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________________ भी थकावट का अनुभव नहीं करता था। वर्तमान में भी | आने लगा है। मेरा ऐसा ही अनथक अभ्यास चल रहा है। | मैने तो व्यक्तिगत रूप से यही अनुभव किया है उच्चकोटि के पुरस्कारों का अपना भौतिक महत्त्व | और मुझे पूर्ण विश्वास है कि मेरी यही कार्य-क्षमता तो है ही, किन्तु उसका मनोवैज्ञानिक महत्त्व उससे भी | अगले कई वर्षों तक बनी रहेगी। मेरी सद्भावना है कि अधिक है। वह स्वस्थ दीर्घायष्यकारी होता है, क्योंकि । प्राकृत एवं जैन-विद्या की सेवा के क्षेत्र में जो भी उससे बद्धजीवियों को विनम्रता के साथ-साथ नई उर्जा-शक्ति | एकान्त-मन से कार्यरत हैं, वे यदि निर्विवाद रहकर मिलती है, नया उत्साह एवं विविध प्रेरणाएँ मिलती हैं. | मौलिक अवदान देते रहेंगे, तो वे भी राष्ट्रपति के सर्वोच्च विशेष उत्तरदायित्वों के निर्वाह की भावना भी प्रबल होती पुरस्कार-सम्मान को प्राप्त करने के अधिकारी बन सकेंगे, है और यह भी अनुभव होने लगता है कि वृद्धावस्था की | इसमें सन्देह नहीं। गणना उल्टी अर्थात् युवावस्था की ओर चलने लगी है महाजन टोली नं. 2, और वह बिना थकावट के प्रतिदिन 14-15 घण्टे निर्द्वन्द्व आरा (बिहार)- 802301 भाव से सार्थक एवं रचनात्मक कार्य करने की स्थिति में । अहिंसा' शीर्षक श्रेष्ठ पुस्तक पर 51000 रुपयों के पुरस्कार की घोषणा श्री दिगम्बर जैन साहित्य संस्कृति संरक्षण समिति ने भगवान महावीर के 2600वें जन्म कल्याणक महोत्सव वर्ष के उपलक्ष्य में भगवान महावीर के मूल सिद्धान्त 'अहिंसा शीर्षक' श्रेष्ठ पुस्तक पर 51000 (इक्यावन हजार रुपये) पुरस्कार स्वरूप प्रदान करने का निर्णय लिया है। पुरस्कार प्राप्तकर्ता को प्रशस्ति-पत्र एवं स्मृति-चिन्ह भी प्रदान किये जाएँगे। पुरस्कार के उद्देश्य एवं नियमावली इस प्रकार हैं :. इस पुस्तक को लिखवाने का मुख्य उद्देश्य है कि एक ही पुस्तक द्वारा भगवान महावीर के मूल सिद्धान्तों का मर्म अभिव्यक्त हो। पुस्तक की भाषा सरल एवं सरस होनी चाहिए तथा शैली सुबोध हो ताकि सामान्य जिज्ञासु (जैन एवं जैनेतर) भी उसका आशय समझ सके। इस पुस्तक के किसी विशेष जैन सम्प्रदाय का प्रस्तुतीकरण नहीं होना चाहिए। .प्रस्तुत की जाने वाली पुस्तक में भगवान महावीर के सार्वभौमिक सिद्धान्तों का आधुनिक ढंग से प्रतिपादन तथा वर्तमान युग की समस्याओं के समाधान में उसकी उपयोगिता आदि का प्रतिपादन अवश्य किया जाना चाहिए। सामान्यतया पुस्तक की अनुमानित पृष्ठ संख्या 200 से अधिक नहीं होनी चाहिए। पुस्तक लेखक की मौलिक तथा अप्रकाशित कृति होनी चाहिए। लेखक को पुस्तक की मौलिकता का प्रमाण-पत्र भी भेजना होगा। पुस्तक का चयन समिति द्वारा स्थापित विद्वानों की एक विशेष समिति द्वारा किया जायेगा। पुरस्कार हेतु कृति की गुणवत्ता के बारे में समिति का निर्णय अंतिम होगा तथा लेखकों को मान्य होगा। यदि चयन समिति द्वारा कोई भी कृति पुरस्कार योग्य नहीं पायी गयी, तो ऐसी दशा में पुरस्कार निरस्त भी किया जा सकता है। समिति को पुस्तक के प्रकाशन, वितरण तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद-प्रकाशन का भी सम्पूर्ण अधिकार रहेगा तथा लेखक को कोई रॉयल्टी नहीं दी जाएगी। समिति को पुस्तक में संशोधन एवं परिवर्द्धन का भी पूर्ण अधिकार रहेगा। पुरस्कार वितरण आचार्य विद्यासागर जी महाराज के पावन सान्निध्य में वर्ष 2003 में एक भव्य समारोह में होगा, जिस में लेखक को आमंत्रित करके ससम्मान पुरस्कृत किया जायेगा। यदि कोई भी अन्य पुस्तक श्रेष्ठ समझी गई तो समिति उसके प्रकाशन की व्यवस्था तो करेगी ही उस पर ग्यारह हजार के दो पुरस्कार भी प्रदान कर सकती है। चयन समिति द्वारा विचारार्थ पुस्तक को पाण्डुलिपि की छह प्रतियाँ पृष्ठ (ए-4 आकार) के एक तरफ टाइप करवाकर जमा करानी होगी। सम्पूर्ण पुस्तक समिति को 30.10.2002 तक प्राप्त हो जानी चाहिए क्योंकि समिति भगवान महावीर जयन्ती 2003 के अवसर पर पुरस्कार विजेता के नाम की घोषणा करना चाहेगी। पुरस्कार हेतु बहुत अधिक संख्या में पुस्तकें प्राप्त होने जैसे या अन्य विशेष कारणों से पुरस्कार करने की तिथि में परिवर्तन भी किया जा सकता है। प्रवीण कुमार जैन श्री दिगम्बर जैन साहित्य संस्कृति संरक्षण समिति डी-302, विवेक बिहार, दिल्ली - 110095 -मार्च 2002 जिनभाषित 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524260
Book TitleJinabhashita 2002 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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