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स्वयमेव हो जायेगी और तब दिगम्बर जैन धर्म के मौलिक
समाधान - उपचार में आर्यिका को (उनकी सिद्धांतों का मूलोच्छेद हो जायेगा।
अन्तिम योग्यता से उनके युक्त होने से) महाव्रती कहा वस्त्रपरिग्रह-ग्रहण आर्यिकाओं की पर्यायगत बाध्यता
जा सकता है। वास्तव में देशव्रती हैं। है। इसीलिए वे वास्तव में महाव्रती नहीं हो सकतीं।
सवस्त्र दशा में संयम का निषेध प्रकारांतर से सचेलत्व के कारण उन्हें सकलसंयम नहीं हो सकता।
सवस्त्र मुक्ति का निषेध एवं स्त्री मुक्ति का निषेध सकलसंयम के अभाव में दिगम्बर मान्यता में स्त्री मुक्ति
दिगम्बर मान्यता के मूलभूत सिद्धांत हैं, जिनकी किसी भी स्वीकृत नहीं है। किंतु वस्त्र को उपकरण मानने वाले
मूल्य पर स्थापना एवं सुरक्षा प्रत्येक दिगम्बर जैन श्वेताम्बर सचेल दशा में भी सकल संयम का सद्भाव
धर्मावलम्बी का कर्तव्य है। भगवान आदिनाथ से लेकर मानकर सवस्त्र मुक्ति एवं स्त्री मुक्ति का समर्थन करते
भगवान महावीर तक तीर्थंकर भगवंतों द्वारा प्रतिष्ठापित
एवं इस युग के आचार्य कुंदकुंद, समंतभद्र, विद्यानंद, संपादकीय टिप्पणी के आगे का वाक्य "उत्तम | अकलंक, अमृतचंद प्रभृति महान प्रभावक आचार्यों द्वारा पात्र के रूप में गणनीय आर्यिका के आदर सत्कार के
प्रचारित दिगम्बर जैन धर्म के मूल सिद्धांतों पर किसी पक्ष बारे में इस कथन के बाद कोई उहापोह होना ही नहीं
विशेष के व्यामोह में हम स्वयं आघात करने लगेंगे, तो चाहिए" पुनः दिगम्बर जैन धर्म की मान्यता के सर्वथा
यह आत्मघाती प्रवृत्ति अपने आप को नष्ट कर देने का विपरीत है। पात्रों के भेद विभाजन में सभी दिगम्बर
उद्यम सिद्ध होगी। परंपरा के ग्रंथों में मात्र दिगम्बर जैन मुनि को ही उत्तम
आर्यिकाओं की नवधा भक्ति का आग्रह रखने पात्र की श्रेणी में परिगणित किया गया है। आर्यिका वाले पक्ष से उनके प्रति यथायोग्य भक्ति की व्यवस्था वस्तुतः देशव्रती है, पंचम गुणस्थान वर्ती है अतः वे मध्यम
का समर्थक पक्ष आर्यिकाओं की भक्ति एवं उनके पात्र की श्रेणी में आती हैं। आर्यिका को उत्तम पात्र सम्मान-सत्कार में किसी भी प्रकार पीछे नहीं है। बल्कि बनाकर क्या हम प्रकारांतर से स्त्रीमुक्ति की सिद्धि नहीं
सत्य तो यह है कि द्वितीय पक्ष इस दिशा में प्रथम पक्ष कर रहे? सवस्त्रमुक्ति-निषेध एवं स्त्रीमुक्ति-निषेध ये दो
से अधिक जागरूक है। तथापि द्वितीय पक्ष पर आर्यिकाओं ही दिगम्बर जैन धर्म के प्राणरूप सिद्धांत हैं। क्या वस्त्र को अपूज्य ठहराने का मिथ्या आरोप एक अत्यंत को उपकरण कहकर एवं आर्यिका को उत्तम पात्र बताकर
अवांछनीय छल पूर्ण प्रवृत्ति है और जनसाधारण के समक्ष हम अपने पावों पर कुल्हाड़ी मारने का अपराध नहीं कर
मिथ्या चित्रण प्रस्तुत कर द्वितीय पक्ष की छवि धूमिल रहे हैं?
करने का दुष्प्रयास है जिससे हमें बचना चाहिए। आर्यिका माताओं के आदर सत्कार के संबंध में | सुयोग्य संपादकजी ने जो संवादपरक चर्चा का मार्ग किसको ऊहापोह है? आदर सत्कार तो सभी पात्रों का खोला है उसका हम सब को स्वागत करना चाहिए और यथायोग्य विधि से आगम सम्मत है। वस्ततः विवेकपर्ण इस दिशा में वीतराग चर्चा के माध्यम से विचारों का भक्ति ही समीचीन भक्ति है। पात्रों की यथायोग्य भक्ति आदान-प्रदान करते रहना चाहिए। न करना जिस प्रकार वार्छनीय नहीं है, उसी प्रकार भक्ति
लुहाड़िया सदन जयपुर रोड़ का अतिरेक भी वार्छनीय नहीं कहा जा सकता है।
मदनगंज-किशनगढ़-01 (राज.) मुनि महाराज का गुणस्थान छठा-सातवाँ है जबकि आर्यिका माताजी का गुणस्थान 5वाँ है। जब एक ही गुणस्थान वाले श्रावक, ब्रह्मचारी, क्षुल्लक, ऐलक, आर्यिका आदि में पूजा सत्कार की विधियों में अंतर रखा जाता
श्री महावीरजी में विराजमान है, तो क्या पाँचवें गुणस्थान वाली आर्यिका और 6-7वें गुणस्थान वाले मुनि महाराज की पूजा सत्कार की विधि में अंतर नहीं करेंगे? मुनि महाराज की गणना पंच
परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी परमेष्ठियो में है। जबकि आर्यिकाएँ तो देशव्रती होती हैं। महाराज के सुशिष्य पूज्य मुनि श्री क्षमासागरजी अतः वे परमेष्ठी नहीं मानी जातीं। आर्यिकाओं को उपचार
दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी में से महाव्रती कहा गया है। उपचार से कहने का अर्थ है कि वे वास्तव में महाव्रती नहीं हैं। बृहज्जिनोपदेश (लेखक विराजमान हैं। पं. जवाहरलालजी शास्त्री) में शंका समाधान सं. 558
सुरेश जैन निम्न प्रकार है -
आई.ए.एस. 558 शंका-आर्यिका तो महाव्रती है न?
-मार्च 2002 जिनभाषित
___ मुनि श्री क्षमासागरजी
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