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________________ बालवार्ता मनुष्यता की खोज मुनिश्री अजितसागर एक फकीर सभा के बीच या बाजार के बीच से जाता है, हाथ | फकीर - इसलिये तो कहा था बच्चो, अभी तुम लोग हमारी में मशाल लिये व्यक्ति के पास जाकर गौर से देखता, और वापस | इस रहस्यमय खोज को समझ नहीं पाओगे, इसलिये मैं बता नहीं आ जाता है। मंच से मनोज और राजेश दोनों देखकर आश्चर्यचकित | रहा था। हो जाते हैं तभी मनोज राजेश से कहता है मनोज- मनुष्य से हटकर क्या मनुष्यता होती है? मनोज- अरे! राजेश देखो! ये फकीर बाबा पागल सा लगता फकीर - नहीं....! मनुष्य के अंदर ही मनुष्यता होती है, पर है, दिन में मशाल जलाये हुए आदमियों को ऐसा देख रहा है जैसे | आज वह नहीं दिखती। दिखता ही न हो? राजेश- आपने कैसे कह दिया बाबा! कि मनुष्य के अंदर अब राजेश- हाँ! मुझे भी ऐसा ही लग रहा है। लगता है फकीर का | मनुष्यता नहीं है। मशाल को लेकर चलने में कुछ रहस्य छुपा है। फकीर - हाँ बच्चो! आज ऐसी ही दशा है। मनुष्य तो है पर मनोज- चलो! फकीर बाबा से चर्चा करते हैं मनुष्यता नहीं है। आज का व्यक्ति कैसा है? किसी ने कहा है - (मनोज और राजेश फकीर के पास जाकर पूछते हैं) हिन्दू है कोई और मुसलमान है कोई। मनोज- अरे बाबा! क्या.. कम दिखाई देता है, जो दिन में मैं तो बस यही खोजता हूँ कि इंसान है कोई। मशाल लेकर चल रहे हो? मनोज - बाबा! मनुष्य के अंदर ही तो मनुष्यता होती है। फकीर- बच्चो! अभी तुम्हारी समझ में नहीं आयेगा! जाओ फकीर - हाँ बेटा! बस मैं उस मनुष्य को खोज रहा हूँ, जिसके हमें अपना काम करने दो। (फकीर आगे बढ़ने लगता है, मनोज-राजेश | अंदर वह मनुष्यता है। साथ-साथ चलने लगते हैं) राजेश - बाबा! मनुष्यों की इतनी बड़ी सभा में आपको राजेश- बाबा! आखिर ऐसी कौन सी बात है जो हमारी समझ | मनुष्यता नहीं दिखाई दी? में नहीं आयेगी? फकीर - (सिर हिलाते हुए) ऊ हूँ...! कोई नहीं दिखता है। फकीर - बच्चो! इसमें बहुत बड़े रहस्य की बात है, इसलिए | आज का व्यक्ति कैसा है? किसी ने कहा है - नहीं समझ में आयेगी। इंसानियत की रोशनी गुम हो गई है कहाँ? मनोज- बाबा! वही रहस्य की बात तो हम जानना चाहते हैं। साये है आदमी के, पर आदमी कहाँ? फकीर - बेटा! मैं एक वस्तु की खोज कर रहा हूँ। मनोज - बाबा! आप ये कैसे कह सकते हैं कि आदमी का मनोज - कौन सी वस्तु की खोज कर रहे हैं आप? साया है पर आदमी नहीं? । फकीर - बच्चो! चलो हमें अपना काम करने दो, तुम अपना | फकीर - हाँ बेटा! ऐसा ही है। मनुष्य इस शरीर को ही मनुष्यता काम करो, लगता है जिस वस्तु की मैं खोज कर रहा हूँ वह तुम्हारे | मान लेता है, यही सबसे बड़ी भूल है। पास भी नहीं है। राजेश - बाबा! आज का मनुष्य कैसा है? राजेश - बाबा! आखिर वह कौन सी वस्तु है जो हमारे पास फकीर - आज सभी स्वार्थी हैं, लोभी हैं, कपटी है, और इसे नहीं है? अपने सिवा और किसी से मतलब नहीं, अपने वृद्ध माता-पिता को फकीर - बच्चो! जानना चाहते हो वह वस्तु क्या है? भी भूल जाता है। राजेश - मनोज- हाँ बाबा! बताओ वह क्या वस्तु है? | मनोज - बाबा! आखिर यह हुआ कैसे जो मनुष्य स्वार्थी लोभी फकीर - अच्छा चलो! वहाँ बैठकर आपको बताता हूँ। हो गया? (एक स्थान पर बैठ जाते हैं। तब फकीर बाबा दोनों को बताते | फकीर - बेटा! इसी बात को तो समझना है। आज सब स्वार्थी हैं। जब तक व्यक्ति का स्वार्थ सिद्ध होता है तब तक यह अपना फकीर - बच्चो! वह वस्तु क्या है? तो सुनो वह वस्तु है... | मतलब सिद्ध करता है, बाद में यह दूध में गिरी हुई मक्खी की तरह 'मनुष्यता', मैं मनुष्यता की खोज कर रहा हूँ। दूर फैंक देता है। मनोज - मनुष्यता! (राजेश की तरफ देखते हुए कहता है) राजेश - वह कैसा बाबा! जरा समझाये। राजेश - यहाँ पर तो सभी मनुष्य बैठे हैं, बाबा! क्या इन सभी फकीर - बैटा। देखो, इस मनुष्य की स्वार्थता। यह अपने घर मनुष्यों में आपको मनुष्यता नहीं दिखाई देती है? गाय को रखता है और जब तक वह दूध देती है, तब तक उसकी हैं।) - फरवरी 2002 जिनभाषित 31 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524259
Book TitleJinabhashita 2002 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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