुस्तान में नहीं रहने देंगे। जिस देश में कृष्णजी की पूजा होती है, उसी देश में वस्तुतः यह संकल्प है। हमको अब सचेत हो जाना कन्हैया की गैय्या का कत्ल और उसी का माँस निर्यात | है हमारा देश वीरों का देश है, रणवीरों का बहादुरों का हो रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि हम जनता देश है, शहीदों का देश है। हम मौत से डरने वाले नहीं को इस पशु हत्या का बोध करायें। यदि हमने इस हत्या | हैं, हम तो पाप से डरते हैं। क्षत्रिय वही कहलाता है, काण्ड को अनदेखा कर दिया तो आने वाले समय में जो निर्बलों की रक्षा करता है। हमको महासंकट से गुजरना होगा। देश में कोई संकट पशुओं की रक्षा के खातिर, कुर्बान जवानी कर देंगे, न आये, इसके पहले ही हम अपनी सुरक्षा कर लें। इस धरती से बूचड़खानों की, खत्म कहानी कर देंगे। वस्तुतः यदि इंसान इसी प्रकार मांस का भक्षण करता रहा अरे मेरे भाई-बहिनों कुछ नई बात कर लो, तो एक दिन सारे पशु समाप्त हो जायेंगे, फिर बारी इस हिन्दुस्तान से उन भ्रष्ट नेताओं का निर्यात कर दो। आयेगी इंसान की। आदमी आदमी को न खाये इसके भ्रष्ट नेताओं का निर्यात करने में कोई हिंसा भी लिए हमें शाकाहार क्रांति लाना है, जिसमें हम भी सुखी | नहीं है, वे तो पशुओं का कत्ल करके उनका मांस निर्यात रहें और पशु पक्षी भी सुखी व सुरक्षित रहें। कर रहे हैं, हमको उनका जिन्दा निर्यात करना है। जिन्हें बचाते महावीर प्रभु, गौतम का देश, एक कलंक लग रहा है, आदमी की जात को, उनके मांस का निर्यात कर दिया भारत ने विदेश। बंद करो बूचड़खाने, मांस के निर्यात को। सोचो समझो भारत माँ के मुँह पर आज मुस्कान नहीं, क्या हो गया है आज, ये गाँधी के देश को, पशु मांसनिर्यात करे यह अपना हिन्दुस्तान नहीं। रुपये के बदले माँस बेचता विदेश को। भारत कृषिप्रधान, अहिंसाप्रधान देश है यहाँ गाय माँ की मृत्यु के पश्चात् बच्चे का पालन गौ माता की पूजा होती है। यहाँ से हीरे मोती रत्नों का निर्यात | के दूध से होता है। दुनिया में दो ही दूध हैं पहला माँ होता था। यहाँ पशु पालन होता था। आदिब्रह्मा ऋषभदेव | का, दूसरा गोमाता का। आज गाय भी खतरे में और ने युग के आदि में भारतीय जन मानस को यह नारा दिया | दूध भी। अब कायरता को छोड़ दो और पशुहत्या को था कि "कृषि करो या ऋषि बनो"। भारत ने यह नारा | रोकने के लिए आगे आओ। भुला दिया, पशु पालन करने वाला देश आज पशुओं का आर. के. मार्बल्स लि. कत्ल कर रहा है। यह भारत के लिए कलंक है। मदनगंज-किशनगढ़ भारतीयो जागो! माँस निर्यात करना भारत की संस्कृति नहीं है। भारत की गरिमा को बताते हुए एक कवि ने कहा है। देखो शंकर तेरा नन्दी, कत्लखानों में कट रहा मुमकिन नहीं है कोई घडी ऐसी बता दे ।। इन राजनीति के अन्धों द्वारा, देश मिटाया जा रहा। जो गुजरे हुए वक़्त के घण्टों को बजा दे ।। मंगल पाण्डेय के इतिहास को, यूँ दुहराया जाता है, और गौ माता का खून, भारत में बहाया जाता है। 24 मार्च 2002 जिनभाषित हमें शाकाली भी सुख गौतम कातने विद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524260
Book TitleJinabhashita 2002 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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