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रक्षा करता है, बाद में किसी कसाई को बेच देता है, जिससे कत्लखानों | अधिकार है।' में उसे असमय में काट दिया जाता है। क्या यह मनुष्य की स्वार्थता | मनोज - तो हमें वृद्ध जानवर, आदि की भी सेवा करना चाहिए? नहीं?
फकीर - हाँ बेटा! वृद्ध जानवरों में भी तो हमारी जैसा आत्मा मनोज - बाबा! ठीक तो है। वृद्ध पशुओं को अपने पास रखने | है। हम उन्हें व्यर्थ समझकर कसाई को दे देते हैं। तो आपके घर में से क्या लाभ है? हमसे तो आज यही कहा जाता है
दादा-दादी आदि भी तो वृद्ध होते हैं। उन्हें भी कहीं बेच देना चाहिए, “विश्व एक बाजार है, यहाँ सिर्फ मनुष्य को जीने का | वे भी किसी काम के नहीं है। अधिकार है।"
(मनोज, राजेश से - अरे चलो स्कूल को देर हो जायेगी) फकीर - हाँ! आज ऐसा व्यवहार इस स्वार्थी मनुष्य का है। राजेश- बाबा! आपने तो हमारी आँख खोल दीं, हम आज यह आज की पढ़ाई का दोष है, अच्छे संस्कार प्रदान नहीं करती। | संकल्प करते हैं - दीन-दुखी व्यक्ति को कभी नहीं सतायेंगे, उनकी आज हमारी शिक्षा पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव है, बेटा! | सहायता करेंगे और मूक प्राणियों की रक्षा करेंगे। राजेश - बाबा! हमारी भारतीय संस्कृति क्या है?
फकीर - बहुत अच्छा बच्चो! मनुष्य के इस तन को मनुष्यता फकीर - बहुत अच्छा प्रश्न है बेटा! हमारी भारतीय संस्कृति नहीं समझो, हमारे अंदर, प्रेम, दया, करुणा, वात्सल्य भाव जो हैं
वही हमारी मनुष्यता हैं। उनको पहचानो और अपने जीवन में उनको 'विश्व एक बाजार है, यहाँ प्राणी मात्र को जीने का | लाओ...। अच्छा बच्चो हम चलते हैं।
भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कृत
'जिनभाषित' के सम्बन्ध में
तथ्यविषयक घोषणा
प्राचीन जैन साहित्य, संस्कृति के संरक्षण एवं सराक बन्धुओं के उत्थान हेतु सतत सचेष्ट परम पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के भाव से श्रुत संवर्द्धन संस्थान, मेरठ ने अप्रैल 2000 में उपाध्याय ज्ञानसागर श्रुत संवर्द्धन पुरस्कार की स्थापना की थी। पुरस्कार के अंतर्गत जैन साहित्य, संस्कृति या समाज की सेवा करने वाले व्यक्ति/संस्था को प्रतिवर्ष 1,00,000/- रु. की राशि एवं रजत प्रशस्ति पत्र, शाल, श्रीफल से सम्मानित करने का निश्चय किया गया।
विधिपूर्वक गठित निर्णायक मंडल की सर्वसम्मत अनुशंसा के आधार पर प्रथम पुरस्कार अनुपलब्ध जैन साहित्य के उत्कृष्ट प्रकाशन कार्य हेतु भारतीय ज्ञानपीठ नई दिल्ली को देने का निश्चय किया गया। मई 2001 में की गई घोषणा के अनुरूप यह पुरस्कार चिन्मय मिशन आडिटोरियम-नई दिल्ली में 6 जनवरी 2002 को पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज के ससंघ मंगल सान्निध्य में भव्यतापूर्वक बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों एवं जैन विद्या के अध्येताओं की उपस्थिति में समर्पित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केन्द्रीय कृषि मंत्री श्री अजित सिंह जी एवं प्रमुख अतिथि प्रख्यात विधिवेत्ता सांसद श्री लक्ष्मीमल सिंघवी थे। अध्यक्षता की भारतवर्षीय दि. जैन महासभा के यशस्वी अध्यक्ष श्री निर्मल कुमार जी जैन सेठी ने।
पूज्य उपाध्याय श्री ने अपने आशीर्वचन में संस्थान के कार्यकर्ताओं को शुभाशीष देते हुए कहा कि हम विद्वानों का सम्मान करें तथा उन संस्थाओं का भी सम्मान करें, जिन्होंने प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथों को जनसुलभ कराया एवं स्वाध्याय की परम्परा को भी परिपुष्ट किया। आपने जैन साहित्य के संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु ज्ञानपीठ को एवं इस प्रशस्त निर्णय हेतु संस्थान के कार्यकर्ताओं को अपना आशीर्वाद प्रदान किया।
डॉ. अनुपम जैन
पुरस्कार संयोजक 32 फरवरी 2002 जिनभाषित
प्रकाशन-स्थान : 1/205.प्रोफेसर्स कालोनी.
आगरा-282 002 (उ.प्र.) प्रकाशन-अवधि : मासिक मुद्रक-प्रकाशक : रतनलाल बैनाड़ा राष्ट्रीयता
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आगरा-282002 (उ.प्र.) ___ मैं, रतनलाल बैनाड़ा एतद् द्वारा घोषित करता हूँ कि मेरी अधिकतम जानकारी एवं विश्वास के अनुसार उपर्युक्त विवरण सत्य है।
रतनलाल बैनाड़ा
प्रकाशक
15.2.2002
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