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________________ अर्थ - अचौर्याणुव्रत के पालक श्रावक के द्वारा यह धन समाधान - उपशान्त मोहनामक ग्यारहवें गुणस्थानवती स्वामिहीन है। ऐसा विचार करके जमीन और नदी आदि में रखा हुआ | क्षायिक सम्यकदृष्टि जीव के पाँचों ही भाव एक साथ पाये जाते हैं। धन ग्रहण करने योग्य नहीं है, क्योंकि इस लोक में जिस धन का | जैसे - कोई स्वामी नहीं है, ऐसे धन का साधारण स्वामी राजा होता है। 1. औपशमिक भाव में से औपशमिक चारित्र। आचार्य कार्तिकेय स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा की गाथा 36 की 2. क्षायिक भावों में से क्षायिक सम्यक्त्व। टीका में लिखते हैं - 3. क्षायोपशमिक भावों में से क्षायोपशमिक मति, श्रुत, अवधि _ 'विस्मृतपति वस्तु अपिशब्दात् अविस्मृतं वस्तु केनापि | आदि ज्ञान व दर्शनों में चक्षु-अचक्षु आदि दर्शन/पाँच लब्धियाँ। विस्मृतम् अविस्मृतं वस्तु नादत्त न गृह्णाति। अपिशब्दात् 4. औदयिक भावों में से मनुष्य गति, अज्ञान, असिद्धत्व, पतितम् अस्वामिकं भूम्यादौ लब्धं वस्तु न च गृहति॥' शुक्ल लेश्या। अर्थ - भूली हुई या गिरी हुई या जमीन में गढ़ी हुई पराई वस्तु 5. पारिणामिक भावों में से जीवत्व एवं भव्यत्वपना। को भी नहीं लेता है। इससे स्पष्ट है कि उपशान्त मोही के एक समय में पाँचों ही जिज्ञासा - क्या किसी जीव के औपशमिक आदि पाँचों भाव | भाव पाये जाते हैं। एक समय संभव है? 1205, प्रोफेसर्स कालोनी, आगरा-282002 (उ.प्र.) से मनुष्आदि दर्शनापा, श्रुत, अवधि अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में जैन गणित की धूम भारतीय गणित इतिहास परिषद (I.S.H.M.) एवं रामजस | Virasena'. कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली द्वारा गत 20-23 दिसम्बर 6. Mrs. Ujjawala Dondagaonkar, Eienstien 2001 के मध्य भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी, नई दिल्ली International Foundation, Nagpur, A Brief Review (I.N.S.A.) में First International Conference of New of Literature of Jaina Karma Theory'. Millenium in History of Mathematics का सफल इन 6 शोध पत्रों के माध्यम से जैन गणित के विविध पक्षों आयोजन किया गया। इस अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में ब्रिटेन, अमेरिका, की इतनी प्रभावी प्रस्तुति की गई कि संगोष्ठी के समापन सत्र में इजराइल, कनाडा, ईरान आदि देशों के अनेक प्रतिनिधियों ने अपनी Jaina School की ओर से प्रतिक्रिया व्यक्त करने हेतु इस स्कूल प्रभावी उपस्थिति दी। 12 विदेशी एवं 49 भारतीय शोध पत्रों की के अग्रणी शोधक डॉ. अनुपम जैन, इंदौर को आमंत्रित किया गया। श्रृंखला में निम्नांकित 6 शोध पत्र जैन गणित से सम्बद्ध प्रस्तुत किये डॉ. जैन ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुये कहा कि 'लगभग गये 25 वर्ष पूर्व भारतीय गणित इतिहास परिषद् की शोध पत्रिका 'गणित 1. Dr. Anupam Jain, Dept. of Mathematics, भारती' के प्रकाशन के अतिरिक्त अन्य गतिविधियाँ लगभग डेढ़ Holkar Autonomous Science College, Indore दशक से सुस्त पड़ी थीं, गत 2 वर्षों में पुनः गति आई है, इसी (M.P.), "Prominent Jaina Mathematicians and their का प्रतिफल है कि जैन गणित के अध्ययन के कार्य में प्रगति हो रही Works'. है। I.S.H.M. के इस मंच से प्रो. बी.बी. दत्त, प्रो. ए.एन. सिंह 2. Mr Dipak Jadhav, Lecturer in Mathemat- | एवं प्रो. एल.सी. जैन के काम को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी एवं ics, J.N. Govt. Model High School, Barwani (M.P.), जैनाचार्यों के गणितीय कृतित्व के सम्यक् अध्ययन से भारतीय गणित "Theories of Indices and Logarithms in India from इतिहास के पुनर्लेखन का पथ प्रशस्त होगा। Jaina Sources'. जैन गणित के अध्ययन में संलग्न हम सभी कोचीन में 3. Mr. N. Shiv kumar, Head, Dept. of Math- | प्रस्तावित आगामी सम्मेलन में सम्मिलित होने का विश्वास दिलाते ematics, R.V. College of Engineering, Bangalore | हुए परिषद की शोध पत्रिका गणित भारती की आवृत्ति बढ़ाने का (Karnataka), 'Direct Method of Summation of | अनुरोध करते हैं।' Life Time Structure Matrix in the Gommatasara'. | जैन गणित इतिहास के इन सभी अध्येताओं का दल गणिनी 4. Prof. Padmavathamma, Dept. of Math- | ज्ञानमती प्राकृत शोधपीठ के निदेशक डॉ. अनुपम जैन के नेतृत्व ematics, University of Mysore, Mysore | में पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के दर्शन हेतु राजाबाजार (Karnataka), 'Sri Mahaviracarya's Ganitasara- गया। वहाँ पूज्य माताजी ने सभी को साहित्य भेंट कर मंगल आशीर्वाद samgraha'. दिया। प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चन्दनामति माताजी एवं क्षु. श्री 5. Mrs. Pragati Jain, Lecturer in Mathemat- | मोतीसागरजी ने विद्वानों को सम्बोधित कर शोधपीठ से पूर्ण सहयोग ics, ILVA College of Science and Commerce, का आश्वासन दिया। Indore, Mathematical Contributions of Acarya डॉ. अनुपम जैन -फरवरी 2002 जिनभाषित 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524259
Book TitleJinabhashita 2002 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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