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________________ भाग्योदय तीर्थ का अहिंसा के क्षेत्र में महान प्रयास व्यक्ति के जीवन में स्वास्थ्टा का विषा सबसे महत्त्वपूर्ण होता है, क्योंकि आत्मा का सबसे नजदीकी मित्रं यदि कोई है तो वह है शरीर। शरीर में होने वाली बीमारियों से व्यक्ति का चित्त व्याकुल होता है और उस समय साधना के क्षेत्र में व्यक्ति विचलित हो उठता है। भगवान महावीर के मूल सिद्वान्त 'अहिंसा परमोधर्मः' को जन-जन तक पहुँचाने के लिए भाग्योदय तीर्थ द्वारा स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रम में जो अहिंसा की भागीदारी रवी गई है, वह अपने आप में महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि स्थूल रूप सेतो व्यक्ति अपने जीवन में हिंसा से बचता है, लेकिन जब पापकर्म के उदा से शरीर में विकृतियाँ पैदा होती हैं,शरीरको बीमारियाँघेर लेती हैं,तब भेद-विज्ञान की नीव मजबूत न होने से एवं मेडीसिन विज्ञान कीचकाचौंधमय भ्रामक जानकारियों में आकर व्यक्ति ऐसी दवाईयाँले लेता है,जो हिंसात्मकतरीको से बनी होती हैं। प्राकृतिक चिकित्सा पूर्णतः अहिंसात्मक है। इसमें बिना किसी दवाई के,मात्र मिट्टी-पानी, धूप, हवा योग, ध्यान एवं शुद्ध शाकाहारी आहार के माध्यम से उपचार किया जाता है। पिछले 3 वर्षों से भाग्योदय तीर्थ सागर में 50 बिस्तरों का प्राकृतिक चिकित्सालय सुचारू रूप से चल रहा है, जिसमें 12 ब्रह्मचारिणी डॉक्टर पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से व्रत लेकर निःशुल्क अवैतनिक सेवाएँ दे रही हैं,जहाँ छने हुए जल से उपचार एवं आहर दिया जाता है। इतना ही नहीं इस प्राकृतिक चिकित्सा को जन-जन तक पहुँचाने के लिए साधु संतो के सान्निध्य में शिविर आयोजित कर 15-15 दिन तक रोगी को वहाँ रस्वकर स्वस्थ किया जाता है। पिछले 2 वर्षों में 4 कैम्पलगाये गए। इसी तारतम्य में कुछ हर्बलसामग्री जो दैनिक जीवन में उपयोगी है, जैसे चाय, शुद्ध मंजन, दर्द नाशक तेल, डायबिटीज चूर्ण, शैम्पू, साबुन आदि भी तैयार कर व्यक्ति को हिंसामुक्त करने का प्रयास जारी है। वे सभी रोगी जो दवाइयाँ खाते-रवाते परेशान और निराश हो चुके हैं और जो व्रतधारी दवाइयों का सेवन नहीं करना चाहते, वे मनोहारी 1008 श्री चन्द्रप्रभु भगवान की छत्रछाया में रहकर प्राकृतिक चिकित्सा से लाभ प्राप्त कर सकते हैं। यहाँ रहने-रवाने एवं उपचार की उत्तम व्यवस्था है। भाग्योदया तीर्थ में 108 बिस्तर की ऐलोपैथी, विशाल आयुर्वेद रसायन शाला, विकलांग केन्द्र एवं विशाल पैथालॉजी लैब की सुविधा भी उपलब्ध है। डॉ. रेरवा जैन भाग्योदय तीर्थ प्राकृतिक चिकित्सालय, सागर (म.प्र.)470001 स्वामी, प्रकाशक एवं मुद्रक : रतनलाल बैनाड़ा द्वारा एकलव्य ऑफसेट सहकारी मुद्रणालय संस्था मर्यादित, जोन-1, महाराणा प्रताप नगर, भोपाल (म.प्र.) से मुद्रित एवं सर्वोदय जैन विद्यापीठ 1/205, प्रोफेसर्स कालोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) से प्रकाशित। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524259
Book TitleJinabhashita 2002 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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