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________________ (घ) लेखकीय कर्म के साथ ज्ञान की अभिव्यक्ति आपके धारावाही प्रवचन में देखने को मिलती है। वाणी में जहाँ ओजस्वी-गुण है, वहीं सम्मोहकता का जादू भी है श्रोता ऐसा खिचा हुआ बैठा रहता है जैसे उसका हृदय ही बोल रहा हो । बोलते हुये मुख की मुस्कान सोने में सुहाग की उक्ति चरितार्थ करती है। मुनिश्री के प्रवचन चाहे व्यस्त शहर के चौराहों पर हों या जेल के अन्दर, चाहे मन्दिर के विशाल सभागार में हों या जैन महोत्सवों के विशाल पाण्डाल में, सभी जगह प्रवचन में एक तत्त्व सर्वव्याप्त रहता है- 'वशीकरण' का प्रवचन में शब्द सौष्ठव की वासंती छटा और विषय का सहज प्रस्तुतीकरण संगीत सा माधुर्य उत्पन्न कर देता है। जैन तत्त्वविद्या *मुनि प्रमाणसागर (ङ) मुनिश्री के वात्सल्यमय व्यवहार और छोटे-बड़े सभी से सरलता और मुस्कान के साथ मिलना आपके व्यक्तित्व की एक ऐसी छवि है, जो आपमें सहज है। जब ज्ञान की तेजस्विता अंहकार के हिम को पिघलाकर गलित कर देती है, तो ऐसी विनम्रता का सहज स्फुरण होने लगता है। हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत, अँग्रेजी भाषाविद् आप जैन साहित्य दर्शन/इतिहास के तलस्पर्शी अध्येता हैं। ज्ञान-ध्यान और तप की प्राञ्जलसाधना के प्रखर निर्ग्रन्थ साधु हैं। भगवान महावीर और गौतम बुद्ध की अध्यात्म संस्कृति से सनी बिहार भूमि के इतिहास की झलक आपके व्यक्तित्व से झरने की तरह प्रवाहित होती हुई आपके बिहार प्रान्तवासी होने का स्वतः सिद्ध प्रमाण है। एक लम्बी प्रतीक्षा के बाद भारतीय ज्ञानपीठ दिल्ली से ऐसा प्रकाशन हुआ, जिसने अनेक आगम ग्रन्थों के सारभूत को एक ग्रन्थ में समाहित कर गागर में सागर भरकर शोधार्थी पाठकों को ऐसा अमृतोपम उपहार भेंट किया है। इस ग्रंथ का वाचन तत्त्वार्थसूत्र की भाँति किया जाये, जो स्वाध्याय तप और कर्म निर्जरा का उपादन बने सम्पूर्ण जैनागम का पारायण दो सौ संस्कृत सूत्रों में निबद्ध कर देना आचार्य माघनन्दी योगीन्द्र का श्रेयस तो है ही, साथ ही मुनि प्रमाणसागर जी महाराज के परम अभीक्ष्ण ज्ञान का परचम भी है जिन्होंने इस ग्रन्थ को अमर बना दिया। जैन तत्त्वविद्या मुनि प्रमाणसागर जी के भास्वर ज्ञान का एक चिन्मय अर्घ्य है या कहें कि उनके अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग का मूर्त रूपायन है। कृति 'जैन तत्त्वविद्या' मुनि प्रमाणसागर जी की तप तेजस्विता का एक महामाष्य है। स्वाध्याय के सातत्य का यह प्रखर- निमित्त बने, इस पुण्य प्रशस्तभावना एवं लोक मंगल कामना के साथ कृतिकार मुनिश्री को लेखक की विनम्र प्रणामाञ्जलि है। Jain Education International शा.उ.मा. विद्यालय के सामने वीना (म.प्र.) अतिशय क्षेत्र डेरापहाड़ी पर जैन पाठशाला की तीसरी शाखा प्रारंभ छतरपुर। पूज्य मुनिश्री प्रशांतसागरजी एवं मुनि श्री निर्वेगसागरजी की मंगल प्रेरणा एवं सान्निध्य में रविवार को प्रसिद्ध जैन अतिशय क्षेत्र डेरापहाड़ी पर आचार्य श्री विद्यासागर जैन पाठशाला की तीसरी शाखा का भव्य शुभारंभ गरिमामय समारोह में हुआ। इसके पूर्व पाठशालाओं के बच्चों ने प्रातः भगवान बाहुबली हाल में सामूहिक पूजन किया तथा अपराह्ण में पूज्य मुनिद्वय के मंगल प्रवचन हुए। | पूज्य मुनि श्री प्रशांतसागरजी ने अपने प्रवचन में कहा कि वर्तमान समय में चारों ओर ज्ञान बढ़ रहा है, लेकिन आज जो ज्ञान उपलब्ध है, वह कितना सार्थक है? आज के ज्ञान में संस्कारों तथा धार्मिक ज्ञान का सर्वथा अभाव है। आज प्रारंभ हो रही इस पाठशाला में बच्चों को मात्र ज्ञान नहीं वरन् जीवन मूल्य तथा संस्कार भी दिये जायेंगे, जो घरों में संभव नहीं हैं। पूज्य मुनि श्री निर्वेगसागरजी ने अपने प्रवचन में कहा कि संसार में जो अज्ञान फैला है, वह एक व्यक्ति के पुरुषार्थ से मिटाया नहीं जा सकता, फिर भी प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्तर पर अपना कर्तव्य पालन करना चाहिये। पाठशाला की उपयोगिता स्पष्ट करते हुए मुनि श्री ने धार्मिक शिक्षा को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में और भी जरूरी बताया और कहा कि जिनवाणी अल्पज्ञान भी आत्मकल्याण में सहायक होता है। इस अवसर पर कार्यक्रम का संचालन कर रहे पाठशाला के संयोजक डॉ. सुमति प्रकाश जैन, संचालिका कु. ज्योति जैन एवं सहयोगी कु. श्वेता जैन ने पाठशाला के उद्देश्यों एवं नियमों पर प्रकाश डालते हुए धर्मप्रेमी बंधुओं से अपने बच्चों को पाठशाला में भेजने की अपील की। डॉ. सुमति प्रकाश जैन, संयोजक कु. श्वेता जैन, शिक्षिका, जैन पाठशाला, डेरापहाड़ी भगवान महावीर स्वामी पार्क नामकरण पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी के ससंघ सान्निध्य में पहाड़गंज मन्टोला क्षेत्र, दिल्ली में रामाकृष्ण मिशन के पास स्थित दिल्ली नगर निगम के एक पार्क का नाम "भगवान महावीर स्वामी पार्क" रखा गया। 24 जनवरी 2002 को भगवान महावीर के 2600वें जन्मकल्याणक महोत्सव वर्ष के अंतर्गत आयोजित इस नामकरण कार्यक्रम की अध्यक्षता निगम पार्षद श्रीमती सुधा शर्मा ने की, जिनके समर्पित प्रयासों से यह कार्य सम्भव हो सका। इस अवसर पर सभा को सम्बोधित करते हुए प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामति माताजी ने कहा कि इस पार्क में भगवान महावीर के जीवन एवं शिक्षाओं से संबंधित एक शिलालेख लगवाया जाना चाहिये। श्रीमती सुधा शर्मा ने कहा कि भगवान महावीर मात्र जैनों के ही नहीं थे, वरन् सम्पूर्ण विश्व के थे। गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने कहा कि इस पार्क में भगवान महावीर की एक मूर्ति स्थापित की जावे, जो समस्त जनों को मैत्री, सौहार्द, पारस्परिक प्रेम एवं सुखशांति का निरंतर पाठ पढ़ायेगी। For Private & Personal Use Only ब्र.कु. स्वाति जैन, संघस्थ फरवरी 2002 जिनभाषित 15 www.jainelibrary.org
SR No.524259
Book TitleJinabhashita 2002 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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