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व्यंग्य
नेता जी की टाँग
शिखरचन्द्र जैन
जिस तरह गुरु की छड़ी
हिन्दी कवि के काव्य में दी का स्वाद चखे बिना कोई भी जिस तरह गुरु की छड़ी का स्वाद चखे बिना कोई भी
गयी सलाह- 'सब हथियारन विद्यार्थी अच्छी शिक्षा ग्रहण नहीं विद्यार्थी अच्छी शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाता, उसी तरह पुलिस
छाँड़ हाथ में रखिए लाठी' के कर पाता, उसी तरह पुलिस का का डंडा खाये बिना कोई भी व्यक्ति सफल राजनीतिज्ञ नहीं
अनुरूप पुलिस को लाठी का डंडा खाये बिना कोई भी व्यक्ति बन सकता। पिटाई और राजनीति का प्राचीनकाल से ही बड़ा
उपयोग सदा सुविधाजनक सफल राजनीतिज्ञ नहीं बन सकता। घनिष्ठ संबंध रहा है। जिसे जितनी ज्यादा मार पड़ी, प्रतीकार
लगा। 'हलका लाठी चार्ज', पिटाई और राजनीति का प्राचीकी भावना उसमें उतनी ही अधिक बलवती हुई। ......राजनीति
'न्यूनतम आवश्यक बल नकाल से ही बड़ा घनिष्ठ संबंध में किसी को पीड़ा पहुँचाना, बहुधा पीड़ित को लाभदायक
प्रयोग' जैसे जुमले लाठी के रहा है। जिसे जितनी ज्यादा मार स्थिति में ला खड़ा कर देता है।
चलते ही संभव हो सके। पड़ी, प्रतीकार की भावना उसमें
अगले को बिना लहू-लुहान उतनी ही अधिक बलवती हुई। इतिहास साक्षी है कि वह बदले की | किए, गहरी अन्दरूनी चोटों से गहन पीड़ा पहुँचाने की कला में पुलिस भावना ही थी, जिसने चाणक्य को चोटी में गाँठ लगा, नंद वंश | लाठी के सहारे की पारंगत हो सकी। शरीर के किस अंग में, किस की जड़ों को खोद कर उनमें मठा भरने की प्रतिज्ञा लेने को प्रेरित कोण से, कितने बलपूर्वक बैंत से प्रहार करने पर अपराधी कितना किया और फिर उसे सफलतापूर्वक राजनीति के आकाश में एक उगलेगा, इसका गणित पुलिस ट्रेनिंग स्कूल के पहले सेमेस्टर में ही देदीप्यमान नक्षत्र की तरह स्थायी रूप से स्थापित कर दिया। वह | भली-भाँति सिखा दिया जाता रहा है। कुल मिला कर संक्षेप में यह प्रतिशोध की ज्वाला ही थी, जिसके वशीभूत हो एक नारी ने चोटी कहना उपयुक्त होगा कि अपराध की विवेचना में पुलिस को कभीन बाँध, केशों को तब तक खुला छोड़ रखने का संकल्प लिया, जब | कभी जो सफलता मिल जाती है, उसके पीछे लाठी का समुचित प्रयोग तक कि उसे अपमानित करने वाले वंश-विहीन नहीं कर दिये जाते। | अवश्य ही होता है।
और जैसा कि तय था, उसका संकल्प एक महायुद्ध के माध्यम से ज्ञातव्य है कि अंग्रेजी - राज में स्वतंत्रता आंदोलन को नियंत्रित पूर्णता को प्राप्त हुआ। इससे सिद्ध होता है कि राजनीति में किसी करने में लाठी का उल्लेखनीय योगदान था। उन दिनों जब कोई को पीड़ा पहुँचाना, बहुधा पीड़ित को लाभदायक स्थिति में ला खड़ा स्वतंत्रता सेनानी घर से निकलता था, तो यह मानकर ही चलता था कर देता है। यदि पीड़ित के चोटी हुई तब तो शर्तिया ही। कि या तो उसकी खपरिया खुलेगी या फिर हाथ-पाँव टूटेंगे। साथ
कहते हैं कि पुलिस का प्रादुर्भाव, अंग्रेजों के आँगन में, विधि | ही उसी हालत में जेल में ठूस दिए जाने की संभावना भी बनी रहती व व्यवस्था के पोषण के लिए हुआ था। इसका तात्पर्य यह निकलता | थी, फिर भी आजादी के दीवाने हाथ में झण्डा लिए अक्सर जुलूस है कि या तो पुलिस के आविर्भाव के पूर्व राज्य में विधि व व्यवस्था | निकालते थे और बाकायदा पिटते थे। इस पिटाई में लाठी की पहली नामक कोई वस्तु हुआ ही नहीं करती थी, जिसका कि पोषण जरूरी | मार खुद झेलने के लिए नेता सदा आगे रहते थे। जो जितना बड़ा हो अथवा इसके प्रति लोगों में तब इतनी श्रद्धा हुआ करती थी कि | नेता होता था, उसे उतनी ही अधिक मार पड़ती थी। इसी प्रकार लाला धर्म की माफिक वह भी स्वपोषित थी, या फिर कानून और व्यवस्था लाजपतराय शहीद हुए और पंडित गोविन्द वल्लभ पंत जीवनभर की हालत इतनी खराब थी कि इसे ठीक करने के लिए अलग से गर्दन की पीड़ा सहते रहे। एक संस्था की आवश्यकता महसूस हुई। बहरहाल, कारण जो भी | कालांतर में, जब देश आजाद हुआ तो स्वतंत्रता सेनानियों रहा हो पर इतना निर्विवाद है कि वर्दी और लाठी से सुसज्जित एक की लिस्ट बनी। वरिष्ठता का क्रम जेल में बितायी गई अवधि एवं वफादार बल का संगठन कर, अंग्रेजों ने 'हीरा है सदा के लिए' की | खायी गयी चोटों की गहराई के आधार पर निर्धारित किया गया और माफिक इसे राजनीति के क्षेत्र में चिर-स्थायी कर दिया। जन्म के साथ तदनुसार ही राजनीति में लाभ के पदों का आवंटन हुआ। इससे लोगों ही, हवा में लट्ठ भाँजते हुये पुलिस ने अपनी जिस छबि का निर्माण
में यह संदेश पहुँचा कि आन्दोलन, लाठी की मार और जेल यात्रा, किया, उसे समय के सैकड़ों थपेड़े भी धूमिल करने में समर्थ नहीं राजनीति में शीर्ष तक पहुँचने के लिए अनिवार्य सोपान हैं। इसमें छूट हो सके। मेरे हिसाब से इसका कारण मूलत: यह रहा कि पुलिस ने केवल उन्हें ही उपलब्ध हुई, जिनके पूर्वज इन प्रक्रियाओं से पूर्व में लाठी का साथ कभी नहीं छोड़ा। बावजूद इसके कि वक्त के साथ ही गुजर चुके थे। ऐसे लोगों की डायरेक्टली पार्टी-प्रेसीडेन्ट या अनेक आधुनिक अस्त्रों का अविष्कार हुआ, पुलिस ने लाठी पर अपनी प्रधानमंत्री तक बनने की पात्रता का होना सभी को स्वीकार्य हुआ। पकड़ ढीली नहीं पड़ने दी। लाठी की प्रशस्ति में लिखे एक प्रसिद्ध 26 फरवरी 2002 जिनभाषित
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